नई दिल्ली. अगर आप शेयर बाजार के निवेशक हैं तो आप अक्सर अपर सर्किट और लोअर सर्किट के बारे में सुनते होंगे. निवेशकों के लिए इसके बारे में जानना जरूरी है. निवेशकों को अचानक बड़े नुकसान या भारी लाभ से बचाने के लिए और बाजार की अस्थिरता को नियंत्रित करने के लिए स्टॉक एक्सचेंज किसी खास शेयर के लिए एक लिमिट तय कर देते हैं. शेयर बाजार में किसी भी स्टॉक में पैसा लगाने से पहले सर्किट लिमिट को चेक करना चाहिए.
क्या होता है अपर सर्किट
कभी-कभी किसी कंपनी में निवेशकों की रूचि बढ़ जाती है. ऐसे में उस कंपनी के शेयर का दाम आसमान छूने लगता है. ऐसे में अपर सर्किट का प्रावधान है. निश्चित सीमा तक शेयर का दाम पहुंचते ही उसमें अपर सर्किट लग जाएगा और उसकी ट्रेडिंग बंद हो जाएगी. अपर सर्किट के भी 3 चरण होते हैं. यह 10 फीसदी, 15 फीसदी और 20 फीसदी पर लगाया जाता है.
क्या होता है लोअर सर्किट
कई बार किसी कंपनी के शेयर तेजी से गिरते जाते हैं. ऐसे में उस शेयर में बहुत ज्यादा गिरावट ना आए, इसलिए सर्किट लगाया जाता है. ऐसी स्थिति में किसी कंपनी में अचानक सब लोग शेयर बेचना शुरू कर दें तो एक निश्चित सीमा तक ही उस शेयर का मूल्य घटेगा और उसकी ट्रेडिंग बंद हो जाएगी. यह जो मूल्य घटने की सीमा है, उसे ही लोअर सर्किट कहते हैं. लोअर सर्किट के 3 चरण होते हैं. यह 10 फीसदी, 15 फीसदी और 20 फीसदी की गिरावट पर लगाया जाता है.
क्यों लाया गया सर्किट रूल
स्टॉक मार्केट सर्किट ब्रेकर्स का मकसद घबराहट में होने वाली बिक्री को रोकना और बाजार की वॉलेटिलिटी पर कंट्रोल करना है. दरअसल अक्टूबर 1987 में अमेरिकी शेयर बाज़ार में जबरदस्त बिकवाली हुई थी, इसे “ब्लैक मंडे” के तौर पर जाना जाता है. इस मार्केट क्रैश में बड़ी संख्या में निवेशकों को भारी नुकसान हुआ था. इस घटना के बाद अमेरिकी शेयर बाजार में सर्किट-ब्रेकर नियम लागू हुआ. भारत में शेयरों में सर्किट ब्रेकर्स, मार्केट रेगुलेटर सेबी ने 28 जून 2001 में बनाया था. पहली बार इस नियम का इस्तेमाल 17 मई 2004 को किया गया.
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FIRST PUBLISHED :
October 6, 2024, 13:40 IST