पश्चिमी चंपारण में मिला ऐसा अनोखा सांप, 1936 में दिखा था पहली बार, विशेषज्ञों को भी नहीं है इसकी पूरी जानकारी
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पश्चिमी चंपारण में मिला ऐसा अनोखा सांप, 1936 में दिखा था पहली बार, विशेषज्ञों को भी नहीं है इसकी पूरी जानकारी
प्रतीकात्मक तस्वीर
रिपोर्ट- आशीष कुमार
पश्चिम चम्पारण: लगातार हो रही बारिश और गंडक के जलस्तर में हुई बढ़ोतरी की वजह से इन दिनों वाल्मीकि टाइगर रिज़र्व के क्षेत्रों में तरह तरह के दुर्लभ और अनोखे जीव देखे जा रहे हैं. बुधवार की दोपहर भी वीटीआर के क्षेत्र में एक अनोखे सांप का रेस्क्यू किया गया है. जानकारों की माने तो इस सांप को रेड कोरल कुकरी स्नेक के नाम से जाना जाता है जो विषहीन होते हैं. वाल्मीकि टाइगर रिज़र्व में इसे करीब 2 साल पहले जटाशंकर नाका के पास देखा गया था. मुख्य रूप से ये रात्रिचर होते हैं जो दिन के बजाय रात में ज्यादा सक्रिय रहकर शिकार करना पसंद करते हैं.
पहली बार 1936 में देखा गया यह सांप
बता दें कि सांप का रेस्क्यू वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (देहरादून) के फील्ड असिस्टेंट मुकेश कुमार ने वाल्मीकि नगर निवासी शंभू सिंह के घर से किया. रेस्क्यू के बाद इसे सुरक्षित रूप से पुनः जंगल में छोड़ दिया गया है. बकौल मुकेश, यह सांप भारत में अत्यंत दुर्लभ है और इसकी उपस्थिति वन्यजीव विशेषज्ञों के लिए बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है. यही कारण है कि इस सांप की प्रजाति को संरक्षित श्रेणी में रखा गया है. जानकारों की मानें तो इस सांप को पहली बार सन 1936 में दुधवा नेशनल पार्क में देखा गया था. इसके दांतों की विशेषता और नारंगी-लाल रंग के कारण इसे रेड कोरल कुकरी स्नेक कहा जाता है.
दुर्लभ के साथ संरक्षित है यह सांप
पिछले 22 वर्षों से कार्यरत वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट स्वप्निल बताते हैं कि यह सांप जहरीला नहीं है फिर भी अपनी दुर्लभता के कारण यह शोध का विषय बना हुआ है. वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची 4 के तहत सूचीबद्ध यह सांप अति दुर्लभ श्रेणी में आता है और इसे संरक्षित किया जाता है. यह सांप इतना दुर्लभ है कि इसे भारत में बेहद कम ही देखा गया है. यही कारण है कि इस दुर्लभ सांप को लेकर जितना शोध कार्य होना चाहिए वह अब तक नहीं हो पाया है.
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FIRST PUBLISHED :
October 9, 2024, 19:46 IST