झांसी. हर राज्य और प्रांत में दशहरा अलग-अलग परंपरा के अनुसार मनाया जाता है. बुंदेलखंड में दशहरे के दिन एक दूसरे को पान खिलाने की परंपरा है. इसे बुन्देली में “दशवरा मिलन” कहा जाता है. एक तरफ रावण दहन होता है, तो वहीं दूसरी तरफ इस खुशी को मनाने के लिए पान की दुकानों पर भारी भीड़ लग जाती है. इसके लिए पान की दुकान चलाने वाले लोग भी भरपूर तैयारी करते हैं. जिस तरह दीवाली और रक्षाबंधन पर दुकान के बाहर भी मिठाई के स्टॉल लगाए जाते हैं, ठीक उसी तरह दशहरे पर पान के स्टॉल भी दुकान के बाहर लगाए जाते हैं. बच्चों के लिए विशेष तौर पर मीठा पान भी तैयार किया जाता है.
पान की दुकान चलाने वाले मनीष कुशवाहा ने बताया कि आधुनिक समय में यह पान आपसी सौहार्द्र का प्रतीक है. प्रचलित परंपरा कुछ ऐसी है कि बच्चे अपने बड़ों का आशीर्वाद लेते हैं और साथ ही पान खाकर यह संकल्प लेते हैं कि वो परिवार और देश का मान बढ़ाएंगे. एक अच्छे व्यक्ति और नागरिक के रूप में खुद को विकसित करेंगे. इस दिन विशेष तौर पर बच्चों के लिए चॉकलेट पान, ऑरेंज पान और मैंगो पान भी तैयार किया जाता है. झांसी और छाले ठीक करने के लिए भी पान तैयार किया जाता है.
आल्हा के जमाने से जुड़ी है परंपरा
दशहरे के दिन पान खिलाने की यह परंपरा आल्हा के ज़माने से चली आ रही है. पटेरिया बताते हैं कि यह परंपरा बुंदेलखंड के महोबा से शुरू हुई थी, जहां का पान का पत्ता भी दुनिया भर में मशहूर है. पहले यहां पान को बीरा कहा जाता था. उस समय जो योद्धा होते थे, वो संकल्प लेते थे और संकल्प लेने के साथ ही उन्हें एक बीरा उठाना होता था. यह प्रतीक था कि अब योद्धा वह काम निश्चित ही करेगा. संभवतः यहीं से इरादा करने के लिए ‘बीड़ा उठाना’ मुहावरा प्रचलित हुआ.
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FIRST PUBLISHED :
October 12, 2024, 17:43 IST