महाकुंभ मेले के कला ग्राम में देख सकते हैं 500 वर्ष पुराना मुखौटा

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Agency:News18 Uttar Pradesh

Last Updated:February 02, 2025, 23:48 IST

लगभग 500 वर्ष पुरानी असम की परंपरा जिसमें मौखा बनाते हैं ,जो वहां की परंपराओं में प्रयोग किया जाता है. लोकल 18 से बात करते हुए सुजीत बरवा ने बताया कि आज भी धार्मिक अनुष्ठानों में इसकी काफी डिमांड होती है तो वही...और पढ़ें

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सुजीत

सुजीत बरुवा

प्रयागराज: भारत विविधताओं का देश है जहां कई बोली, भाषा, पानी, मौसम और धर्म-संप्रदाय देखने को मिलेंगे. इतनी विभिन्नता के बाद भी कई ऐसे पर्व होते हैं जहां देशभर के लोग जाति, धर्म, बोली-भाषा आदि से ऊपर उठकर एक साथ शामिल होते हैं. इसी तरह इस समय देश भर के लोग महाकुंभ मेला और संगम स्नान के लिए प्रयागराज पहुंच रहे हैं. इस मेले के आयोजन में भारत की विविधता को आराम से देख सकते हैं. महाकुंभ मेले के सेक्टर 8 में मौजूद कला ग्राम में पूरे देश की कला और संस्कृतियों का संगम हुआ है. यहीं पर असम के परंपरागत कलाकार सुजीत बरुआ ने लोकल 18 से बात करते हुए अपने मुखौटे के बारे में भी विस्तार से बताया.

क्यों खास है मुखौटा
सेक्टर 8 के कला ग्राम में उत्तर पूर्व सांस्कृतिक केंद्र में मुखौटे का स्टाल लगाए सुजीत बरुआ ने लोकल 18 से बात करते हुए बताया कि हमारे यहां इस मुखोटे को मौखा बोला जाता है. उन्होंने बताया कि इसे लगभग पिछले 500 सालों से उनका परिवार तैयार करता है. इसका प्रयोग धार्मिक कार्यक्रमों में किया जाता है. सुजीत ने बताया कि उनके गांव में आने वाले टूरिस्ट भी इसे खूब खरीदते हैं. खास बात यह है कि इस मुखोटे को लेकर आईएएस की परीक्षा में प्रश्न भी पूछा जा चुका है. जिसे जीआई टैग प्राप्त हुआ है.

कैसे बनकर होता है तैयार
इतनी पुरानी परंपरा के मुखोटे की बात की जाएगी तो कैसे बनता यह जरूर दिमाग में आता है. सुजीत बरुआ ने लोकल 18 के माध्यम से बताया कि यह पांच स्टेप में बनाया जाता है जिसमें पहले बस को सेलेक्ट किया जाता है जो जीती वास होता है इसके बाद मिट्टी सीखना और सूती वस्त्र के माध्यम से मुखोटे का आकार दिया जाता है इसके उपरांत गाय के गोबर और मिट्टी का लेप ऊपर से लगाकर इसे सुखाया जाता है.जिसे सिकना बोलते हैं. इस प्रकार एक मुखोटे को बनाने में लगभग तीन दिनों का समय लग जाता है.

इतने से होती है शुरुआत
इतने विशेष प्रकार से तैयार किए गए इस मुखोटे की कीमत मेहनत और लगाई गई वस्तुओं के दाम पर निर्भर करता है. सुजीत ने बताया कि ₹300 से शुरू होकर इस मुखोटे की कीमत 10000 से अधिक हो सकती है उन्होंने बताया कि उनके पास सबसे छोटा मुखौटा और सबसे बड़ा मुखौटा बनाने का भी रिकॉर्ड है. कहा की आने वाली टूरिस्ट इस मुखोटे को खूब पसंद करते हैं जो इनके महापुरुष शंकर देव के द्वारा शुरू की गई परंपरा है यह मुखौटा पर्यावरण को सुरक्षित रखता है जिसमें प्राकृतिक रंगों का भी प्रयोग किया जाता है.

Location :

Allahabad,Uttar Pradesh

First Published :

February 02, 2025, 23:48 IST

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