ब्रह्माण्ड एक बहुत ही रोचक विषय है. अभी इसके ताने बाने को तीन हिस्सों से बना बताया जाता है. सामान्य पदार्थ, डार्क ऊर्जा और डार्क पदार्थ यानी डार्क मैटर. पर नई रिसर्च ने यूनिवर्स के इस मॉडल को पलट कर रख दिया है. अमेरिका की ओटावा यूनिवर्सिटी में भारतीय मूल के भौतिकविद राजेंद्र गुप्ता सालों की रिसर्च के बाद रोचक नतीजों पर पहुंचे हैं जिन्होंने ब्रह्माण्ड की समझ या जानकारी को हिला डाला है. उनकी स्टडी कहती है कि हमें ब्रह्माण्ड के कार्यप्रणाली और घटनाओं को समझने के लिए डार्क एनर्जी और डार्क मैटर की जरूरत नहीं होगी. ऐसे दावे ने वैज्ञानिक जगत को एक तरह से सकते में डाल दिया है.
दो प्रमुख सिद्धांत
गुप्ता की रिसर्च की सबसे बड़ी बात उनका मॉडल है जिसमें दो सिद्धांतों को जोड़ा गया है. एक है कोवेरिइंग कप्लिंग कॉन्स्टेंट (सीसीसी) और दूसरा टायर्ड लाइट (टीएल). हमें अक्सर कुदरत के स्थिरांक या कॉन्स्टेंट्स बताए जाते हैं. इनमें सबसे प्रचलित है प्रकाश और इलेक्ट्रॉन जैसे कुछ कणों की गति है. इनके बारे में कहा जाता है कि ये हमेशा ही स्थिर रहेगी.? सीसीसी सिद्धांत कहता है कि ये स्थिरांक ब्रह्माण्ड में अलग-अलग जगह पर अलग मान के हो सकते हैं.
दूर जाती गैलेक्सी के प्रकाश का असर
सूदूर गैलेक्सी से आने वाले प्रकाश को ही लीजिए. जब वैज्ञानिक इस प्रकाश का अध्ययन करते हैं तो पाते हैं इसकी वेवलेंथ बदल जाती है जिसे रेडशिफ्ट या अभिरक्त विस्थापन कहते हैं. इसका मतलब ये है कि वह गैलेक्सी हमसे दूर जा रही है. सामान्य तौर पर हम सोचते हैं कि प्रकाश का रेडशिफ्ट इसलिए होता है क्योंकि ब्रह्माण्ड का विस्तार हो रहा है. टायर्ड लाइट का विचार अलग है. इसके मुताबिक हो सकता है कि रेडशिफ्ट की वजह बहुत ही ज्यादा दूर यात्रा करने पर प्रकाश अपनी ऊर्जा गंवा रहा हो? ऐसे में ब्रह्माण्ड के बिना फैले ही रेडशिफ्ट का असर दिख सकता है.
गुप्ता का कहना है कि उनका सिद्धांत ब्रह्माण्ड के विस्तार की बात को भी खारिज करता है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
ब्रह्माण्ड का नया ढांचा
तो क्या होगा जब हम दोनों ही सिद्धांतों को एक साथ रखें? सीसीसी और टीएल मॉडल कॉस्मिक परिघटना को नया ढांचा देने की बात करता है. स्थिरांक (हमेशा एक से रहने वाली चीजें) बदल सकते हैं और प्रकाश ऊर्जा गंवा सकता है, इन दोनों बातों का ध्यान रखते हुए यह मॉडल उन सब पहेलियों की अलग व्याख्या देता है जिनसे साइंटिस्ट्स दशकों से परेशान हैं.
पर डार्क मैटर क्यों?
पर अधिकांश वैज्ञानिक डार्क मैटर को सच क्यों मानते हैं? जी हां डार्क मैटर को होना तक अभी सिद्ध नहीं किया जा सका है. जैसे कि ब्लैक होल के सिद्ध होने में कई दशक लग गए थे. इसलिए यह कोई अनूठी बात नहीं. 1930 में फ्रिट्ज ज्विकी ने पाया कि गैलेग्सी किसी समूह में वैसे नहीं घूम रही हैं जैसा कि उनके पता चलने वाला या दिखाई देने वाला भार बता रहा है. उन्हें लगा कि कुछ दिखाई ना देने वाली चीज कोई गुरुत्व ताकत गैलेक्सी पर लगा रही हैअधिकांश सिद्धांतों के मुताबिक यह गुरुत्व खिंचाव डार्क मैटर की वजह से था. इस तरह से डार्क मैटर को इन सिद्धातों ने ब्रह्माण्ड की कार्यप्रणाली में शामिल कर लिया गया.
इस मॉडल का कहना है कि डार्क मैटर के बिना भी ब्रह्माण्ड के उन सभी सवालों का जवाब दिया जा सकता है जिसकी व्याख्या उससे की जा रही थी. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
डार्क मैटर और यूनिवर्स की व्याख्या
सालों से डार्कमैटर की अवधारणा गैलेक्सी और ब्रह्माण्ड के बर्तावों की व्याख्या के लिए उपयोग में लाई जा रही थी. उससे गैलेक्सी और तारों की गति से लेकर ब्रह्माण्ड की उम्र भी 13.8 अरब साल बताई जा रही थी. यहां तक कि ब्रह्माण्ड की संरचना में 27 फीसदी डार्क मैटर, 5 फीसदी सामान्य ऊर्जा और बाकी हिस्सा डार्क ऊर्जा से बना बताया जा रहा था. लेकिन गुप्ता का मॉडल ने इस धारणा को छिन्नभिन्न करता दिख रहा है. उनका कहना है कि उनके अध्ययन के नतीजे उनके पहले के किए गया कार्यों की पुष्टि करते हैं जो सुझाता है कि ब्रह्माण्ड असल में 26.7 अरब साल पुराना है. इसके लिए डार्क मैटर को मानने की कतई जरूरत नहीं है.
पर क्या कहता है गुप्ता का मॉडल?
परंपरागत कॉस्मोलॉजिकल सिद्धांतों के विपरीत, जहां ब्रह्माण्ड के विस्तार का कारण डार्क मैटर को बताया जाता है, उनके नतीजे कहते हैं कि यह विस्तार प्रकृति के बलों के कमजोर होने की वजह से हो रहा है ना कि डार्क ऊर्जा की वजह से. गुप्ता की रिसर्च का खासा हिस्सा रेडशिफ्ट पर ध्यान देता है. वे भरोसे के साथ कहते हैं कि उनकी जानकारी में, उनका पेपर पहला है जो उसके अस्तित्व को खारिज करते हुए खगोलीय घटनाओं को भी स्वीकारता है जिनकी व्याख्या के लिए डार्क मैटर की मदद ली जाती है.
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अगर सीसीसी और टीएल मॉडल सही साबित होता है, तो हमारी काफी कुछ जानकारी बदल जाएगी. कॉस्मिक माइक्रोवेव रेडिएशन, गैलेक्सी के निर्माण और विकास की नई व्याख्या मिलेंगी. लेकिन कई आलोचकों का कहना है की गुप्ता के मॉडल के परीक्षणों और प्रयोगों से गुजरना होगा. यह स्टडी द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में प्रकाशित हुई है.
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FIRST PUBLISHED :
October 19, 2024, 17:35 IST