सैटेलाइट लॉन्च के लिए इसरो क्यों कर रहा एलन मस्क के SpaceX का इस्तेमाल?

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नई दिल्ली. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अपने नए कम्युनिकेशन सैटेलाइ (संचार उपग्रह) को लॉन्च करने के लिए पूरी तरह तैयार है. यह सैटेलाइट एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स के फाल्कन 9 रॉकेट के जरिए अमेरिका में लॉन्च किया जाएगा. इस उपग्रह का नाम GSAT-N2 रखा गया है, जिसे GSAT-20 के नाम से भी जाना जाता है. यह उपग्रह भारत में फ्लाइट्स के दौरान इंटरनेट सर्विस मुहैया कराएगा. भारत में वर्तमान में प्लेन में उड़ान के दौरान इंटरनेट सेवा की अनुमति नहीं है, जिसके कारण इस सेवा को प्रदान करने वाली एयरलाइनों को भारतीय हवाई क्षेत्र में उड़ान भरते समय इसे बंद करना पड़ता है.

हालांकि, हाल ही में सरकार ने नियमों में संशोधन किया है, जिससे भारत में उड़ान के दौरान इंटरनेट सेवाओं की अनुमति मिल गई है. नए नियमों के तहत, एयरलाइंस 3,000 मीटर की ऊंचाई पर पहुंचने के बाद वाई-फाई आधारित इंटरनेट सेवाएं प्रदान कर सकती हैं. सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि यात्री इंटरनेट सेवाओं का उपयोग केवल तभी कर सकेंगे जब विमान में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उपयोग की अनुमति होगी, भले ही विमान तय ऊंचाई पर पहुंच गया हो.

सैटेलाइट लॉन्च की टाइमिंग
यह सभी जानते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच गहरी दोस्ती है, दोनों एक-दूसरे को “मेरा दोस्त” कहकर बुलाते हैं. मशहूर बिजनेसमैन एलन मस्क भी दोनों के दोस्त हैं, और उन्होंने भी कहा है कि वह “मोदी के प्रशंसक” हैं. सैलेटालट लॉन्च का समय सही है, लेकिन संयोगवश ये सौदे अमेरिकी चुनाव परिणामों से पहले के हैं, इसलिए वॉशिंगटन डीसी या नई दिल्ली के आलोचक “भाई-भतीजावाद” का आरोप नहीं लगा सकते.

ISRO सैटेलाइट लॉन्च के लिए क्यों करेगा SpaceX का इस्तेमाल ?
भारत का अपना लॉन्च व्हीकल मार्क-3 लगभग 4,000 किलोग्राम तक का वजन जियोस्टेशनरी ट्रांसफर ऑर्बिट में ले जा सकता है. लेकिन GSAT-N2 का वजन 4,700 किलोग्राम है, जो भारत के रॉकेट्स के लिए बहुत भारी है।. इस वजह से इसरो को SpaceX के भारी लॉन्च व्हीकल का ऑप्शन तलाशना पड़ा. यह एक कमर्शियल ऑपरेशन है, जिसे इसरो की व्यावसायिक शाखा न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) के तहत किया जा रहा है. इतना ही नहीं, यह इसरो का स्पेसएक्स के साथ पहला व्यावसायिक लॉन्च होगा. फ्लाइट्स में इंटरनेट सुविधाओं के अलावा, यह सैटेलाइट भारत के दूरदराज के इलाकों में भी इंटरनेट सेवा की जरूरतों को पूरा करेगा.

मस्क की SpaceX के साथ अच्छी डील
भारत अब तक अपने भारी उपग्रहों को लॉन्च करने के लिए Arianespace पर निर्भर था, लेकिन वर्तमान में उसके पास कोई सक्रिय रॉकेट नहीं है और ऐसे में भारत के पास एकमात्र विश्वसनीय विकल्प SpaceX के साथ जाना था. चीनी रॉकेट भारत के लिए विकल्प नहीं हैं, और यूक्रेन संघर्ष के कारण रूस अपने रॉकेट वाणिज्यिक लॉन्च के लिए पेश नहीं कर पा रहा है. न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (एलएसआईएल) के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर राधाकृष्णन दुरईराज ने एनडीटीवी को बताया, “हमें SpaceX के साथ इस पहले लॉन्च के लिए एक अच्छा डील मिली.” उन्होंने कहा, “इस विशेष उपग्रह को लॉन्च करने की कीमत… टेक्निकल कम्पैटिबिलिटी और कमर्शियल डील्स के मामले में… मैं कहूंगा कि यह हमारे लिए एक अच्छा सौदा था, SpaceX के फाल्कन 9 रॉकेट पर इतने भारी उपग्रह को लॉन्च करने के लिए.”

ISRO का GSAT-N2 सैटेलाइट क्या है?
GSAT-N2 (GSAT-20) एक अत्याधुनिक Ka-बैंड हाई-थ्रूपुट कम्युनिकेशन सैटेलाइट है, जिसे इसरो ने भारत में ब्रॉडबैंड सेवाओं और इन-फ्लाइट कनेक्टिविटी (आईएफसी) में क्रांति लाने के लिए विकसित किया है. यह सैटेलाइट एडवांस वाइडबैंड Ka x Ka ट्रांसपोंडर्स और कई स्पॉट बीम्स से लैस है, जो छोटे यूजर टर्मिनल्स का उपयोग करके एक विशाल सब्सक्राइबर बेस को सपोर्ट करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. इसकी इनोवेटिव मल्टी-बीम आर्किटेक्चर एफिशिएंट फ्रीक्वेंसी रीयूज को सक्षम बनाती है, जिससे सिस्टम थ्रूपुट में महत्वपूर्ण वृद्धि होती है और क्षेत्र भर के यूजर्स के लिए मजबूत कनेक्टिविटी तय होती है.

GSAT-N2 सैटेलाइट, जिसका वजन 4,700 किलोग्राम है और मिशन की अवधि 14 साल है, भारत के एडवांस कम्युनिकेशन ढांचे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. इसमें 32 यूजर बीम्स हैं, जिनमें से 8 नैरो स्पॉट बीम्स पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए समर्पित हैं और 24 चौड़ी स्पॉट बीम्स बाकी भारत को कवर करती हैं. इन बीम्स को भारत में स्थित हब स्टेशनों से मदद मिलती है. Ka-बैंड हाई-थ्रूपुट सैटेलाइट (एचटीएस) संचार पेलोड से लैस, GSAT-N2 लगभग 48 Gbps की उल्लेखनीय डेटा थ्रूपुट प्रदान करता है.

Tags: Donald Trump, Elon Musk, Narendra modi

FIRST PUBLISHED :

November 16, 2024, 18:48 IST

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