चाकंद के विकास पर क्या बोली यहां की जनता
जहानाबाद. बिहार के बेलागंज विधानसभा सीट पर 13 नवंबर को चुनाव होना है. वहीं, वोटों की गिनती 23 नवंबर को होगी. इस विधानसभा सीट की बात करें तो यहां पिछले 24 साल से राजद नेता सुरेंद्र यादव चुनाव जीत रहे थे. हालांकि, जहानाबाद संसदीय सीट से चुनाव जीतने के बाद यह सीट खाली हो गई, जिसके बाद यहां पर उपचुनाव हो रहा है. उपचुनाव में यहां कई स्थानीय मुद्दे भी हैं, इसे लेकर लोकल 18 की टीम बेलागंज विधानसभा क्षेत्र में चाकंद बाजार पहुंची. बेलागंज और गया के बीच बसे इस क्षेत्र की जनता का मुख्य मुद्दा विकास है. आज भी कई ऐसे काम हैं, जो अधूरे पड़े हुए हैं.
चाकंद के रहने वाले कमलेश के पास लोकल 18 की टीम जब पहुंची तो वह समोसा बना रहे थे. वह चाकंद बाजार में ही एक छोटी सी दुकान चलाते हैं और उनकी इससे रोजी रोटी चलती है. वे बताते हैं कि यहां कुछ भी विकास नहीं हुआ है. सबसे बड़ा मुद्दा सड़क है, जो जर्जर स्थिति में है. उनसे जब पूछा गया कि यहां जब विकास कुछ हुआ ही नहीं तो सुरेंद्र यादव कैसे यहां से चुनाव लगातार जीतते चले गए, इस पर उन्होंने कहा कि यहां पर जातिवादी बड़ा फैक्टर है. यहां मुस्लिम और यादव जाति की बहुलता है. इसके चलते सुरेंद्र यादव यहां से लगातार चुनाव जीतते चले गए.
इस वजह से करते आ रहे हैं समर्थन
इसके अलावा भी कुछ अन्य स्थानीय से बात करने पर उन्होंने बताया कि यहां सबसे बड़ा मुद्दा विकास ही है. स्थानीय मिथिलेश बताते हैं कि इस बार इसलिए बदलाव होना चाहिए क्योंकि हम लोग तो लगातार सुरेंद्र यादव को समर्थन करते आए, लेकिन उन्होंने कभी यहां के लिए कुछ नहीं किया. यहां हर जगह भ्रष्टाचार व्याप्त है. एक साल से बिहार स्टेट फार्मा काउंसलिंग में आवेदन दिया हुआ है और अब तक स्टूडेंट्स का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है. विपक्ष में चेहरा सही नहीं होने के चलते ही सुरेंद्र यादव को वोट कर रहे थे.
आज हालात बदले हैं, पहले स्थिति भयावह थी
एक अन्य स्थानीय ने बताया कि पहले यहां की स्थिति बहुत खराब थी. 10 बजे रात में कोई बाहर नहीं निकलता था. कोई चाकंद स्टेशन से चाकंद बाजार तक नहीं आ सकता था. यहां दो बार चाकंद स्टेशन को ही उड़ा दिया गया था. आज भी वहां कुछ उसके निशान मौजूद हैं. हालांकि, आज नीतीश सरकार आई है तो इस पर अंकुश लगा है और सुरक्षा सख्त हुई है. हालांकि, बिजली की आपूर्ति सही है. वहीं, स्थानीय नुरासिक ने बताया कि यहां कुछ भी नहीं है. सड़क की समस्या, बिजली महंगी, लेकिन किसी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है.
बैलेट पेपर से वोटिंग समझ आती थी
वोटिंग करने के तरीका पर जब स्थानीय से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि पहले वोटिंग जो होती थी, वह सही था. वहीं, 55 साल के मो. अलाउद्दीन अंसारी बताते हैं कि पहले जैसे वोटिंग होती थी, वो सही था. पहले बैलेट पेपर से जब वोटिंग होती थी तो फोटो देखकर मुहर लगा देते थे, लेकिन ईवीएम से वोटिंग होने की वजह से हमें कुछ समझ नहीं आ रहा है और पढ़ें लिखे नहीं होने के चलते जिसने जो कहा, उस हिसाब से वोटिंग करनी पड़ती है. उन्होंने यह भी कहा कि पहले मतदान पेटी ही बदल दिए जाते थे. लूट लिए जाते थे.
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FIRST PUBLISHED :
October 21, 2024, 16:55 IST