टाटा संस के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा (Ratan Tata) रूटीन चेकअप के लिए मुंबई के ब्रिच कैंडी हॉस्पिटल पहुंचे. इस बीच उनकी सेहत को लेकर सोशल मीडिया पर तमाम तरह की खबरें और अफवाह उड़ने लगी. हालांकि टाटा ने खुद एक बयान जारी कर कहा है कि उनकी सेहत ठीक है और किसी तरह की चिंता की कोई बात नहीं है. 86 साल के रतन टाटा की कहानी बड़ी दिलचस्प है. जब वह 10 साल के थे तभी उनके माता-पिता अलग हो गए. उन दिनों तलाक कोई आम बात नहीं थी. रतन टाटा एक इंटरव्यू में कहते हैं कि माता-पिता के अलगाव के बाद उन्हें तमाम परेशानियां झेलनी पड़ी. जब उनकी मां ने दोबारा शादी की तो स्कूल में बच्चे उन्हें और उनके भाई को चिढ़ाने और ताना मारने लगे.
किस बात पर पिता से हुआ मतभेद
रतन टाटा का पालन-पोषण उनकी दादी ने किया. वह अपने पिता नवल टाटा के बहुत करीब नहीं थे और तमाम चीजों को लेकर दोनों के बीच मतभेद थे. रतन टाटा ने ‘ह्यूमंस ऑफ बॉम्बे’को दिये एक इंटरव्यू में अपने पिता के साथ मतभेदों के बारे में खुलकर जिक्र किया था. टाटा कहते हैं कि वह बचपन में वायलिन सीखना चाहते थे लेकिन उनके पिता की इच्छा थी कि वह प्यानो सीखें. इस पर दोनों के बीच मतभेद हुआ. इसके अलावा टाटा चाहते थे कि वह अमेरिका जाकर पढ़ाई करें जबकि उनके पिता उन्हें ब्रिटेन भेजना चाहते थे. इसी तरह करियर के मोर्चे पर भी दोनों के बीच मतभेद हुआ. टाटा खुद आर्किटेक्ट बनना चाहते थे लेकिन उनके पिताजी की जिद थी कि वह इंजीनियर बनें.
कैसे होते-होते रह गई शादी
आखिरकार अपनी दादी की बदौलत रतन टाटा पढ़ाई करने के लिए अमेरिका गए और वहां कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया. आर्किटेक्चर की डिग्री हासिल की और लॉस एंजेलिस में नौकरी करने लगे. यहीं उन्हें पहली दफा मोहब्बत हुई. रतन टाटा बताते हैं कि दोनों इतने करीब आए कि शादी का मन बना लिया. ये साल 1962 के आसपास की बात है. ठीक उसी वक्त टाटा की दादी की तबीयत बिगड़ गई. वो अपनी दादी से बहुत प्यार करते थे क्योंकि बचपन उन्हीं के साथ बीता था. मजबूरन रतन टाटा अपनी नौकरी छोड़कर इंडिया आ गए.
चीन से लड़ाई न होती तो शादीशुदा होते टाटा
रतन टाटा (Ratan Tata) कहते हैं कि मुझे लग रहा था कि जिस लड़की से मैं मोहब्बत करता था वह भी मेरे साथ इंडिया आ जाएगी, लेकिन ठीक उसी वक्त भारत और चीन की लड़ाई (India China War) छिड़ गई. उस लड़की के माता-पिता नहीं चाहते थे कि वह मेरे साथ भारत आए और आखिरकार हम दोनों का रिश्ता टूट गया. टाटा कहते हैं कि इसके बाद वह कारोबारी दुनिया में रम गए और फिर निजी जिंदगी के बारे में सोचने का मौका ही नहीं मिला.
चेयरमैन बनते ही 3 लोगों को कंपनी से निकाला
रतन टाटा साल 1991 में पहली बार टाटा संस के चेयरमैन बने. उनसे पहले जेआरडी टाटा कंपनी के चेयरमैन हुआ करते थे. जेआरडी ने तीन लोगों को एक तरीके से कंपनी की पूरी कमान सौंप रखी थी. पहले थे रूसी मोदी, दूसरे दरबारी सेठ और तीसरे अजित केरकर. जेआरडी टाटा उनके कामकाज में कोई दखल नहीं देते थे. एक तरीके से सारे फैसले यही तीनों लेते थे. जब रतन टाटा ने चेयरमैन की कुर्सी संभाली तो उन्होंने सबसे पहले इन तीनों को हटाकर लीडरशिप में बदलाव का फैसला किया.
रतन टाटा को लग रहा था कि इन तीनों ने कंपनी पर एक तरीके से अपना कब्जा जमा लिया है. रूसी मोदी तो 1939 में टाटा स्टील में आए थे और 1984 में इसके अध्यक्ष बन गए थे. रतन टाटा एक रिटायरमेंट पॉलिसी लेकर आए. जिसके तहत कंपनी के बोर्ड से किसी भी डायरेक्ट को 75 की उम्र के बाद हटाना पड़ेगा. इस पॉलिसी के लागू होने के बाद सबसे पहले रूसी मोदी को जाना पड़ा. उसके बाद टाटा टी और टाटा केमिकल्स के सर्वेसर्वा दरबारी सेठ को भी कंपनी छोड़नी पड़ी. सबसे आखिर में इंडियन होटल्स की अगुआई कर रहे अजित केरकर को गद्दी छोड़नी पड़ी.
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FIRST PUBLISHED :
October 7, 2024, 13:39 IST