हसन नसरल्लाह के खात्मे के बाद हिजबुल्लाह की कमर टूट चुकी है. उसके ज्यादातर कमांडर मारे जा चुके हैं. उसके पास हथियार नहीं बचे. ईरान अगर देना भी चाहे, तो उसके ठिकानों पर हमला करके इजरायल ने सबकुछ बर्बाद कर दिया है. इजरायल की आर्मी लेबनान में घुसकर आतंकियों की तलाश कर रही है, तो साउथ लेबनान में आईडीएफ ने मिसाइलों से तबाही मचा रखी है. प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू हिजबुल्ला की ओर से आए एक-एक रॉकेट का जवाब देना चाहते हैं. इस मौके का फायदा लेबनान में हिजबुल्लाह के प्रतिद्वंद्वी गुट उठाना चाहते हैं. वे हर हाल में हिजबुल्लाह की सल्तनत पर कब्जा करना चाहते हैं. तो क्या हिजबुल्लाह का पूरी तरह सफाया हो जाएगा?
मिडिल ईस्ट मामलों के एक्सपर्ट का मानना है कि हिजबुल्लाह के पास अब इतनी ताकत भी नहीं बची कि वह खुद की सुरक्षा कर सके. अलजजीरा से बात करते हुए कार्नेगी मिडिल ईस्ट सेंटर के सीनियर फेलो मोहनद हेज अली ने कहा, हिजबुल्लाह बहुत कमजोर हो गया है. उसका फिर खड़ा हो पाना मुश्किल लग रहा है.15 साल तक चले गृहयुद्ध के बाद 1990 में हिजबुल्लाह ने लोगों की पहचान, धर्म का आधार बनाकर एक बड़ा संगठन खड़ा किया था. शिया राजनीति पर उनकी मजबूत पकड़ थी. हसन नसरल्लाह को सिर्फ लेबनान नहीं, कई देशों में गुरु की तरह माना जाता था. 2000 में जब हिजबुल्लाह ने साउथ लेबनान को इजरायल के कब्जे से छुड़ाया, तब से वह लेबनान के लोगों के लिए आइकॉन बन गया था. इसके बाद उसने हथियार जुटाए, लड़ाके खड़े किए और इजरायल को सीधे चुनौती देने लगा. वह खुद को मुसलमानों का मसीहा समझने लगा.
2008 के बाद से इनके पीछे पड़े
लेकिन हिजबुल्लाह के लिए मुश्किल उस वक्त खड़ी हो गई, जब 2008 में उसने अपने लड़ाकों को अपने प्रतिद्वंद्वी गुटों के खिलाफ खड़ा कर दिया. उनके कई लोग मार गिराए. इससे लेबनान एक बार फिर गृहयुद्ध की कगार पर पहुंच गया. ईरान के इशारे पर हिजबुल्लाह बीच-बीच में इजरायल पर अटैक करता रहा. अपने प्रतिद्वंद्वी गुटों को निशाने पर लेता रहा है. एक्सपर्ट का मानना है कि अब ये गुट हिजबुल्लाह की कमजोरी का फायदा उठाने की फिराक में हैं. फिर से अपना प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं.
लेबनान के प्रधानमंत्री की बात भी सुन लें…
लेबनानी अमेरिकी विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर इमाद सलामी ने कहा, हिजबुल्लाह पर अटैक होने से लेबनान में उसके विरोधी खड़े हो रहे हैं. ये लोग ईरान का भी विरोध करते हैं. सुन्नी गुट लंबे समय से हिजबुल्लाह की सैन्य ताकत की वजह से डरे हुए थे, अब वे सल्तनत छीनना चाहते हैं. लेबनान के प्रधानमंत्री नजीब मिकाती ने कह चुके हैं कि वे साउथ लेबनान में सेना तैनात करने और हिजबुल्लाह के लड़ाकों को वहां से हटाने के लिए तैयार हैं. जो गुट हिजबुल्लाह का विरोध करते हैं, वे अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के करीबी माने जाते हैं.
हिजबुल्लाह को खत्म करना क्या इतना आसान है?
इजरायल इनकी आड़ में वहां हिजबुल्लाह को खत्म करना चाहता है. वह इन गुटों के साथ गठजोड़ करने की कोशिश में है. इससे हिजबुल्लाह का सफाया भी हो जाएगा और लेबनान में इजरायल समर्थक ताकतें पावरफुल हो जाएंगी. हालांकि, कार्नेगी के हेज अली को लगता है कि हिजबुल्लाह फिर किसी न किसी रूप में वापस आएगा, क्योंकि ऐसे संगठन खत्म नहीं होते. ये एक विचार से पैदा हुए होते हैं. लड़ाके और कमांडर तो खत्म हो जाते हैं, लेकिन इनको खत्म कर पाना आसान नहीं.
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FIRST PUBLISHED :
October 1, 2024, 16:55 IST