Last Updated:February 08, 2025, 20:15 IST
Reasons of AAP decision successful Delhi Assembly Election: दिल्ली विधानसभा चुनाव में 27 साल बाद भाजपा को वापसी का मौका मिला है. आम आदमी पार्टी (AAP) ने अपनी ऐसी दुर्दशा की बात सपने में भी नहीं सोची होगी. भाजपा को जरूर अ...और पढ़ें
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अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी (AAP) की ऐसी दुर्दशा की बात सपने में भी नहीं सोची होगी.
हाइलाइट्स
- भाजपा ने दिल्ली चुनाव में 27 साल बाद वापसी की.
- AAP नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोपों ने पार्टी को कमजोर किया.
- बिजली-पानी की समस्याओं ने केजरीवाल की छवि को नुकसान पहुंचाया.
अन्ना आंदोलन की उपज आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल की इस तरह दुर्गति होगी, यह उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा होगा. जन साधारण अरविंद केजरीवाल को वैकल्पिक राजनीति का प्रतीक मानने लगा था. तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी भी भाजपा और कांग्रेस का विरोध करती रही हैं, लेकिन बंगाल से बाहर के लोग उन पर उतना भरोसा नहीं कर पाते. अरविंद केजरीवाल के साथ ऐसी बात नहीं थी. उन्हें लोग नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के विकल्प के तौर पर देखने लगे थे.
रेवड़ी कल्चर की शुरुआत कर केजरीवाल ने दिल्ली में जड़ें ही जमा ली थीं. पंजाब को भी आप ने साध लिया. ऐसे में कोई सोच भी नहीं सकता था कि आम आदमी पार्टी 10 साल में ही इस गति को प्राप्त हो जाएगी. भाजपा की सतत कोशिश, कड़ी मेहनत और कुशल रणनीति ने हरियाणा और महाराष्ट्र के बाद दिल्ली में भी पार्टी का झंडा गाड़ दिया है. आम आदमी पार्टी का ऐसा हाल क्यों हुआ, इसकी पड़ताल करें तो इसके कई कारण नजर आते हैं.
AAP के नेताओं का दागदार होना
आम आदमी पार्टी की स्थिति उसके नेताओं के दागदार होने के कारण बिगड़नी शुरू हुई तो बिगड़ती ही चली गई. आप के शासन के दूसरे कार्यकाल में सत्येंद्र जैन से शुरू हुआ गिरफ्तारी का सिलसिला मनीष सिसोदिया और संजय सिंह से होते हुए अरविंद केजरीवाल तक पहुंचा. दिल्ली के लोगों को इस बात से भी गुस्सा था कि जेल में रहते केजरीवाल ने सीएम पद नहीं छोड़ा. यह उनकी जिद थी. शीर्ष कोर्ट से लेकर विपक्षी भाजपा तक ने इसके लिए उनकी आलोचना की. फिर भी केजरीवाल को कोई फर्क नहीं पड़ा. इस्तीफा उन्होंने तब दिया, जब वे जेल से जमानत पर छूटे. केजरीवाल ने आप नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को केंद्रीय जांच एजेंसियों के मत्थे मढ़ कर भाजपा को कठघरे में खड़ा करने की पूरी कोशिश की. पर, पब्लिक को यह बात समझ में आ चुकी थी कि कुछ तो गड़बड़ हुआ ही है. उसी गड़बड़ का हिसाब जनता ने चुनाव में चुकता कर लिया है.
बिजली-पानी की होने वाली परेशानी
अरविंद केजरीवाल के सत्ता में आने की राह इसलिए भी आसान हुई थी कि उन्होंने खैरात खूब बांटे. बिजली-पानी और दूसरी कई सेवाओं-सुविधाओं को मुफ्त कर दिया. अवैध कालोनियों को वैध बनाने का वादा किया. पर, बिजली-पानी का जो संकट लोगों ने झेला, वह केजरीवाल के लिए काल बन गया. अवैध कालोनियां भी वैध नहीं हो पाईं. अपने ही बुने जाल में अरविंद केजरीवाल उलझ गए. उनके खिलाफ एंटी इनकम्बैंसी इन वजहों से जबरदस्त रहा. निम्न आय वर्ग की बड़ी जमात आम आदमी पार्टी से इसलिए जुड़ी थी कि उसे केजरीवाल की मुफ्त और रियायती घोषणाएं रास आई थीं. पर, इस बार उन्हें इसका वैसा लाभ नहीं मिला, जैसा सोचा था या पहले मिलता रहा था.
बिहार-यूपी के लोगों के खिलाफ बोल
दिल्ली में पूरबियों या पूर्वांचलियों के रूप में मशहूर बिहार-यूपी के लोगों पर अरविंद केजरीवाल कई बार रूखी टिप्पणी कर चुके हैं. एक बार उन्होंने कहा था कि बिहार-यूपी के लोग 500 रुपए लगा कर दिल्ली आते हैं और पांच लाख का मुफ्त इलाज करा कर चले जाते हैं. दिल्ली में तकरीबन 40-42 प्रतिशत वोटर पूर्वांचली माने जाते हैं.
दिल्ली की कुल 70 सीटों में आधे से भी अधिक पर पूर्वांचली वोटर निर्णायक हैं. लक्ष्मी नगर, पड़पड़गंज, राजेंद्र नगर, बादली, मॉडल टाउन, घोंडा, करावल नगर, किराड़ी, रिठाला, छतरपपुर, द्वारका, पालम, विकासपुरी, बदरपुर, संगम विहार और जनकपुरी जैसी 15-20 सीटों पर पूर्वांचली वोटरों का वर्चस्व है. पिछली बार तो पूर्वांचली लोगों ने केजरीवाल की टिप्पणी को गंभीरता से नहीं लिया, लेकिन इस बार भाजपा के प्रभाव में पूर्वांचल के लोग आ गए.
केजरीवाल की केंद्र सरकार से लड़ाई
दिल्ली के लोगों को अरविंद केजरीवाल की केंद्र सरकार से लड़ाई भी रास नहीं आई. अरविंद केजरीवाल का दूसरा कार्यकाल तो केंद्र से लड़ाई-झगड़े में ही बीता है. उनका और उनके कई नेताओं-मंत्रियों के जेल जाने के पीछे भी यह लड़ाई ही रही है. केंद्र सरकार ने अपनी जांच एजेंसियों के जरिए हवाला और भ्रष्टाचार के मामले उजागर कराए.
लगातार 10 साल तक आम आदमी पार्टी की सरकार के काम देख चुके दिल्ली वासियों का मन इस वजह से ऊब गया था, यह चुनाव नतीजों से जाहिर होता है.
दिल्ली और पंजाब में शासकीय उपस्थित के बावजूद केजरीवाल का कोई चमत्कारिक करिश्मा अब तक किसी ने नहीं देखा, सिवा मुफ्त और रियायतों को. केंद्र से लड़ाई के चक्कर में केजरीवाल ने स्वास्थ्य क्षेत्र की महत्वाकांक्षी योजना आयुष्मान भारत के लाभ से भी दिल्ली वासियों को वंचित रखा. यानी केजरीवाल के प्रति दिल्ली के लोगों का गुस्सा अचानक नहीं, बल्कि पिछले 10 साल में झेली गई तबाहियों का परिणाम है.
आम बजट में मिडिल क्लास को राहत
रही सही कसर केंद्रीय बजट में मिडिल क्लास के लोगों के लिए की गई घोषणाओं ने पूरी कर दी. दिल्ली में तकरीबन 45 लाख लोग मिडिल क्लास के माने जाते हैं. आयकर स्लैब की बढ़ी सीमा से नौकरी पेशा लोगों को बड़ी राहत मिली है. भाजपा ने अरविंद केजरीवाल की योजनाओं को भी जारी रखने की घोषणा की थी. ऊपर से कुछ अतिरिक्त घोषणाएं भी भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में की हैं. भाजपा ने यह संकेत दिल्ली वालों को दे दिया था कि केंद्र के साथ राज्य में भी अगर भाजपा की सरकार रही तो फायदे दोहरे होंगे.
मुस्लिम वोटों के बंटवारे से भी बंटाधार
पिछले दो चुनावों से मुस्लिम वोटर आम आदमी पार्टी को वोट करते रहे हैं. केजरीवाल को इस बार भी मुस्लिम मतदाताओं पर पूरा भरोसा था. कांग्रेस के एकला चलने के फैसले ने मुसलमान मतदाताओं में विभाजन करा दिया. दिल्ली दंगे पर केजरीवाल की चुप्पी से भी मुसलमान आप से खफा थे. कांग्रेस ने अपनी उपस्थिति से मुसलमानों को बदला चुकाने का विकल्प दे दिया. आम आदमी पार्टी की इस हालत के लिए सिर्फ भाजपा को ही जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं. सच कहें तो इसमें कांग्रेस की भूमिका को भी खारिज नहीं किया जा सकता है.
Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
February 08, 2025, 20:11 IST