चीन के साथ रिश्ते किस तरह आगे बढ़ रहे हैं? एलएसी पर हमारी स्थिति क्या है? और क्या चीन की सेना वापस लौट गई? विदेश मंत्री एस जयशंकर ने लोकसभा में इसके बारे में एक-एक बात बताई. कहा, अप्रैल-मई 2020 में चीन के सैनिकों के इकट्ठा हो जाने से टकराव की जो नौबत बनी थी, उसमें काफी हद तक सुधार हुआ है. सेनाएं पीछे हटी हैं और हम डी-स्केलेशन की प्रक्रिया में हैं. यानी दोनों देशों की सेनाएं अपने कैंप में वापस लौटने वाली हैं. ऐसा कैसे हुआ? जो चीन पीछे हटने को तैयार नहीं था, वह अचानक नरम कैसे पड़ गया. उसकी भाषा कैसे बदल गई. इसके पीछे नेहरू के पंचशील सिद्धांत नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वो 7 कूटनीतिक कोशिश है, जो चीन के साथ हमारा रिश्ता तय कर रही है.
1. मोदी-जिनपिंग का डायरेक्ट कनेक्शन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच खास रिश्ता है. दोनों आमने-सामने बात करते हैं. चीनी राष्ट्रपति 2014 में भारत दौरे पर आए तो गुजरात में उनकी शाही आवभगत की गई. लगा कि रिश्ता परवान चढ़ रहा है. मगर 2020 में पूर्वी लद्दाख में सैनिकों की झड़प से रिश्ते रसातल में पहुंच गए. कनेक्शन टूटता नजर आया. 5 साल तक दोनों नेताओं के बीच कोई बात नहीं हुई. मगर दोनों ने रिश्ते सुधारने का मौका नहीं छोड़ा. दोनों देशों के प्रतिनिधि बातचीत करते रहे. एक दिन रिश्ते फिर सुधरे और रूस में दोनों नेता हाथ मिलाते नजर आए. पीएम मोदी साफ कह चुके हैं कि चीन हो या पाकिस्तान, उनका इरादा बिल्कुल स्पष्ट है. वे आंख में आंख डालकर बात करने की बातें करते हैं. ये बात जिनपिंग को भी समझ में आ गई है.
2. राजनाथ सिंह की पैनी नजर
पूर्वी लद्दाख में तनाव के बाद मोदी-जिनपिंग की बात भले न हुई, लेकिन रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की चीन की हर हरकत पर पैनी नजर थी. उन्होंने आर्मी को चीन के सामने खड़ा कर दिया. साफ संदेश था कि कोई भी हरकत हो तो जवाब दें. बर्फीली वादियों में जब चीन के सैनिक कांपते नजर आ रहे थे, तब हमारे बहादुर जवान उनके सामने सीना तानकर खड़े थे. इसने चीन को झुकने पर मजबूर कर दिया.
3. जयशंकर की कूटनीति
सबसे अहम रही विदेश मंत्री एस जयशंकर की कूटनीति. उन्होंने हर मंच से चीन को संदेश दिया कि भारत उनके आगे झुकने के लिए कतई तैयार नहीं है. लेकिन पर्दे के पीछे से दोनों देशों के बीच बातचीत भी उन्होंने जारी रखी. खुद चीन के विदेश मंत्री से मिले. वहीं से रिश्ते सुधरने का रास्ता तैयार हुआ. और 21 अक्तूबर को सैनिकों की पेट्रोलिंंग को लेकर बड़ा ऐलान हुआ. सेनाएं पीछे हट गईं.
4. डोभाल की सधी रणनीति
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन सीमा विवाद को सुलझाने की जिम्मेदारी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को सौंपी. उन्हें पूरी पॉवर दी गई. नेताओं से बात करने की छूट दी गई. नतीजा सबके सामने है. उन्होंने कई बार चीन के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की. लेकिन सबसे अहम मुलाकात 12 सितंबर को सेंट पीटर्सबर्ग में हुई. जहां से एलएसी पर गतिरोध दूर करने का रास्ता खुल गया.
5. एलएसी के लिए स्पेशल रिप्रजेंटेटिव
पीएम मोदी और चीन के राष्ट्रपति ने एलएसी विवाद सुलझाने के लिए स्पेशल रिप्रेजेंटेटिव लगाए थे. इसमें भारत की ओर से नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर अजीत डोभाल तो चीन की ओर से विदेश मंत्री वांग यी शामिल थे. इन्हीं दोनों को जिम्मेदारी सौंपी गई कि किसी भी तरह से इस मुद्दे को हल करें. भारत में चीन के राजदूत जू फेइहोंग को भी इस बातचीत का हिस्सा बनाया गया था.
6. वर्किंग मैकेनिज्म फॉर कंसल्टिंग एंड कोऑपरेशन
भारत-चीन सीमा विवाद को हल करने के लिए वर्किंग मैकेनिज्म फॉर कंसल्टिंग एंड कोऑपरेशन (WMCC) का गठन किया गया. 31 बार इसकी बैठक हुई. कभी दिल्ली में तो कभी चीन की राजधानी बीजिंग में. इसमें दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्रालयों के प्रतिनिधि शामिल हैं. विवादित मामलों का निपटारा इसी फोरम में होता है. एलएसी पर तनाव के बाद 17 बार इसकी मीटिंग हो चुकी है.
7. कार्प्स कमांडर की ग्राउंड रिपोर्ट
दोनों देशों के प्रतिनिधियों के बीच बातचीत तो हो ही रही थी, सेना भी पीछे नहीं थी. दोनों देशों के बीच कोर कमांडर स्तर की 22 बार बैठक हुई. चुशुल-मोल्डो बॉर्डर पर बैठकर आगे की रणनीति तय होती रही. कहां से सेनाएं कैसे पीछे हटेंगी, इसकी रणनीति यहीं पर बनी. कई बार इस मीटिंग में आर्मी के टॉप कमांडर भी शामिल हुए. उनकी ग्राउंउ रिपोर्ट ने दोनों देशों के बीच रिश्ते की नई नींव तैयार की.
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FIRST PUBLISHED :
December 3, 2024, 16:20 IST