प्रशांत किशोर का नेता होना ही उनको पड़ जाएगा भारी? लालू-नीतीश को कितना डैमेज

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प्रशांत किशोर ने जिन मुद्दों को उठाया है, वे आज बिहार की जनता की असली समस्‍या से जुड़े मुद्दे हैं.प्रशांत किशोर ने जिन मुद्दों को उठाया है, वे आज बिहार की जनता की असली समस्‍या से जुड़े मुद्दे हैं.

Prashant Kishor News: प्रशांत क‍िशोर नई तरह की राजनीति करने की कोशिश कर रहे हैं. अब उनकी जन सुराज पार्टी बिहार में एक न ...अधिक पढ़ें

    प्रशांत किशोर ने 2 अक्‍तूबर को महात्‍मा गांधी (और लाल बहादुर शास्‍त्री की भी) की जयंती के मौके पर पार्टी लॉन्‍च कर अपने जन सुराज अभियान को औपचारिक रूप से राजनीतिक अभियान में बदल दिया है. इस तरह यह तय हो गया है कि 2025 के विधानसभा चुनाव में बिहार की जनता के सामने एक नया विकल्‍प भी होगा.

    एक नए विकल्‍प के साथ सवाल यह भी होगा कि इस विकल्‍प पर जनता कितना भरोसा दिखाती है? यह भी कि उसे भरोसा क्‍यों दिखाना चाहिए और क्‍यों नहीं दिखाना चाहिए? दूसरे शब्‍दों में कहें तो करीब 35 साल से लालू-नीतीश के ही साये में रहती आ रही बिहार की जनता को प्रशांत किशोर और उनकी जन सुराज पार्टी से उम्‍मीदें पालनी या नहीं पालनी चाहिए? और क्‍यों? पहले इस पर बात करते हैं कि क्‍यों उम्‍मीदें पालनी चाहिए?

    नया विकल्‍प, मौका देकर देखते हैं
    1990 से बिहार का शासन लालू और नीतीश, इन्‍हीं दो नेताओं पर केंद्रित रहा है. ऐसे में एक नया विकल्‍प आया है, और पूरा होमवर्क करके आया है तो उसे पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता है. ‘वोट देकर देखते हैं’- इस सोच से देखें तो लोग प्रशांत किशोर से उम्‍मीद कर सकते हैं.

    जरूरी मुद्दों की बात
    प्रशांत किशोर ने जिन मुद्दों को उठाया है, वे आज बिहार की जनता की असली समस्‍या से जुड़े मुद्दे हैं. बिहार के बच्‍चे पढ़ने के लिए बाहर जा रहे हैं और नौजवान नौकरी के लिए. गांवों में वैसे बुजुर्गों की संख्‍या बढ़ रही है, जिनके घर में देखभाल के लिए कोई नहीं रह गया है. खेती की लागत बढ़ने और मुनाफा घटते जाने से किसान परेशान हैं.

    इन परिस्‍थ‍ितियों में प्रशांत किशोर ने शिक्षा, रोजगार, बुजुर्गों को प्रतिमाह 2 हजार रुपए की पेंशन, महिलाओं को रोजगार के लिए सस्‍ता कर्ज और खेती को फायदे का काम बनाने का वादा कर घर-घर की जरूरत का ख्‍याल रखा है. किशोर वादा पूरा करने का जो प्‍लान बता रहे हैं, वह भी पहली नजर में जनता को हवा-हवाई लगे, ऐसा नहीं है. इसलिए भी वह जनता को अपने ऊपर भरोसा करने का एक कारण दे रहे हैं.

    राजनीतिक पहल को भी जनअभियान से जोड़ा
    इसमें कोई शक नहीं है कि जन सुराज अभियान शुरू करने के पीछे का मकसद शुरू से ही राजनीति करना रहा था. लेकिन, प्रशांत किशोर ने इसे जन अभियान का रूप देते हुए आगे बढ़ाया. वह पदयात्रा निकालते हुए पूरे बिहार में जनता के बीच गए और एक संदेश दिया कि वह नई तरह की राजनीति करने की कोशिश कर रहे हैं, जिसके केंद्र में जनता ही होगी. साथ ही, चुनाव से पहले माहौल बनाने में भी इससे मदद मिली.

    राजनीतिक पार्टी का स्‍वरूप
    प्रशांत किशोर ने राजनीतिक पार्टी का जो स्‍वरूप रखा है, उसमें भी इस बात का ध्‍यान रखा है कि जनता को एक उम्‍मीद दिखे और ‘नई तरह की राजनीति’ करने का उनका दावा भी सच दिखे. उन्‍होंने मनोज भारती को जन सुराज पार्टी का पहला कार्यकारी अध्‍यक्ष बनाया जो भारतीय विदेश सेवा के पूर्व अधिकारी हैं और आईआईटी से पढ़े हैं. किशोर ने जाति का भी ख्‍याल रखते हुए अनुसूचित जाति का कार्यकारी अध्‍यक्ष चुना. उन्‍होंने अध्‍यक्ष का कार्यकाल भी एक साल का ही रखने का प्रावधान रखा.

    राइट टु रिकॉल का अधिकार देने वाला पहला दल
    प्रशांत किशोर ने जो सबसे अनोखी बात कही वह ‘राइट टु रिकॉल’ का अधिकार देने की बात कही. यह अधिकार अभी जनता को किसी रूप में कहीं से नहीं मिला है. न सरकार से, न ही किसी पार्टी से. प्रशांत किशोर ने कहा कि उनकी पार्टी के उम्‍मीदवारों का चयन भी जनता करेगी और विधायकों का काम पसंद नहीं आने पर सदन का कार्यकाल खत्‍म होने से पहले ही उन्‍हें हटवा भी सकेगी.

    व्‍यावहारिक रूप में प्रशांत किशोर इस व्‍यवस्‍था को अमल में कैसे लाएंगे, यह वक्‍त बताएगा. लेकिन, इसकी बात कर उन्‍होंने जहां जनता के बीच अपनी पार्टी को चर्चा का विषय बनाए रखने की कोशिश की है, वहीं मतदाताओं को उम्‍मीद पालने का एक और कारण भी दिया है.

    आंकड़ों में उम्‍मीद
    प्रशांत किशोर कहते हैं कि जन सुराज के साथ पहले दिन से ही एक करोड़ लोग जुड़े हैं, जबकि भाजपा मात्र 66 लाख सदस्‍य होने का दावा करती है. आंकड़ों के हिसाब से प्रशांत किशोर अपने लिए अभी से उम्‍मीद दिखा रहे हैं. 2020 के चुनाव में भाजपा को करीब 37 लाख वोट मिले थे. इस लिहाज से अभी से एक करोड़ सदस्‍य बना लेने का दावा करने वाले प्रशांत किशोर के लिए तो पटना दूर नहीं लगता है.

    बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में कुल 7,36,47,660 मतदाता थे. कुल 4,14,36,553 वैध मत पड़े थे. इनमें से सबसे ज्‍यादा 55,23,482 (23.45 प्रतिशत) वोट राजद को मिले थे. इसके बाद जदयू और भाजपा का नंबर था. 48,19,163 (20.46 प्रतिशत) वोट जदयू और 36,85,510 (15.64 प्रतिशत) मत भाजपा को मिले थे.

    इतना सब कुछ होने के बाद भी कुछ ऐसे भी कारण हैं, जो जनता को जन सुराज पार्टी पर उम्‍मीद नहीं जताने के लिए प्रेरित कर सकते हैं. अब उन कारणों की बात करते हैं.

    आम आदमी पार्टी का उदाहरण
    करीब 12 साल पहले दिल्‍ली में ऐसे ही एक नए राजनीतिक विकल्‍प के रूप में आम आदमी पार्टी (आप) का जन्‍म हुआ था. अरविंद केजरीवाल ने इसकी स्‍थापना की थी. केजरीवाल का तब तक राजनीति से कुछ लेना-देना नहीं था, जबकि प्रशांत किशोर तो राजनीति के आदमी सालों पहले बन गए थे. केजरीवाल ने भ्रष्‍टाचार के विरोध में खड़ा हुए एक जन आंदोलन से उपजी संभावनाओं को देखते हुए पार्टी बनाई थी. तब उनका भी यही दावा था कि वह ‘अलग तरह की राजनीति’ करने और ‘राजनीति को बदलने’ के लिए आए हैं. शुरू में उन्‍होंने भी रायशुमारी के जरिए उम्‍मीदवारों का चयन किया, क्राउड फंडिंग से पैसे जुटाए, वीआईपी कल्‍चर का विरोध किया. जनता ने पूरा भरोसा किया, लेकिन धीरे-धीरे उसके सारे सिद्धांत धराशाई होते गए. आप भी अन्‍य राजनीतिक दलों की भीड़ में शामिल एक दल बन कर ही रह गई.

    यह बात अलग है कि पार्टी को चुनाव में लोगों का समर्थन फिर भी मिलता रहा. लेकिन, दिल्‍ली की तुलना में बिहार का चुनाव एक मायने में एकदम अलग है. बिहार में वोट को जाति से अलग कर नहीं देखा जा सकता है, लेकिन दिल्‍ली में अमूमन गरीब-अमीर के आधार पर वोट बंटता है. जाति के हिसाब से न के बराबर। केजरीवाल को चुनावी समर्थन मिलते रहने की यह भी एक बड़ी वजह है.

    प्रशांत किशोर ने पारदर्श‍िता पर ज्‍यादा जोर नहीं दिया है. इस सवाल का साफ-साफ जवाब देने से वह लगातार बचते रहे हैं कि दो साल से जन सुराज अभ‍ियान चलाने के लिए उनके पास पैसे कहां से आए या अब पार्टी चलाने और उम्‍मीदवारों को चुनाव लड़वाने के लिए पैसों का इंतजाम कहां से करेंगे? इस मुद्दे पर उनके विरोधी लगातार उन्‍हें घेरते भी रहे हैं.

    प्रशांत किशोर हैं नेता, बातें करते हैं एक्टिविस्‍ट जैसी
    प्रशांत किशोर पहले राजनीति से जुड़े एक प्रोफेशनल थे. इसके बाद खुद नेता बन गए. जदयू में शामिल होकर पद भी लिया. वास्‍तव में जब वहां कामयाबी नहीं मिली, उसके बाद ही उन्‍होंने ‘जन सुराज अभियान’ शुरू किया. इस अभियान के दौरान वह अपने को नेता से ज्‍यादा एक्‍ट‍िविस्‍ट दिखाने की कोशिश करते रहे. पर जनता उन्‍हें नेता ही मानती रही. और यह सच है कि आज के दौर में नेताओं की बातों पर जनता का ‘ट्रस्‍ट लेवल’ काफी कम रह गया है. पार्टी लॉन्‍च के कार्यक्रम में भी मंच पर उनके साथ कई नेता मौजूद थे.

    कार्यक्रम में ‘लाए गए’ लोग और भीड़ का रवैया
    पार्टी लॉन्‍च करने के लिए प्रशांत किशोर ने पटना में दो अक्‍तूबर को जो कार्यक्रम किया, उसमें लोगों की मौजूदगी भी जन सुराज के भविष्‍य को लेकर बहुत कुछ संकेत दे गई. एक तो एक करोड़ सदस्‍य संख्‍या के हिसाब से लोग कम दिखे. दूसरा, बाकी पार्ट‍ियों की तरह यहां भी बड़ी संख्‍या में लोग ‘लाए गए’ थे. वे स्‍वयं आए नहीं थे.

    एक करोड़ सदस्‍य बनाने का दावा करने वाले प्रशांत किशोर के कार्यक्रम में दो अक्‍तूबर को जुटी भीड़ और भीड़ की ठंडी प्रतिक्र‍िया देख कर यह कहा जा सकता है कि सदस्‍य संख्‍या को वोट में परिवर्त‍ित कराना उनके लिए आसान नहीं होगा.

    Tags: Bihar Assembly Elections, Bihar News, Lalu Yadav, Nitish kumar, Patna News Today, Prashant Kishor

    FIRST PUBLISHED :

    October 3, 2024, 18:46 IST

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