सुल्तानपुर. देशभर में नवरात्रि धूमधाम से मनाई जा रही है. ऐसे में हर जगह दुर्गा मां के पंडाल भी सजाए जा रहे हैं. सुल्तानपुर भारत का एक ऐसा जिला है, जहां दुर्गा पूजा के दौरान दुर्गा पंडाल नवरात्रि के प्रारंभ में नहीं बल्कि दशहरा अथवा मूर्ति विसर्जन के दिन सजाया जाता है. अगर आपको देश में कोलकाता के बाद दुर्गा पूजा की भव्यता का दीदार करना है तो उत्तर प्रदेश का सुलतानपुर आपके लिए बेहतर विकल्प साबित हो सकता है.
यहां मां दुर्गा की नौ दिन तक आराधना के बाद दशहरे के दिन से पंडालों की सजावट शुरू होती है और अगले पांच दिनों तक कई प्रकार से होने वाली भव्य सजावट से शहर में अलौकिक दृश्य देखने को मिलता है. इसको देखने के लिए देश भर से लोग आते हैं.
मूर्ति विसर्जन है आकर्षण का केंद्र बिंदु
सुल्तानपुर में दुर्गा पूजा के आकर्षण का केन्द्र बिंदु यहां का मूर्ति विसर्जन है, क्योंकि यह परंपरा से इतर पूर्णिमा को सामूहिक शोभायात्रा के रूप में शुरू होता है और लगभग 36 घंटे में सम्पन्न होता है. आपको बता दें कि यह शहर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से वाराणसी एनएच पर लगभग 140 किलोमीटर दूर स्थित है, जो पौराणिक नगर अयोध्या, काशी और प्रयागराज का पड़ोसी भी है. इस वजह से यह सीधे सड़क और रेल मार्ग से जुड़ा है.
इस दिन शुरू होगी दुर्गा पूजा
सुल्तानपुर में दुर्गा पूजा महोत्सव विजयादशमी से शुरू हो जाता है. इस बार 12 अक्तूबर को विजयदशमी का पर्व पड़ रहा है. इसी दिन से ही पूजा महोत्सव चरम पर हो जाता है. दुर्गा पूजा के लिए पूजा समितियों की ओर से बनवाए जा रहे पंडालों के निर्माण में तेजी आ गई है. कारीगरों द्वारा पंडालों के निर्माण में तेजी ला दी गई है और मूर्तिकार भी प्रतिमाओं के रंग-रोगन को अंतिम रूप देने में जुटे हुए हैं.
1959 से सुल्तानपुर में हो रही है पूजा-अर्चना
सुल्तानपुर शहर के साथ आस-पास के गांव में लगभग 100 से अधिक पूजा पंडाल सजाए जा रहे हैं. इसको लेकर प्रशासन भी अलर्ट मोड पर है और शहर के भीतर भारी वाहनों के प्रवेश को वर्जित कर दिया है. वहीं शहर में यातायात को नियंत्रित करने के लिए खास इंतजाम किए गए हैं, ताकि लोग दुर्गा पूजा का आनंद ले पाएं. सुल्तानपुर के दुर्गा पूजा का इतिहास का पुराना रहा है. जिले में दुर्गा पूजा का शुभारंभ ठठेरी बाजार में साल 1959 में भिखारीलाल सोनी और उनके सहयोगियों ने कराया था. इससे बाद पूजा-पाठ का सिलसिला अब भी जारी है. वहीं दूसरी प्रतिमा की स्थापना 1961 में रुहट्ठा गली में बंगाली प्रसाद सोनी के द्वारा की गई थी और वर्ष 1970 में दो प्रतिमाएं और जुड़ गई.
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FIRST PUBLISHED :
October 6, 2024, 11:30 IST