मैच के दौरान महिला एथलीटों को पीरियड आ जाए तो शरीर और खेल पर कितना होता है असर

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How play affects pistillate athlete: कुदरत ने महिलाओं के शरीर की रचना खास तरह से की है. महिलाओं का शरीर एक खास बायलॉजिकल साइकिल से गुजरती है और इसमें तिनका भर भी इधर-उधर होने से पूरे शरीर का बैंड बज जाता है. हम सबको पता है हर महिला में 12 से 15 साल की उम्र के बीच पहला पीरियड यानी मासिक धर्म आता है और यह 45 से 55 साल की उम्र तक अनवरत जारी रहता है.पीरियड महिला को उसके स्त्रीत्व की सबसे बुलंद पहचान है. जिस महिला को पीरियड्स नहीं आते वह संपूर्ण तौर पर महिला नहीं है. मासिक धर्म जितना सुनने में जुगुप्सा पैदा करता है, उससे कहीं ज्यादा इसकी जटिलताएं हर महीने हर महिला को एक असहनीय दर्द से गुजारता है. इसमें सिर्फ तन का दर्द नहीं बल्कि मन और मस्तिष्क का दर्द भी बर्दाश्त करना पड़ता है.पीरियड से कुछ दिन पहले से लेकर पीरियड के खत्म होने तक महिला पेट में दर्द, क्रैंप, मूड स्विंग, एंग्जाइटी आदि से गुजरती है. ऐसे में क्या कभी आपने सोचा है कि जब किसी महिला एथलीट को खास खेल के आसपास पीरियड आ जाए तो इसका क्या असर हो सकता है. आप कल्पना कर सकते हैं कि यह पीड़ादायी समय किसी भी महिला एथलीट के जीवन में भारी उथल-पुथल मचा सकता है. एक सामान्य महिलाओं में पीरियड और महिला एथलीट के मैच के समय पीरियड और इसकी सारी बारीकियों को आप एक साथ यहां जान सकते हैं.

पीरियड दर्द के कारण मैरी कॉम सिल्वर से चूंकी
पहले यह जान लेते हैं कि पीरियड दर्द के कारण कैसे भारत के सुपरस्टार महिला एथलीट मैरी कॉम 2012 में सिल्वर मेडल से चूक गई. स्क्रॉल वेबसाइट के मुताबिक लंदन ओलंपिक में मैरी कॉम 51 किलोग्राम वर्ग में सेमीफाइनल में पहुंच गई थी. ऐसे लग रहा था कि मैरी कॉम भारत को कम से कम सिल्वर मेडल तो जरूर दिलाएगी. उनके सामने सेमीफाइनल मैच में लंदन की ही निकोला एडम्स से मुकाबला थी. होम ग्राउंड के कारण निश्चित रूप से निकोला एडम्स मजबूत स्थिति में थी लेकिन उस समय मैरी कॉम अपने कैरियर की बुलंदियों को चूम रही थी. लेकिन होनी को कुछ और ही होना था. सेमीफाइनल मैच से ठीक एक दिन पहले उसे पीरियड आ गया और दर्द और क्रैंप से वह तड़पने लगी. उनके शरीर के अंदर द्वंद्व चल रहा था जो उसके खेल पर भारी पड़ गया. ओलंपिक गोल्ड क्वेस्ट में स्पोटर्स साइंस के पूर्व प्रमुख डॉ. निखिल लेटली बताते हैं कि जैसे ही पीरियड आता है आप कुदरती तौर पर पहले से थोड़ा कमजोर हो जाते हैं. आप में आलस्य आ जाता है और आपके मसल्स भी ढीले पड़ने लगते हैं. ये सारी चीजें मिलकर ऑवरऑल आपके प्रदर्शन पर असर करती हैं. कॉम इस मुकाबले में हार गई और उन्हें ब्रॉन्ज मेडल से संतोष करना पड़ा. हाल ही में 2024 ओलंपिक में वेटलिफ्टर मीराबाई चानू भी 49 किलोग्राम भार वर्ग में चौथे स्थान पर रह पाई और इसका भी प्रमुख कारण उन्होंने पीरियड को बताया.

तो ये पीरियड्स आते क्यों है
पीरियड महिला के शरीर की ऐसी घटना है जिसमें हर महीने महिला का शरीर मातृत्व सुख के लिए तैयार होती है और ऐसा नहीं होने पर हर महीने इसे इन तैयारियों को बर्बाद कर देती है. बेंगलुरु में प्रैक्टिस कर रही गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. पुर्णी नारायणन बताती हैं कि मासिक धर्म प्रजनन प्रणाली को सुचारू रूप से चलाने के लिए हर महीने आता है. इसका मुख्य मकसद अपने जैसे बच्चे को पैदा करना है. डॉ. पुर्णी नारायणन ने बताया कि 11 से 14 साल की उम्र में हर लड़की का पहला मासिक धर्म आता है और यह 28 दिनों के बाद गर्भधारण नहीं करने पर विघटित हो जाता है. शुरुआत में दिनों में कुछ अंतर होता-रहता है. वास्तव में जब पीरियड शुरू होता है तो महिला के शरीर के अंदर गर्भाशय की दीवार में एक लाइनिंग बनती रहती है. इसे एंडोमैटेरियम कहते हैं.शुरुआत के दो सप्ताह प्रोलीफेरेशन फेज में पीरियड रहता है. इस दौरान दर्द का अनुभव न के बराबर होता है. लेकिन 14 से 15 दिनों के बाद अंडाशय से अंडा गर्भाशय की ओर निकलना शुरू हो जाता है.

जैसे ही अंडा निकलना शुरू होता है, एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रॉन हार्मोन का रिलीज ज्यादा होने लगता है.इस दौरान गर्भाशय की दीवार अपनी तैयारी में लाइनिंग को बढ़ाती रहती है. जब अंडाशय गर्भाशय या यूटेरस में आ जाता है तो कुछ दिन यह स्पर्म से फ्यूज होने का इंतजार करता है. अगर यह स्पर्म के साथ फ्यूज हो जाता है और भ्रुण बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है और महिला प्रेग्नेंट हो जाती है लेकिन अगर इस स्टेज में स्पर्म से फ्यूज नहीं होती तो गर्भाशय की दीवार में बनी एंडोमैटेरियम या लाइनिंग टूटने लगती है. इस लाइनिंग के साथ नर्व या नसें जुड़ी होती है. टूटने की क्रिया के दौरान नसों से जुड़े होने के कारण यह पूरे शरीर को भी हिला देती है. इससे मसल्स कमजोर होने लगते हैं और पेट के आसपास दर्द और क्रैंप होने लगता है. 28 दिनों के बाद ये सारी लाइनिंग टूटकर खून के साथ निकलने लगती है. इसलिए मैन्सट्रुएशन फेज पूरे शरीर पर असर करता है. इसमें गर्भाशय की पूरी दीवार और आसपास का हिस्सा दबने लगता है उसपर जोर पड़ता है. लेकिन कुछ ही दिनों बाद यही प्रक्रिया फिर से शुरू होनी है और ऐसे में यह प्रक्रिया 45 से 50 साल तक अनवरत चलती रहती है. कुछ महिलाओं में गर्भाशय के मसल्स सामान्य से हार्ड होते हैं. इस कारण पीरियड के समय उनमें ज्यादा नर्व पेन का अनुभव होता है. इससे उल्टी, बेचैनी, चक्कर, डायरिया, लूज मोशन जैसे लक्षण दिख सकते हैं.

पीरियड की चार अवस्था

1. पीरियड फेज-जब गर्भाशय की लाइनिंग और ब्लड के साथ फ्लूड बाहर निकलता है तो इसे फेज को पीरियड फेज कहते हैं. यह 3 से 7 दिनों का होता है.

2. फॉलिकुलर फेज-पीरियड के जस्ट बाद शुरू होता है. यह पीरियड के पहले दिन से लेकर 13 से 14 दिनों का होता है. इसमें शरीर के कई हार्मोन रिलीज होने लगते है जिससे गर्भाशय की लाइनिंग बनती है और इसमें थिकनेस आती है. इसके साथ अंडाशय की सतह पर फॉलिकल्स का विकास होता है. आमतौर पर एक अंडे के लिए एक फॉल्यूकल हर महीने तैयार होता है.

3. ऑव्यूलेशन-ऑव्यूलेशन का मतलब जब अंडा अपने घर अंडाशय से बाहर गर्भाशय में आता है. इसे हिन्दी में अंडोत्सर्ग कहते हैं.यह पीरियड के पहले दिन से 14वां या 15वां दिन से शुरू होता है. इस दौरान अंडा स्पर्म का इंतजार करता है.

4. ल्यूटियल फेज-ओव्यूलेशन के दौरान अंडा फेलोपियन ट्यूब से तैरते हुए गर्भाशय की ओर मूव करता है. इस दौरान गर्भाशय की दीवार पतली होती जाती है और लाइनिंग बनती जाती है ताकि प्रेग्नेंसी की तैयारी हो सके. अगर इस फेज में कोई महिला प्रेग्नेंट हो जाती है तो फिर 9 महीने तक पीरियड नहीं आता लेकिन अगर प्रेग्नेंसी नहीं होती तो लाइनिंग टूटने लगती है और ये सारी चीजें पीरियड फेज में बाहर निकल जाती है.

महिला एथलीट को कैसे प्रभावित करता पीरियड
इतना समझने के बाद आप यह जान गए होंगे कि अगर खेल के ऐन मौके पर पीरियड आ जाए तो किसी महिला के शरीर पर इसका क्या असर होता है. पीरियड से पहले जो हार्मोन रिलीज होता है वह मसल्स को भी कमजोर करता है. इस कारण आलस बढ़ जाता है लेकिन पेट में जो दर्द या क्रैंप होता है और मसल्स में जो कमजोरी आती है उससे किसी महिला के प्रदर्शन पर असर पड़ना स्वभाविक है.

फिर महिला एथलीट कैसे करें मैनेज
भारत के लिए पूर्व ओलंपिक स्विमर रही निशा मिलर बताती हैं कि बर्थ कंट्रोल पिल या गर्भनिरोधक गोलियां किसी महिला के ओव्यूलेशन फेज को रोक सकती है. इससे स्पर्म सर्विक्स में पहुंच नहीं पाता है और फर्टिलाइजेशन रूक जाता है. निशा कहती हैं कि एथलीट गर्भनिरोधक गोलियों से अपने पीरियड को मैनेज कर सकती हैं. अगर यह पक्का पता हो कि किस दिन पीरियड होने वाला है तो उस समय इस गोली का इस्तेमाल किया जा सकता है. निशा कहती हैं कि हालांकि यह काम सिर्फ डॉक्टरों की निगरानी में होनी चाहिए, मैं इसकी सलाह नहीं देती. निजी डॉक्टर ही तय करेंगे कि किसी के शरीर को इस तरह की गोली की दरकार है या नहीं. सामान्य तौर पर अगर पीरियड कुछ दिन आगे बढ़ जाए तो इस असहनीय दर्द से बचा जा सकता है.

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Tags: Health, Lifestyle

FIRST PUBLISHED :

October 7, 2024, 11:38 IST

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