छतरपुर: जिले से कोसों दूर गौरिहार जनपद के अंतर्गत ठकुर्रा गांव में देवी मां का एक ऐसा मंदिर है जिसका इतिहास वीर योद्धा आल्हा से है. इतिहासकार बताते हैं कि इस मंदिर के पास में ही आल्हा-ऊदल का किला था जहां आल्हा रहते थे. लोकमान्यता है कि यहां आज भी आल्हा मां के दर्शन करने आते हैं.
मंदिर का इतिहास
पुजारी शिवराम स्वरूप शर्मा लोकल 18 से बातचीत में बताते हैं कि इस मंदिर का आल्हा मां या आल्हम देवी नाम इसलिए पड़ा क्योंकि वीर योद्धा आल्हा महोबा से मैहर मां को पूजने जाते थे. महोबा से मैहर दूर होने की वज़ह से आल्हा ने सोचा क्यों न मां को मैहर से लाकर महोबा में स्थापित कर दूं. आल्हा मैहर गए और माता से विनती की. माता ने कहा ‘मैं जाने को तैयार हूं लेकिन जहां तुम रुक जाओगे वहीं मैं स्थापित हो जाउंगी.’ माता आल्हा के साथ हथिनी में सवार होकर निकल पड़ीं, लेकिन महोबा के पहले ही आल्हा को निस्तार के लिए रुकना पड़ा और यहीं पर माता स्थापित हो गईं.
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यहां आज भी आते हैं वीर योद्धा आल्हा
पुजारी के मुताबिक माता के दर्शन करने आज भी यहां आल्हा आते हैं. उनके आने का प्रमाण ये है कि माता की सबसे पहले पूजा आल्हा ही करते हैं. मेरी पूजा होने के पहले ही यहां फूल चढ़े होते हैं. आल्हा मां के इस पवित्र स्थान पर जो भी भक्त सालों से आ रहे हैं उनका भी यही कहना है कि चाहें आप कितनी भी जल्दी यहां पूजा करने आ जाएं लेकिन यहां सबसे आल्हा पूजा करके चले जाते हैं.
छतरपुर के चंदला विधानसभा पूर्व विधायक व ठकुर्रा निवासी विजय बहादुर सिंह बुंदेला बताते हैं कि शुरुआत में मेरे पास कुछ नहीं था. ‘मैं भी दूसरों की तरह साधारण जीवन ही जी रहा था लेकिन मां का ऐसा चमत्कारिक आशीर्वाद मुझे मिला कि तीन बार विधायक बन गया.’
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FIRST PUBLISHED :
October 9, 2024, 15:34 IST