Agency:NEWS18DELHI
Last Updated:January 27, 2025, 09:59 IST
Delhi Election 2025: उस समय के चुनावों को याद करते हुए भूपेंद्र ने बताया कि जब उस समय विपक्षी पार्टी सत्ता धारी पार्टी पर कई आरोप लगाती थी, तो सत्ता में रहने वाली पार्टी हमेशा इस बहाने का इस्तेमाल करती थी कि य...और पढ़ें
दिल्ली के वरिष्ठ नागरिक वोटर ने सुनाई कई दिलचस्प चुनावी कहानीयां जरूर सुने आप भी
हाइलाइट्स
- 1971 में भूपेंद्र ने पहली बार बैलट पेपर से वोट दिया था.
- पुराने चुनावों में सत्ता पार्टी बाहरी ताकतों का बहाना बनाती थी.
- पहले प्रचार ऑटो या स्कूटर पर बैनर लगाकर होता था.
दिल्ली: दिल्ली चुनाव के मतदान का दिन जैसे-जैसे करीब आता जा रहा है, वैसे-वैसे दिल्ली वाले दिल्ली के मुद्दों को लेकर काफी ज्यादा मुखर रूप से सामने आ रहे हैं. लेकिन इसी बीच लोकल 18 की टीम ने एक नई मुहिम की शुरुआत की है. दिल्ली के कई अलग-अलग वोटरों से बात करके उनके चुनावी अनुभव और मुद्दों को अपने पाठकों के सामने लाने का काम किया जा रहा है. भूपेंद्र कुमार जो कि 74 साल के दिल्ली के एक वरिष्ठ नागरिक हैं, वह अपने सामने होने वाले कई चुनावों के अनुभव और कहानियों को हमसे और आपसे साझा करने जा रहे हैं.
1971 में दिया था बैलट पेपर से पहली बार वोट
भूपेंद्र ने बताया कि उन्होंने 1971 में पहली बार लोकसभा चुनाव में मतदान किया था. उनका यह भी कहना था कि सरकारी नौकरी में होने के कारण उनकी इलेक्शन ड्यूटी भी लगी थी. जहां उन्हें याद है कि उन्होंने कई तरह की लिस्टे भी बनाई थी, जो अलग-अलग क्षेत्र के लोगो की थी. उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने तब बैलट पेपर के द्वारा वोट दिया था. जो कि एक अलग तरह का अनुभव था. क्योंकि उसमें काफी ज्यादा वक्त लगता था और तभी उन्होंने यह भी कहा कि अब ईवीएम से वोट डालना काफी ज्यादा आसान है, क्योंकि अब समय कम लगता है, तो आप वोट देकर अपने काम पर या फिर घर वापस जल्दी जा सकते हैं.
तब सत्ता में रहने वाली पार्टी देती थी हमेशा ये बहाना
उस समय के चुनावों को याद करते हुए भूपेंद्र ने बताया कि जब उस समय विपक्षी पार्टी सत्ता धारी पार्टी पर कई आरोप लगाती थी, तो सत्ता में रहने वाली पार्टी हमेशा इस बहाने का बखूबी हर जगह इस्तेमाल करती थी कि यह सब कुछ जो भी हुआ है यह बाहरी विदेशी ताकतों की वजह से हुआ है और वह हमें अच्छे से काम नहीं करने दे रहे हैं. लेकिन इसके साथ-साथ उनका यह भी कहना था कि तब भाषा का प्रयोग बहुत ही सोच समझकर किया जाता था. किसी भी तरह की अमर्यादित भाषा का उपयोग तब कहीं सुनने को भी नहीं मिलता था.
मेनिफेस्टो होते थे ये, प्रचार किया जाता था ऐसे
मेनिफेस्टो पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि तब अक्सर मेनिफेस्टो सिर्फ कपड़ा, रोटी, मकान और नौकरी के वादों पर पार्टियां बनाया करती थी. वहीं प्रचार के बारे में उनका कहना था कि तब अक्सर प्रचार किसी ऑटो या फिर स्कूटर के पीछे बैनर लगाकर किया जाता था. पॉलिटिकल पार्टियों के सभी प्रत्याशी घर जाकर वोट मांगते थे, जिसे डोर टू डोर कैंपेन कहा जाता था. जो कि अब समाप्त हो गई है. लेकिन अब सब कुछ सोशल मीडिया और बाकी टेक्नोलॉजी के द्वारा किया जाता है और यह बदलाव भी ठीक है, लेकिन भाषा की मर्यादा थोड़ी अब नेता लांघ चुके हैं.
Location :
Delhi,Delhi,Delhi
First Published :
January 27, 2025, 09:59 IST