1400 फिट ऊंची पहाड़ी पर विराजित माता
मनमोहन सेजू / बाड़मेरः आज नवरात्रि का दूसरा दिन है. माता के भक्त उपवास रखकर मंदिरों में जाकर धोक लगाते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं. इन दिनों देश के सभी मंदिरों में भारी भीड़ देखने को मिल रही है. लेकिन आज हम आपको राजस्थान के एक ऐसे मंदिर की दिलचस्प कहानी बताने जा रहे हैं, जो कि पश्चिम सरहद पर स्थित है. जिसके चरणों में पूरा बाड़मेर बसा हुआ है. इतना ही नहीं, 1971 के युद्ध के दौरान पाकिस्तानी लड़ाकू विमानों ने इस क्षेत्र में बमबारी की, लेकिन यहां किसी का भी बाल बांका नहीं हुआ.
बाड़मेर शहर का सबसे पुराना जोगमाया गढ़ मंदिर लाखों लोगों की आस्था का प्रतीक माना जाता है. इस मंदिर में नवरात्रि के दिनों में हजारों लोग पहुंचकर माताजी के दर्शन करने आते हैं. इसी के समकालीन नागणेच्चियां माता का मंदिर गढ़ मंदिर के नीचे स्थित हैं. गढ़ मंदिर की स्थापना के बाद ही बाड़मेर शहर की स्थापना हुई थी. इससे पहले यहां आबादी नहीं थी. 16वीं शताब्दी में रावत भीमा ने बाड़मेर की ऊंची पहाड़ी पर जोगमाया गढ़ मंदिर की स्थापना की, जो आज लाखों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है.
1400 फीट ऊंची पहाड़ी पर बसा मंदिर
मंदिर ट्रस्ट के व्यवस्थापक गोरधन सिंह ने Local18 से बातचीत में कहा कि, यह मंदिर 1400 फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है, इस मंदिर के प्रति बाड़मेर के लोगों की अटूट आस्था है. यह ऐसी पहाड़ी थी, जिस पर कोई भी सीधी चढ़ाई नहीं कर सकता था. साल 1965 और 1971 की लड़ाई में दुश्मन पाकिस्तान की ओर से की गई बमबारी का असर इस पहाड़ी पर नहीं हुआ.
16वीं शताब्दी में स्थापित हुआ था मंदिर
मान्यता ऐसी है कि नवरात्रि के दौरान जो भी भक्त यहां सच्चे मन से माता रानी की पूजा-अर्चना करता है, तो मां उसकी सभी मुरादें पूरी कर देती हैं. व्यवस्थापक गोरधन सिंह ने आगे कहा कि 16वीं शताब्दी में स्थापित हुए इस मंदिर में करीब 500 सीढियां हैं. शहर की सबसे ऊंची पहाड़ी पर इसको स्थापित किया गया है. माता के चरणों पर पूरा बाड़मेर बसा हुआ है.
बमबारी में सीढ़ियों पर सोते थे शहरवासी
गोवर्धन सिंह ने आगे कहा कि 1971 के युद्ध के दौरान पाकिस्तानी लड़ाकू विमान बाड़मेर शहर तक पहुंच गए थे. और 20 से 22 बार पाकिस्तानी विमानों ने शहर को तबाह करने की कोशिश की, लेकिन हर बार नाकाम रहे. इसका मुख्य कारण यह था कि बॉर्डर की तरफ से जब विमान शहर की ओर बढ़ते थे और जोगमाया गढ़ मंदिर की पहाड़ी के ऊपर पहुंचते थे, तो उन्हें तलहटी में बसे शहर का पता चलता था.
बमबारी में भी शहर का नुकसान नहीं
ऐसे में अचानक बमबारी के दौरान शहर को निशाना नहीं बना पाए. प्रत्येक बार निशाने चूक जाने के कारण शहर सुरक्षित रहा. इसी वजह से देवी के प्रति लोगों में अटूट आस्था बनी हुई है. युद्ध के दौरान भारी बमबारी के बावजूद बाड़मेर शहर का कुछ भी नुकसान नहीं हुआ. यहां के लोग उस समय रात को जोगमाया गढ़ मंदिर की सीढ़ियों पर सोते थे.
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FIRST PUBLISHED :
October 4, 2024, 10:49 IST