Agency:News18 Uttar Pradesh
Last Updated:January 21, 2025, 10:12 IST
Mahakumbh Mela 2025: न्यूज़18 से बातचीत में निरंजनी अखाड़ा के महामंडलेश्वर ललितानंद महाराज ने बताया कि असली अघोरी शिव भक्त होते हैं और समाज से दूर रहते हैं. उन्होंने अघोरियों द्वारा नरभक्षण जैसे मिथकों को खारिज ...और पढ़ें
हाइलाइट्स
- महाकुंभ मेले में अघोरी साधुओं पर चर्चा
- अघोरी साधु समाज से दूर रहकर शिव की आराधना करते हैं
- मानव मांस खाने वाले राक्षसी प्रवृति के होते हैं, भगवान शिव नहीं
महाकुंभ नगर. अघोरी साधु का नाम जैसे ही लिया जाता है तो लोगों के दिमाग में कई मिथक और भ्रांतियां आती हैं. लेकिन असल सच्चाई से आज हम पर्दा उठाने वाले हैं. न्यूज़18 ने कई वर्षों तक श्मशान में साधना करने वाले श्री पंचायती निरंजनी अखाडा के महामंडलेश्वर ललितानंद महाराज से उन सभी सवालों के जवाब जाने हैं, जो एक आम जनता को जानना ज़रूरी है.
संगम नगरी प्रयागराज में लगे महाकुंभ मेले में देश दुनिया से साधु संत हिस्सा ले रहे हैं. तमाम अखाड़ों के संतों के अलावा महामंडलेश्वर और अघोरी साधु भी महाकुंभ में आकर आस्था की डुबकी लगा रहे हैं. इस बीच, अघोरी साधुओं की रहस्यमयी दुनिया के बारे में आम जनता के बीच कई सवाल हैं. जैसे कौन होते हैं अघोरी, कहां रहते हैं, काले कपड़े क्यों पहनते हैं, श्मशान घाटों पर क्यों तपस्या करते हैं? अघोरियों की मृत्यु होती है या नहीं? न्यूज़18 ने कई वर्षो तक श्मशान में साधना करने वाले श्री पंचायती निरंजनी अखाड़ा के महामंडलेश्वर ललितानंद महाराज से जाना. अघोरी साधुओं को लेकर कई तरह के मिथक और भ्रांतियां लोगों के बीच हैं. साथ ही आम धारणा के मुताबिक, लोग इन अघोरी साधुओं को तांत्रिक समझ बैठते हैं और कई बार तो इनके पास आने से डरते हैं.
असली अघोरी समाज से मतलब नहीं रखते
ललितानंद महाराज ने बताया कि जो असली अघोरी होते हैं, वो समाज से मतलब नहीं रखते. भगवान शंकर भी अघोरी थे. अघोरी होते हुए वैष्णव थे. जो हमने इतिहास पढ़ा, वही हमने फिर देखा। श्मशान में वही व्यक्ति साधना कर सकता है. जिसके पास किसी भी प्रकार का कोई व्यसन ना हो. दूसरे से घृणा ना हो, वही शमशान में साधना कर सकता है. आमतौर पर अघोरी साधु एकांत में रहते हैं और सार्वजनिक रूप से कम नजर आते हैं. महाकुंभ जैसे धार्मिक आयोजनों में ही इन्हें सार्वजनिक तौर पर देखा जाता है. वहीं लोगों में दुविधा होती है कि क्या नागा साधु और अघोरी एक ही होते हैं. इसके बारे में भी ललितानंद महाराज ने विस्तार से बताया. अघोरी कहो या फिर नागा साधु कह दो बात वही है. कोई भिन्नता नहीं है, सिर्फ पहचानने की बात है. उसको वही पहचान सकता है, जिसे कुछ ज्ञान है. अघोर क्या है? अघोर ये है कि जैसी भी परिस्थिति हो, उस परिस्थिति से निपटना.
मानव मांस खाने की सच्चाई
अघोरी साधु शिव को मोक्ष का मार्ग मानकर उनकी घोर साधना करते हैं. शिव को सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान मानते हैं. अघोरी जन मृत्यु के भय से परे माने जाते हैं और इसी वजह से श्मशान में रहने से बिल्कुल नहीं डरते, मान्यता है कि अगर ऐसा करने में उन्हें डर ना लगे, घृणा ना हो तो वे अपनी साधना में पक्के हो रहे हैं. भगवान शंकर के भस्म लगाते थे, जिसका महाकाल में इसका प्रमाण है. यह भी धारणा है कि अघोरी मानव मांस खाते हैं, शराब पीते हैं और उन्हें तांत्रिक की तरह दिखाया जाता है. लेकिन इसके पीछे पूरी सच्चाई नहीं है. जो ऐसा करता है वे सभी राक्षसी प्रवृति के लोग हैं. देवताओं का काम नहीं है. भगवान शंकर अघोर होते हुए श्मशान में वैष्णव थे.
Location :
Allahabad,Uttar Pradesh
First Published :
January 21, 2025, 10:12 IST
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