Mumbai BMC Chunav: महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव खत्म होने के बाद अब बृहनमुंबई म्यूनिशपल कॉरपोरेशन यानी बीएमसी इलेक्शन की सुगबुगाहट तेज हो गई है. बीएमसी देश का सबसे अमीर नगर निकाय है. इसका बजट हजारों करोड़ रुपये का है. देश के मझौले राज्यों की तुलना में बीएमसी का बजट ज्यादा होता है. अब आप इसी से अनुमान लगा चुके होंगे कि बीएमसी चुनाव का महत्व कितना है. करीब तीन साल पहले मार्च 2022 से बीएमसी का चुनाव लंबित है. उस वक्त राज्य में महाविकास अघाड़ी की सरकार थी. उस वक्त राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने निकायों चुनावों में 27 फीसदी आरक्षण लागू करने का सुझाव दिया था. राज्य सरकार ने इस सुझाव को मंजूर कर लिया. फिर बीएमसी में भी आरक्षण व्यवस्था लागू की गई थी. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की इस व्यवस्था को रद्द कर दिया. इसके बाद आरक्षण के मसले पर इलेक्शन टाल दिया गया.
इस बीच जून 2022 में राज्य का राजनीतिक समीकरण बदल गया. एमवीए की सरकार गिर गई. शिवसेना दो फाड़ हो गई और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में महायुती की सरकार बनी. इसके कुछ महीनों पर बाद एनसीपी भी दो फाड़ हो गई और अजित पवार के नेतृत्व में एक धड़ा महायुती में शामिल हो गया.
मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा
सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई 2022 को महाराष्ट्र के राज्य चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह निकाय चुनावों को न टाले. राज्य के सभी निकायों में चुनाव लंबित है. बावजूद इसके चुनाव को लेकर कोई फैसला नहीं हो पाया. राज्य की महायुती सरकार सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी आरक्षण के मसले के लंबित होने की बात कहती रही. इसके 22 अगस्त 2022 के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए चुनाव को लेकर यथास्थिति बनाई रखी गई.
उधर, पूर्व की उद्धव सरकार ने भी कुछ ऐसे कदम उठाए थे जिससे बीएमसी चुनाव में देरी हो रही थी. उद्धव सरकार ने 10 नवंबर 2021 को बीएमसी में वार्डों की संख्या 227 से बढ़कार 236 करने का फैसला किया था. इसी संदर्भ में एक फरवरी 2022 के डिलिमिटेंशन का काम शुरू करवाया गया. इसके बाद 8 अगस्त 2022 को शिंदे की सरकार ने एक अध्यादेश के जरिए डिलिमिटेशन के फैसले को पलट दिया. फिर मामला कोर्ट पहुंचा. बांबे हाईकोर्ट ने अप्रैल 2023 के एक आदेश में राज्य सरकार के फैसले को उचित ठहराया. उसके बाद से ही चुनाव रुके हुए हैं.
राजनीतिक कारण
वैसे तो बीएमसी चुनाव में देरी के जो कारण बताए गए हैं वो कागजी हैं. इसके पीछ कहीं न कहीं एक राजनीतिक कारण भी है. जानकारों का कहना है कि बीएमसी में उद्धव ठाकरे की शिवसेना का दबदबा है. शिवसेना में दोफाड़ होने के बाद शिंदे की सरकार अपमान से बचने के लिए बीएमसी चुनाव टालने का उपाय निकालती रही. लेकिन, अब स्थिति बदल गई है. अब एकनाथ शिंदे एक बाजीगर बनकर उभरे हैं. अब स्थिति बदल गई है. महायुती अब बहुत मजबूत है. ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि नई सरकार जल्द ही बीएमसी चुनाव का फैसला लेगी. इसके साथ ही सारे स्थानीय निकायों में चुनाव करवाए जा सकेंगे.
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FIRST PUBLISHED :
November 26, 2024, 15:04 IST