यमुना सफाई में इच्छाशक्ति की कमी, 8500 करोड़ खर्च के बाद भी हालात खराब

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Last Updated:February 12, 2025, 18:38 IST

Yamuna River Pollution: यमुना की सफाई में असफलता आम आदमी पार्टी के लिए चुनावी हार का कारण बनी. अरविंद केजरीवाल ने 2025 तक यमुना साफ करने का वादा किया था, लेकिन इच्छाशक्ति की कमी और अतिक्रमण से समस्या बनी रही.

यमुना सफाई में इच्छाशक्ति की कमी, 8500 करोड़ खर्च के बाद भी हालात खराब

दिल्ली में जितना सीवेज रोज निकलता है उसे ट्रीट करने के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की संख्या नाकाफी है.

हाइलाइट्स

  • यमुना नदी की सफाई में इच्छाशक्ति की कमी
  • 8500 करोड़ रुपये खर्च के बाद भी यमुना प्रदूषित
  • अतिक्रमण, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की कमी समस्या है

Yamuna River Pollution: प्रदूषित यमुना नदी भी आम आदमी पार्टी (आप) के दिल्ली विधानसभा चुनाव में हारने की एक वजह रही. दरअसल आप के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने एक बड़ा वादा किया था कि अगर वे यमुना को साफ करने में विफल रहे तो 2025 का विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे. जब केजरीवाल यमुना को साफ करने में विफल रहे तो उन्होंने कहा कि हरियाणा की तरफ से इसका पानी जहरीला किया जा रहा है. यह बयान उन्हें बहुत महंगा पड़ा. राजधानी में 30-40 फीसदी लोग हरियाणा के हैं और उन्हें केजरीवाल की यह गलतबयानी जमी नहीं. नतीजा यह हुआ कि मतदान के दिन उन्होंने आप पर अपना सारा गुस्सा निकाल दिया. इस मुददे की गंभीरता को देखते हुए केजरीवाल को मात देने वाले बीजेपी नेता परवेश वर्मा ने कहा कि यमुना नदी तट का विकास उनकी पार्टी की सर्वोच्च प्राथमिकता होगी.

आपको बताते चलें कि दिल्ली के पूर्व जल मंत्री सत्येंद्र जैन ने यमुना नदी की सफाई की समयसीमा को 2022 से आगे बढ़ाकर 2023 कर दिया था. जिसके बाद दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसे फिर से 2025 तक बढ़ा दिया था. हाल ही में उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने इसे आगे बढ़ाकर 2026 कर दिया. पर्यावरण कार्यकर्ताओं के अनुसार, धन की कोई कमी नहीं है, लेकिन नदी को साफ करने की इच्छाशक्ति की ही कमी है. 

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क्या यमुना है सबसे प्रदूषित नदी
हकीकत यह है कि यमुना पिछले कई सालों से भारत की सबसे अधिक प्रदूषित नदी के तौर पर जानी जाती रही है. दिल्ली में यमुना नदी का पानी प्रदूषित है और पीने योग्य नहीं है. इसमें सफेद झाग की मोटी परत बनती है और बदबू आती है. यमुना नदी में प्रदूषण की वजह से नदियां, झीलें और दूसरे जल स्रोत गंदे हो चुके हैं. शहर का सीवेज और औद्योगिक प्रदूषण नालों के जरिए उसमें मिल जाता है. माना जाता है कि नदी में मिलने वाली गंदगी को वो सिस्टम के तहत खुद ही साफ कर लेती थी. लेकिन फिर शहरों के बड़े होने से नदी पर दबाव बढ़ने लगा. 

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झाग बनने से रोकने का उपाय
सीवेज में शहर में रहने वालों के मल-मूत्र सहित साबुन, डिटर्जेंट के घोल, केमिकल और फॉस्फेट पदार्थ मिले होते हैं. यह फॉस्फेट की अधिक मात्रा ही है जिसकी वजह से यमुना के पानी में बहुत सारा झाग बन जाता है और नदी की सतह पर तैरता हुआ दिखाई देता है. ये झाग दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में रंगाई उद्योगों, धोबी घाटों और घरों में इस्तेमाल किए जाने वाले डिटर्जेंट के कारण उत्पन्न होती है. झाग के संपर्क में आने से त्वचा में जलन और संक्रमण हो सकता है. नदी की सतह का यूट्रोफिकेशन पानी में प्रकाश और ऑक्सीजन के प्रवेश को रोकता है, जिसके परिणामस्वरूप जीवों की मृत्यु हो जाती है. इसके अलावा यमुना में उद्योगों से निकलने वाली भारी धातुओं की मात्रा भी कम नहीं होती है. यहां तक कि यमुना नदी में भारी मात्रा में लोहा भी पाया गया है जो सीमा से कहीं ज्यादा है. लेकिन सबसे बड़ी समस्या सीवेज से निपटने की है. दिल्ली में जितना सीवेज रोज निकलता है उसे ट्रीट करने के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की संख्या नाकाफी है.

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8,500 करोड़ रुपये मिले
केंद्र सरकार ने इस मिशन के लिए दिल्ली सरकार को पहले ही 8,500 करोड़ रुपये से अधिक की राशि दे दी है. यह राशि उस राशि के अतिरिक्त है जो पहले ही बीमार नदी पर खर्च की जा चुकी है. द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक एक आरटीआई आवेदन के जवाब के अनुसार, दिल्ली जल बोर्ड (डीजेबी) को 2018 और 2023 के बीच यमुना एक्शन प्लान III के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के तहत 1,200 करोड़ रुपये से अधिक प्राप्त हुए. इन सबके बावजूद, यमुना को साफ देखने का सपना अभी भी दूर की कौड़ी है. 

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बहाल किए जाएं वेटलैंड
क्योंकि कोई भी ऐसा काम नहीं किया गया है जिसका प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे, इसलिए विशेषज्ञों का मानना ​​है कि कुछ तत्काल कदम उठाने का समय आ गया है. रिपोर्ट के मुताबिक एक विशेषज्ञ ने सरल समाधान सुझाया है. उन्होंने कहा कि यमुना के डूब क्षेत्र में वेटलैंड की पहचान की जानी चाहिए और उन्हें इस तरह से बहाल किया जाना चाहिए कि उनमें पर्याप्त पानी हो. उन्होंने कहा, “यह (वेटलैंड) पानी की नर्सरी के रूप में कार्य करता है. एनजीटी बाढ़ एरिया को बहाल करने और उसे बिना कंक्रीट के छोड़ने का सुझाव देता है, क्योंकि कंक्रीट के कारण नदी खुद को साफ करने में सक्षम नहीं है.” 

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अतिक्रमण से पैदा हुई समस्या
डीडीए का यह दावा कि वेटलैंड्स पर कोई अतिक्रमण नहीं हुआ है और 477.79 हेक्टेयर बाढ़ के मैदान को वापस लाया गया है, संदिग्ध और भ्रामक है. डीडीए ने खुद यमुना बाढ़ के मैदान के कई हेक्टेयर क्षेत्र को विभिन्न कंपनियों को आवंटित किया है. मिलेनियम बस डिपो के लिए बाढ़ के मैदान की लगभग 60 हेक्टेयर भूमि दी गई थी. इस जमीन की भरपाई की कोई गुंजाइश नहीं दिखती.यही नहीं, पुलों के निर्माण से निकला कचरा अभी भी बाढ़ के मैदानों और नदी के किनारों पर बिखरा पड़ा है.  डीडीए ने बाढ़ के मैदान में कुछ अवैध बस्तियों को हटाने के बाद बचे कचरे को भी साफ नहीं किया है. वर्तमान में, यमुना के निचले इलाकों, दिल्ली नोएडा, ग्रेटर नोएडा, फरीदाबाद और पलवल में फार्महाउस और अनधिकृत आवासीय कॉलोनियों के रूप में बड़े पैमाने पर अतिक्रमण हो रहा है. लेकिन संबंधित विभागों ने इस पर आंखें मूंद ली हैं.

Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

February 12, 2025, 18:38 IST

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