India Maldives: कर्ज के दलदल में फंसे मालदीव को आखिरकार भारत से ही सहारा मिला. भारत और मालदीव ने सोमवार को 40 करोड़ डॉलर की मुद्रा अदला-बदली को लेकर समझौता कियाय इससे मालदीव को विदेशी मुद्रा भंडार से जुड़े मुद्दों और कर्ज चुकाने में मदद मिलेगी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने मालदीव में इस्तेमाल होने वाला रूपे कार्ड भी जारी किया. इसके अलावा हनीमाधू अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर नये रनवे का उद्घाटन किया और द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करने पर सहमति जतायी.
प्रधानमंत्री मोदी (PM Narendra Modi) ने कहा, “भारत और मालदीव के संबंध सदियों पुराने हैं. भारत मालदीव का सबसे नजदीकी पड़ोसी और करीबी मित्र है. मालदीव (Maldives) हमारी नेबरहुड पॉलिसी में महत्वपूर्ण स्थान रखता है. भारत ने हमेशा मालदीव के लिए फर्स्ट रिस्पॉन्डर की भूमिका निभाई है और अपनी जिम्मेदारियों को पूरा किया है.
आपको बता दें कि मालदीव का कुल कर्ज उसकी जीडीपी (GDP) का 110% के आसपास है. अब नौबत यह है कि मालदीव सुकोक (जो बॉन्ड की तरह एक इस्लामिक वित्तीय प्रमाणपत्र होता है) पर भी भुगतान करने में फेल हो सकता है. बीएनएन ब्लूमबर्ग के अनुसार, अगस्त के अंत तक मालदीव का विदेशी मुद्दा भंडार केवल 437 मिलियन डॉलर था, जो सिर्फ डेढ़ महीने के आयात को कवर करने के लिए पर्याप्त है.
मालदीव कैसे वित्तीय संकट में फंसा?
मालदीव बेतहाशा कर्ज के दलदल में है. पिछले एक दशक में उसने भारत और चीन से सबसे ज्यादा कर्ज लिया. मालदीव का अधिकांश $3.4 बिलियन विदेशी ऋण भारत और चीन का है. विश्व बैंक के अनुसार, 2023 तक कुल सार्वजनिक ऋण 8 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया था, जो GDP का 122.9% था. इसमें सबसे बड़ा योगदान कोविड-19 महामारी का था. जिससे बचाव और हालात से निपटने के लिए मालदीव ने बेतहाशा कर्ज लिया. उधर दूसरी तरफ, 2022 तक मालदीव की GDP वृद्धि 13.9% तक पहुंच गई थी, लेकिन पिछले साल यह घटकर 4% रह गई, क्योंकि पर्यटकों ने पहले के मुकाबले महामारी के बाद उतनी जेब ढीली नहीं की या पैसा नहीं खर्चा.
कैसे कटने वाली थी नाक?
अब ऋणदाताओं का डिफॉल्टर होने से बचने के लिए, मालदीव को इस साल 114 मिलियन डॉलर चुकना है. तो अगले साल यानी 2025 में $557 मिलियन और 2026 में $1.07 बिलियन की आवश्यकता है. मालदीव की इकोनॉमी धीमी रफ्तार से बढ़ रही है और पर्यटकों के रूप में उसके पास अच्छी संख्या में अमेरिकी डॉलर भी आ रहा है, इसके बावजूद, मालदीव के विदेशी मुद्रा भंडार पर बहुत दबाव है. अब खतरा यह है कि मालदीव सुकुक डिफॉल्टर होने वाला पहला देश हो सकता है.
सुकुक क्या है?
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक मालदीव को अक्टूबर में $25 मिलियन का भुगतान करना है, जो उसके $500 मिलियन सुकुक ऋण का हिस्सा है. सुकुक पश्चिमी देशों के फाइनेंशियल बॉन्ड जैसा होता है. फर्क ये है कि ये इस्लामिक और शरिया कानून के अनुरूप होता है. सुकुक जारी करने वाला देश इन्वेस्टर को एक प्रमाणपत्र बेचता है, और फिर आय का उपयोग एक संपत्ति खरीदने के लिए करता है, जिसमें निवेशक समूह की आंशिक स्वामित्व होती है. जारीकर्ता को भविष्य की तारीख में बॉन्ड को मूल मूल्य पर वापस खरीदने का अनुबंधित वादा भी करना होता है.
इस्लामी कानून के अनुसार, ‘रिबा’ या ब्याज निषिद्ध है. इसीलिये इस्लामिक मुल्क सुकुक जारी करते हैं. मलेशिया पहला देश था जिसने सुकुक जारी कियाय सुकुक का सबसे सामान्य उदाहरण एक ट्रस्ट प्रमाणपत्र है.
भारत ने कब-कब की मालदीव की मदद?
भारत कई दशक से मालदीव की मदद करता आ रहा है. साल 1981 में दोनों देशों ने एक व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जो आवश्यक वस्तुओं के निर्यात का प्रावधान करता है. 2021 में द्विपक्षीय व्यापार पहली बार $300 मिलियन को पार कर गया और अगले साल 2022 में $500 मिलियन को पार कर गया. सितंबर में, भारत ने घोषणा की कि भारतीय स्टेट बैंक मालदीव सरकार के $50 मिलियन के बॉन्ड को सब्सक्राइब करेगा. भारत ने पहले ही मालदीव को विभिन्न बुनियादी ढांचा और विकास परियोजनाओं के लिए $1.4 बिलियन की वित्तीय सहायता की पेशकश की है. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रविवार को मुज्जू से मुलाकात की और भारत-मालदीव संबंधों को मजबूत करने की प्रतिबद्धता जताई.
कैसे बिगड़ गए थे रिश्ते
मोहम्मद मुइज्जू जब पिछले साल सत्ता में आए तो उन्होंने भारत को आंखें दिखानी शुरू कर दी. मुइज्जू ने भारत से मालदीव में तैनात अपने सैनिकों को वापस बुलाने के लिए कहा. इसके बाद दोनों देशों ने सहमति जताई कि भारत 10 मार्च से 10 मई के बीच मालदीव में तैनात अपने लगभग 80 सैन्य कर्मियों को वापस बुला लेगा. भारत से तल्खी के बीच मुइज्जू ने तुर्की और चीन की यात्रा पर गए. राष्ट्रपति बनते ही जनवरी में चीन की उनकी यात्रा को भारत के लिए एक कूटनीतिक हार के रूप में देखा गया क्योंकि उनसे पहले मालदीव के नेताओं ने चुने जाने के बाद पहले दिल्ली का दौरा किया था.
मुइज्जू के कुछ फैसले भारत को नागवार गुजरे और प्रतिद्वंद्वी चीन के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने के प्रयास के रूप में देखा गया. फरवरी में, मुइज्जू ने चीनी खोजी जहाज शियांग यांग होंग 3, को मालदीव में की अनुमति दी थी, जिससे भारत नाराज था. कूटनीतिक जानकार कहते हैं कि मालदीव जिस तरीके से कर्ज के दलदल में फंसा है, उस स्थिति में मुइज्जू को चीन से अपेक्षित मदद नहीं मिली. इसीलिये उन्होंने फिर भारत का रुख किया. भारत के नजरिये से यह एक कूटनीतिक और सामरिक जीत है.
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FIRST PUBLISHED :
October 7, 2024, 15:50 IST