एक अनूठे अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि एक सोने के चीजों वाले खजाने में दो चीजें ऐसी धातु से बनी थी जो पृथ्वी से नही ...अधिक पढ़ें
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- Last Updated : November 16, 2024, 19:33 IST
किसी खज़ाने में कोई कीमती चीज अगर जांच में कुछ ज्यादा ही अनमोल चीज मिल जाए तो किसी की भी हैरानी होगी. लेकिन ऐसा होना आसान नहीं है क्योंकि हर किसी की अनमोल वस्तु की पहचान नहीं होती है. लोग तो प्रचलित सोने तक को कई बार नहीं पहचान पाते हैं और कई बार लोगों के पास खज़ाना होता है और उन्हें पता ही नहीं होता है कि जो उनके पास है वजह खजाने की तरह बेशकीमती है. पुरातत्वविदों के साथ अनूठा अनुभव तब हुआ जब उन्होंने एक पुराने जमाने के खज़ाने का ही गहराई से अध्ययन किया और पाया कि उसमें एक गहने में जो धातु है वह तो पृथ्वी की है ही नहीं, वह तो पृथ्वी से बाहर की है. इसी वजह से वह गहना बेशकीमती हो गया.
क्या था इस खजाने में मामूली सा दिखने वाला खास?
इबेरिया में कांस्य युग की सोने के खाजाने में शोधकर्ताओं को एक अनूठा जग लगा जोड़ा हाथ लगा जो उस खज़ाने किसी भी दूसरी चीज़ के मुकाबले कहीं ज्यादा कीमती था. इस खजाने में शोधकर्ताओं को एक फीका सा दिखने वाला कंगन और खोखला जंग लगा आधा गोला दिखाई दिया था जिसमें सोने की नक्काशी थी, लेकिन उन्होंने अध्ययन में पाया कि वह जिस धातु से बने हैं, वह पृथ्वी के अंदर से तो निकली ही नहीं है.
कौन सी थी धातु?
स्टडी में पाया गया है कि यह धातु कोई और नहीं बल्कि लोहा थी, लेकिन यह लोहा पृथ्वी के अंदर से नहीं बल्कि उलकापिंडों से आया था जो अंतरिक्ष से धरती पर गिरे थे. इस खोज का खुलासा स्पेन के राष्ट्रीय पुरातत्व संग्रहालय के अब रिटायर हो चुके संरक्षण प्रमुख, साल्वाडोर रोविरा-लोरेन्स के नेतृत्व में की गई जनवरी में प्रकाशित एक शोधपत्र में किया गया था. यह बताता है कि 3,000 साल से भी अधिक पहले इबेरिया में धातुकर्म तकनीकें हमारी सोच से कहीं अधिक उन्नत थीं.
पुरातत्वविदों को इस गोलार्द्ध के आयु ने हैरत में डाल दिया था. (तस्वीर:Villena-museum)
संग्रह की चीजों के बनने का समय तय करना मुश्किल
सोने की वस्तुओं के भण्डार के रूप में मशहूर, विलेना का खजाना 60 साल से भी पहले 1963 में स्पेन के वर्तमान एलिकांटे में खोजा गया था, और तब से इसे इबेरियन प्रायद्वीप और पूरे यूरोप में कांस्य युग की स्वर्णकारी के सबसे अहम मिसालों में से एक माना जाता है. संग्रह की चीजों के बनने का समय निर्धारित करना कुछ हद तक मुश्किल था. इसकी वजह दो वस्तुएं थीं. एक छोटा, खोखला गोलार्ध, जिसे राजदंड या तलवार की मूठ का हिस्सा माना जाता है. और दूसरा एक एकल, टोर्क जैसा कंगन. दोनों में पुरातत्वविदों ने लोहे की मौजूदगी पाई है.
इन्हीं दोनों के बनने का समय बना पहेली
इबेरियन प्रायद्वीप में, लौह युग लगभग 850 ईसा पूर्व तक शुरू नहीं हुआ था. तब पिघला हुआ स्थलीय लोहा कांस्य की जगह लेने लगा था. समस्या यह है कि सोने की सामग्री को 1500 और 1200 ईसा पूर्व के बीच का माना गया है. इसलिए विलेना के खजाने के लिहाज से यह पता लगाना कि लोहे जैसी दिखने वाली कलाकृतियां कब की हैं, एक पहेली की तरह रहा है.
वैज्ञानिकों ने पाया कि दोनों चीजों को लोहा असल में उल्कापिंड का लोहा था. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
पृथ्वी से बाहर का था लोहा
पृथ्वी की पर्पटी से लौह अयस्क ही एकमात्र ऐसा स्थान नहीं है जहां से लचीले लोहे का स्रोत मिलता है. दुनिया भर में लौह युग से पहले की कई लौह कलाकृतियां हैं जिन्हें उल्कापिंडों के पदार्थ से बनाया गया था. शायद सबसे प्रसिद्ध फिरौन तूतनखामुन का उल्कापिंड लोहे का खंजर है, लेकिन इस सामग्री से बने अन्य कांस्य युग के हथियार भी हैं, और वे बहुत बेशकीमती थे.
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उल्कापिंड के लोहे में निकल की मात्रा पृथ्वी के लोहे की तुलना में कहीं अधिक होती है. इसलिए शोधकर्ताओं ने विलेना के म्यूनिसिपल पुरातत्व संग्रहालय से, दोनों कलाकृतियों का सावधानीपूर्वक परीक्षण करने तथा यह पता लगाने की इजाजत ली कि उनमें कितनी मात्रा में निकल है. दोनों में अधिक जंग लगने के बावजूद वे यह पता लगाने में सफल रहे कि उनमें उल्कापिंड के लोहे का इस्तेमाल हुआ है. इसी वजह से उनके बनने की समय की भी गुत्थी सुलझ सकी. नहीं वे यह जानकर कर परेशान थे कि आखिर इतना सारा लोहा लोह युग से पहले कैसे निकलने लगा. अध्ययन के नतीजे ट्रैबाजोस डि प्रिहिस्टोरिया में प्रकाशित किए गए थे.
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FIRST PUBLISHED :
November 16, 2024, 19:33 IST