पूरी दुनिया में एक पुरानी रीति चली आई है, किसी भी शिष्य में अपने गुरु को टोकने का साहस नहीं होता है. लेकिन वह चेला ही क्या, जो अनाचार को सहन कर जाए. कुछ ऐसी ही कहानी है नाथ संप्रदाय के गुरु गोरखनाथ की. कहा जाता हैं कि जब समस्त देश में नाथ संप्रदाय बिखरा हुआ था. तब गुरु गोरखनाथ ने ही इस संप्रदाय के बिखराव और इस संप्रदाय की योग विद्याओं का एकत्रीकरण कर इसे फिर से जीवांत किया था.
गोरखनाथ के गुरु महान मत्स्येंद्रनाथ थे जिन्हें नाथ संप्रदाय का संस्थापक माना जाता हैं. मत्स्येंद्रनाथ का जन्म मछली से माना जाता है. लोक कथाओं के अनुसार एक बार भोले बाबा माता पार्वती को योग विद्या के बारे में बता रहे थे. तभी एक मछली उनकी सभी बातों को सुन रही थी. माता पार्वती बीच में ही सो गईं और इस मछली ने उनकी जगह सारी योग विद्या जान ली. फिर उसी मछली के गर्भ से मत्स्येंद्रनाथ का जन्म हुआ था. इनके गुरु दतात्रे जी थे और ये गोरखनाथ के गुरु थे. ये मीननाथ और मछन्दरनाथ के नाम से भी लोकप्रिय हुए. हालांकि इनके जन्म को लेकर कई विद्वानों में आज भी मतभेद हैं.
नाथ संप्रदाय के गुरु – सांकेतिक तस्वीर
भगवान शिव का रूप माने जाते हैं मत्स्येंद्रनाथ
लोक कथाओं के अनुसार मत्स्येंद्रनाथ को भगवान शिव का रूप माना जाता हैं. क्योंकि इन्हें भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त था और भगवान शिव के वैभव से ही नाथ संप्रदाय का उत्थान कर योग विद्या का प्रचार किया था. मत्स्येंद्रनाथ को लोग शिव के रूप में ही देखते हैं. योग विद्या के प्रचार के दौरान ही इन्हें एक बालक मिला. जिसे मत्स्येंद्रनाथ ने अपना शिष्य बना लिया और सभी विद्याएं उसे सिखाई. उस शिष्य का नाम था गोरखनाथ. जो अपने गुरु के परम शिष्य माने गए हैं.
कैसे हुआ नाथ संप्रदाय का उत्थान
भगवान शिव से आशीर्वाद पाकर मत्स्येंद्रनाथ ने ही नाथ संप्रदाय की संरचना की थी. यह भारत का हिंदू धार्मिक पंथ है. बौद्ध, शैव और योग की परंपराओं का समन्वय इसमें सम्मिलित हैं. ये हठयोग की साधना पर आधारित एक पंथ है. भगवान शिव इस संप्रदाय के प्रथम गुरु और आराध्य माने जाते हैं. इस संप्रदाय में गुरु मत्स्येंद्रनाथ और गुरु गोरखनाथ सबसे ज्यादा लोकप्रिय हुए. कहा जाता है कि एक समय नाथ संप्रदाय समस्त प्रांत में बिखरा हुआ था. गुरु मत्स्येंद्रनाथ ने ही गोरखनाथ के साथ इसका एकत्रीकरण किया. नाथ संप्रदाय के लोगों को नाथ, दसनाम गोस्वामी, गिरि गोस्वामी, योगी, जोगी और भी कई नामों से जाना जाता है.
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नाथ संप्रदाय के संन्यासी के लक्षण
इस संप्रदाय के विस्तार होने के बाद कई गुरु हुए. इनके कुछ गुरुओं के शिष्य मुस्लिम, जैन, सिख और बौद्ध धर्म के भी थे. इसमें योगनियों का भी समावेश था. अगर आप किसी महापुरुष को देखते हैं जिसके एक कान में बाली है जो उंगुलियों में पहनी गई मुद्रियों से भी बड़ी है. इसका मतलब वो नाथ संप्रदाय से जुड़ा हुआ है. इस संप्रदाय से जुड़े हुए लोग अपने हाथ में छड़ी और एक काला कुत्ता अपने साथ जरूर रखते हैं. वो कुत्तों से बहुत प्यार करते हैं. वे अपने कुत्तों को खूब खिलाते-पिलाते हैं और उसे अपने कंधे पर बैठा कर ही सफर पर निकलते है. सभी नाथ संप्रदाय के लोग काले कुत्ते ही रखते हैं. इन्हें कनफट भी कहा जाता है, क्योंकि इनके कान में एक बड़ा छेद होता है. इनमें ही सच्चे साधक होते है. ये हजारों साल बाद भी कहीं न कहीं आज भी सक्रिय हैं. नाथ लोग मुख से अलख शब्द से अपने इष्ट देव का ध्यान करते हैं और उनके परस्पर आदेश से अभिवादन करते हैं. जिसका वर्णन वेद और उपनिषद में किया गया है. आइए जानते है परम सिद्ध नौ नाथों के नाम के बारे में…
नवनाथ
- मत्स्येंद्रनाथ
- गोरखनाथ
- गहिनीनाथ
- जालन्धर नाथ
- कानिफनाथ
- भर्तरीनाथ
- रेवणनाथ
- नागनाथ
“नाकरोनादि रुपंच’थकारः’ स्थापयते सदा
भुवनत्रय में वकः श्री गोरक्ष नमोस्तुते”
गुरु मत्स्येंद्रनाथ के परम भक्त थे गोरखनाथ
गुरु के लिए प्रसन्नता, प्रेम, और आनंद से परिपूर्ण गोरखनाथ को देखकर मत्स्येंद्रनाथ बहुत ही अचंभित हो गए थे. उन्होंने देखा कि गोरखनाथ किसी सिपाही की तरह बनते चले जा रहे हैं. वे बहुत ही उग्र हो रहे हैं. इसको देखते हुए उन्होंने गोरखनाथ को हिमालय जाने की सलाह दी और वहां जाकर साधना करने के लिए कहा. गुरु की बात मानकर गोरखनाथ हिमालय की ओर चल दिए. हालांकि उनके लिए साधना पाना कोई कठिन काम नहीं था. वे इसलिए ऐसा कर रहे थे क्योंकि इसे उनके गुरु ने कहा था. उनके लिए उनके गुरु ही सब कुछ है उनके लिए सब कुछ समर्पित था. 14 साल साधना करने के बाद उनके अंदर बहुत सी अन्य शक्तियां आ गई थीं. सालों बाद वे फिर अपने गुरु के पास वापस आए. गुरु मत्स्येंद्रनाथ जहां रहते थे उस आश्रम के ठीक बाहर एक योगी पहरा दे रहा था. गोरखनाथ अचानक आश्रम के अंदर जाने लगे जिस पर योगी ने उन्हें टोका. गोरखनाथ ने कहा कि क्या मैं अपने गुरु से नहीं मिल सकता है. आखिर वे मेरे गुरु है. मैं 14 साल से उनसे मिलने के लिए बेताब था. योगी को किनारे कर गोरखनाथ अंदर चले गए. लेकिन उन्हें गुरु मत्स्येंद्रनाथ नहीं दिखे. उन्होंने वापस आकर योगी का मन अपनी शक्तियों से पढ़ लिया और गुरु मत्स्येंद्रनाथ का पता लगा लिया. लेकिन वहां जाने पर भी गुरु गोरखनाथ को उनके गुरु न मिलें. किसी अन्य योगी ने कहा कि गुरु मत्स्येंद्रनाथ ने आपके लिए संदेश छोड़ा हैं. आपको फिर से 14 साल हिमालय में साधना के जाना होगा. क्योंकि आपने योग साधना का उपयोग किसी योगी का मन पढ़ने के लिए किया. जो किसी योगी को कभी नहीं करना चाहिए. जनश्रुतियों के आधार पर एक कठिन आसन कर गोरखनाथ नें इस साधन को 7 साल में पूर्ण कर लिया था और वापस गुरु मत्स्येंद्रनाथ के पास आ गए थे. इस तरह से गुरु गोरखनाथ के विषय में बहुत सारी कहानियां प्रचलित हैं.
गोरखनाथ ने जब अपने गुरु को टोका
गुरु गोरखनाथ जी ने अपने गुरु मछन्दर नाथ को यह बात कही थी ‘जाग मछन्दर गोरख आया.’ कई कहानियों में इसका जिक्र होता हैं कि गुरु और चेले का यह संबंध अविच्छिन्न रूप से चल ही रहा था कि अचानक कुछ ही दिनों बाद गुरु मत्स्येंद्रनाथ अपने कर्तव्यों को ही भूल गए. वे भोगविलास और लीलाओं में घिर गए. गुरुजी अपना संन्यासी जीवन छोड़कर गृहस्थ बन बैठें. गुरु को इस मायाजाल से निकालने के लिए गोरखनाथ ने एक दिन भभूत लगाया और त्रिशूल उठाकर संकल्प लिया गुरु को बचाने का. वे नर्तकियों के साथ उनके ही वेश में गाने बजाने लगे. वे स्त्री-वेश में अपनी अदायें दिखा रहे थे साथ ही मृदंग भी बजा रहे थे. जब मत्स्येन्द्रनाथ ने उन्हें देखा तो उनकी की आंखें फटी की फटी ही रह गईं. उन्होंने ध्यान से सुना तो पाया कि एक नर्तकी के मृदंग से साफ आवाज आ रही थी कि जाग मछन्दर गोरख आया. मत्स्येन्द्रनाथ बेहाल हो गए. सिर चकरा गया. गौर से देखा तो सामने चेला खड़ा है गुरु शर्मसार हो गए. गुरु गोरखनाथ अपने गुरु को माया से मुक्त करा के वापस ले गए. प्रसिद्ध लेखक डॉ. विश्वंभरनाथ उपाध्याय ने इस संबंध में एक उपन्यास भी लिखा हैं जिसका नाम जाग मछन्दर गोरख आया है. डॉ. विश्वंभरनाथ उपाध्याय ने राजनैतिक परिवर्तन और सहित्यक आचरण के विषयों पर अपने-सशक्त उपन्यासों के कारण बहुत ही प्रख्याति प्राप्त की हैं.
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी लोककथाओं और जनश्रुतियों के आधार पर है. यह सम्प्रदाय भारत का परम प्राचीन, उदार, ऊंच-नीच की भावना से परे और योगियों का सम्प्रदाय है किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. बताई गई किसी भी बात का News18 व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.)
Tags: Gorakhnath Temple, History of India
FIRST PUBLISHED :
October 2, 2024, 19:31 IST