भारत में चीनी कंपनियों की मौज, लेकिन क्यों हैं Tesla की राह में कांटे?

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नई दिल्ली. भारत वाहनों का एक उभरता हुआ बाजार है. देश के ऑटोमोबाइल सेक्टर के ग्रोथ से आकर्शित होकर देश-दुनिया की कई बड़ी कंपनियां भारत में अपने वाहन बेचने की इक्षा जता रही रही हैं. अगर हाल ही के दिनों की बात की जाए तो टेस्ला (Tesla) जैसी बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी भी भारत में अपनी इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बेचना चाहती है. टेस्ला ने भारत सरकार से देश में अपनी इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बेचने की अनुमति लेने की पुरजोर कोशिश की, लेकिन कंपनी को आखिरकार निराशा हाथ लगी.

वहीं, दूसरी ओर चीन से मतभेद के बाद भी चीनी कंपनियां भारत में धड़ल्ले से अपनी गाड़ियां बेच रही हैं और साल-दर-साल नए-नए माॅडल्स भी लाॅन्च कर रही हैं. लेकिन दुनिया में अपनी इलेक्ट्रिक कारों का लोहा मनवाने वाली टेस्ला के लिए भारत में इतनी बंदिशें क्यों हैं और इसकी क्या वजह है? आज हम आपको इसी के बारें में बताने वाले हैं.

भारत में मिली चीनी कंपनियों को एंट्री
भारत में चीन की दो मुख्य कंपनियां बीवाईडी (BYD) और एमजी मोटर (MG Motor) अपनी गाड़ियां बेच रही हैं. बीवाईडी पूरी तरह से इलेक्ट्रिक गाड़ियां ही बेचती है, जबकि एमजी इंटरनल कम्बशन इंजन (ICE) के साथ इलेक्ट्रिक गाड़ियां भी बेचती है. दोनों कंपनियों के कुछ माॅडल्स भारत में ग्राहकों को खूब पसंद आ रहे हैं. एमजी अपनी इंटरनेट और पर्सनल AI असिस्टेंट टेक्नोलाॅजी से लैस एसयूवी के चलते काफी पाॅपुलर ब्रांड बन गई हैं, वहीं बीवाईडी की ब्लेड बैटरी टेक्नोलाॅजी के साथ आने वाली इलेक्ट्रिक कारें अपनी बेहतरीन सिंगल चार्ज रेंज, फीचर्स और परफाॅर्मेंस के चलते अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब हुई हैं.

एमजी ने भारतीय बाजार में साल 2018 में एंट्री की थी, जबकि बीवाईडी 2007 से ही घरेलू बाजार में मौजूद है. ये दोनों कंपनियां भारत में ही अपनी कारें बनाती हैं और उन्हें असेंबल भी करती हैं. अपनी बेहतरीन टेक्नोलाॅजी और सस्ती इलेक्ट्रिक गाड़ियों के चलते बीवाईडी टेस्ला के लिए कई बाजारों में चुनौती बन गई है.

टेस्ला की भारत में एंट्री क्यों मुश्किल?
भारत में टेस्ला के लिए सबसे बड़ी परेशानी सरकार की नई इलेक्ट्रिक वाहन नीति (New EV Policy) बन रही है, जिन्हें राष्ट्र हित के साथ-साथ घरेलू बाजार में निवेश और रोजगार सृजन को ध्यान में रख कर तैयार किया गया है. बता दें कि नई EV नीति के तहत भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों को बेचने की इच्छुक कंपनी को घरेलू बाजार में कम से कम 500 मिलियन यूएस डाॅलर, यानी तकरीबन 4150 करोड़ रुपये का निवेश करना होगा. भारत में प्लांट लगाने और बिक्री शुरू करने के लिए कंपनी को 3 साल का समय दिया गया है.

वहीं कंपनी को 5 साल के अंदर 50% डीवीए यानी डोमेस्टिक वैल्यू एडिशन का पालन करना होगा. इस नियम के तहत 5वें साल से कंपनी को अपनी गाड़ियों में लगने वाले 50% उपकरणों को घरेलू बाजार से खरीदना होगा. वहीं, अगर कंपनी नाॅक्ड डाउन कंपोनेंट्स (CKD) मंगाती है तो उसे 15 प्रतिशत की इम्पोर्ट ड्यूटी देनी होगी. चीनी कंपनियां भारत में इसी नियम का पालन करती हैं.

हालांकि, भारत में गाड़ियों को बेचने को लेकर टेस्ला कि प्लानिंग कुछ और ही है. टेस्ला ने भारत सरकार से पहले दौर की बातचीत में कहा था कि वह देश प्लांट लगाने के बजाए चीन से बनी बनाई गाड़ियों को लाकर बेचना चाहती है. इस वजह से सरकार ने टेस्ला को भारत में गाड़ियों को बेचने की परमिशन नहीं दी थी.

केवल 8,000 कारें ही होंगी इम्पोर्ट
नए नियमों के तहत अब कंपनी देश में साल भर में केवल 8000 यूनिट इलेक्ट्रिक कारें ही इम्पोर्ट कर सकती है, जिसकी कुल संख्या 40,000 यूनिट से ज्यादा नहीं हो सकती है. इसके अलावा, कस्टम ड्यूटी में छूट के लिए कंपनी को किसी बैंक को अपना गारंटर बनाएगी. डीवीए या न्यूनतम निवेश मानदंडों का पालन न करने की स्थिति में, बैंक गारंटी लागू की जाएगी.

भारत सरकार ने भी साफ लहजे में कहा है कि भारत में निवेश करने की इच्छुक कंपनियों को इसी नीति का पालन करना होगा. सरकार किसी भी ईवी कंपनी की मांग के अनुसार अपनी नीतियों में बदलाव नहीं करेगी.

Tags: Auto News, Car Bike News

FIRST PUBLISHED :

November 25, 2024, 16:22 IST

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