Explainer: नासा का ये रोबोट बृहस्पति के चांद की करेगा पड़ताल!

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नासा पृथ्वी से बाहर जीवन की संभावनाओं की तलाश में बृहस्पति के चंद्रमा यूरोपा और शनि के चंद्रमा एन्सेलाडस की पड़ताल में बहुत दिलचस्पी रखता है. इसके लिए वह यूरोपा क्लिपर अभियान भी भेज चुका है. दोनों चंद्रमाओं की पर बर्फ की मोटी चादर है, लेकिन उसके नीचे तरल महासागर के संकेत बार बार मिलते रहे हैं. ऐसे में नासा ने खास तरह के रोबोट तैयार किए हैं जो यहां पानी में तैर कर जीवन की संभावना पता लगाते हुए अन्य महत्वपूर्ण जानकारी देंगे.

पूल में हुआ है परीक्षण
इस रोबोट पर नासा के जेट प्रपल्शन लैबोरेटरी (जेपीएल) ने काम किया है जिसमें 42 सेमी का रोबोट करीब दो किलोग्राम का होगा जिसे सेंसिंग विद इंडिपेंडेंट माइक्रो स्विमर्स (SWIM) नाम दिया गया है. इसका पूल में परीक्षण हो चुका है. लेकिन असल में जिन रोबोट का उपयोग होगा उनका आकार करीब 12 सेमी यानी एक सेलफोन के जितना ही होगा.

इस तरह के दर्जनों रोबोट होंगे
नासा का कहना है कि  उनका प्लान एक नहीं बल्कि इस तरह के दर्जनों रोबोट इन चंद्रमाओं पर भेजने का है. ये रुबोट खुद ही पानी में चल सकेंगे और वहां के महासागरों के तापमान और रासायनिक संरचना का पता लगाएंगे. इन रोबोट के प्रोटोटाइप के टेस्ट का वीडियो जेपीएल ने शेयर किया है जिसमें उन उपकरणों को भी प्रदर्शित किया गया था जो वहां पर पड़ताल करेंगे.

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ये रोबोट पानी के अंदर जीपीएस तकनीक का इस्तेमाल करेंगे. (तस्वीर: NASA JPL)

दो हिस्सों में होगा ये काम
खास बात ये है कि इन रोबोट के साथ एक जीपीएस सिस्टम भी जुड़ा होगा जो  उनकी गतिविधियों पर निगरानी रखेगा और उनसे जरूरी संकेत और आंकड़े हासिल करेगा. प्रयोग में उपकरण दो हिस्सों में थे. एक सतह के नीचे तल के पास रोबोट पर लगे थे और दूसरे सतह के पास थे जिसमें जीपीएस सिस्टम लगा हुआ था.

यूरोपा पर अलग तरह की चुनौती
आमतौर पर किसी भी ग्रह या उपग्रह पर जब कोई यान अपने उपकरणों के साथ उतरता है तो  वह सतह से आसानी से आसमान में संकेत भेज पाता है.  ऐसा पृथ्वी के चंद्रमा और मंगल ग्रह पर रोवर आसानी से कर पा रहे हैं. लेकिन यूरोपा और एन्सेलाडस जैसे उपग्रह के हालात अलग होंगे क्योंकि महासागर के अंदर और उपग्रह की सतह के बीच एक मोटी बर्फ की चादर होगी जो कम के कम कुछ किलोमीटर मोटी होगी.

आसान नहीं होगा ये काम
ऐसे में हमारे पास दोहरा काम होगा. पहले तो हमें आंकड़े हासिल कर यूरोपा की सतह  पर लाने होंगे और उसके बाद वहां से किसी अंतरिक्ष में किसी उपग्रह तक और फिर वहां से पृथ्वी पर पहुंचाने होंगे. महासागर से इस सतह तक संकेत पहुंचाना भी एक चुनौती होगी क्योंकि इस सबका नियंत्रण पृथ्वी से नहीं किया जा सकेगा. इन तमाम व्यवस्थाओं में आपस में तालमेल दूर से बैठाना एक बहुत ही बड़ी समस्या होगी.

Exploring alien oceans with tiny robots? These prototypes could pave the mode for specified a reality!

A futuristic ngo conception – called SWIM – envisions a swarm of cellphone-size robots that could research the oceans beneath icy moons’ shells. Learn more: https://t.co/oSqwn6y14J pic.twitter.com/QQyB1aTOEr

— NASA JPL (@NASAJPL) November 20, 2024

तीन साल से हो रहा है इस पर काम
जेपीएल इस तकनीक पर बीते तीन साल से काम कर रहा है, लेकिन अभी इस योजना को स्वीकृति और फंडिंग नहीं मिली है. जबकि  इस योजना को अभी तक के तो चरणों की फंडिंग एजेंसी के स्पेस टेक्नोलॉजी मिशन डायरेक्टरेट के तहत नासा के इनोवेटिव एडवांस्ड कॉन्सेप्ट्स कार्यक्रम से चरण I और II से मिली थी.

और भी हैं तरीके
गौरतलब है कि यह इस तरह का अकेला प्रस्ताव नहीं है जिस पर नासा काम कर रहा है. ऐसे ही एक प्रस्ताव में जेपेल भी एक दूसरे तरह के रोबोट पर काम कर रहा है जिसमें एआई से सुसज्जित तकनीक काम करेगी. इसके तहत यह रोबोट असल में समुद्री जीव ईल की तरह होगा जो अपने बिजली के झटके देने के लिए मशहूर है.  सांप की तरह डिजाइन किया गया ये रोबोट यूरोपा या एन्सेलाडस जैसे ग्रहों की मोटी सतह के अंदर छेदों में घुसेगा और वहां जाकर महासागर के संसार की जानकारी हासिल करेगा.

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देखना ये है कि नासा किस तकनीक को अपनाता है कि पर इस तरह के विकल्प पर गंभीरता से विचार हो रहा है और अगले दशक में ऐसी तकनीक हमें यूरोपा या एन्सेलाडस की ओर जाते भी दिख जाएगी. फिलहाल नासा का यूरोपा क्लिपर और यूरोपीय स्पेस एजेंसी की जूस अभियान इस दशक के अंत तक यूरोपा पहुंच जाएंगे.

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FIRST PUBLISHED :

November 22, 2024, 12:10 IST

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