ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक बार भगवान परशुराम अपने इष्ट भगवान शंकर के दर्शन के लिए कैलाश पर्वत पर गए. वहां भगवान शिव माता पार्वती के साथ विराजमान थे और वह माता पार्वती को राम-कथा सुना रहे थे. कथा में बाधा उत्पन्न न हो इसके लिए उन्होंने अपना दिव्य त्रिशूल गणेश जी को प्रदान कर दरवाजे पर यह कहकर खड़ा कर दिया था कि किसी को भी वहां न आने दे. लेकिन जब भगवान परशुराम कैलाश पहुंचकर सीधे भगवान शंकर के दर्शन के लिए कैलाश के द्वार में प्रवेश करने लगे तो द्वार पर नंदी, शृंग आदि शिवगणों से उनकी भेंट हुई.
भगवान परशुराम ने उनसे भगवान शिव के बारे में पूछा कि इस समय वे कहां हैं? इस पर नंदी ने कहा कि इस बात की उन्हें कोई जानकारी नहीं है कि भगवान शिव कहां हैं. इस पर भगवान परशुराम ने नंदी आदि शिवगणों पर गुस्सा करते हुए कहा कि तुम्हें यह भी नहीं पता कि तुम्हारे आराध्य देव कहां हैं, ऐसे में तुम शिवगण कहलाने के लायक ही नहीं हो.
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परशुराम जी ने शिवगणों पर क्रोध किया और खुद भगवान शिव को ढूंढने कैलाश में प्रवेश कर गए. बहुत ढूंढने के बाद भी उन्हें भगवान शंकर कहीं नहीं मिले, अंत में एक घर दिखाई दिया जहां द्वार पर एक बालक पहरा दे रहा था. भगवान परशुराम उस बालक के पास पहुंचे और वहीं से द्वार में प्रवेश करने लगे तब भगवान गणेश जी ने उन्हें वहीं रोक दिया. इस पर परशुराम जी ने कहा तुम कौन हो जो मुझे इस तरह यहां रोकने का प्रयास कर रहे हो? इस पर गणेश जी ने कहा आप कौन हैं जो इस तरह अंदर बिना अनुमति के प्रवेश कर रहे हैं. इतने में नंदी आदि शिवगण वहां आए और भगवान परशुराम को बताया यह गजमुख वाला बच्चा माता पार्वती के पुत्र गणेश जी हैं. साथ ही गणेश जी से कहा कि ये परशुधारी भगवान शिव के अनन्य भक्त परशुराम हैं.
भगवान परशुराम ने कहा कि ये विचित्र बालक, जिसका मुंह गज का है और बाकी का शरीर इंसान का, कैसे माता पार्वती का पुत्र हो सकता है? तभी गणेश जी ने भगवान परशुराम का उपहास करते हुए कहा कि आप देखने में तो ब्राह्मण लगते हैं लेकिन आपके हाथों में कमंडल की जगह यह परशु क्यों है? इस पर दोनों में बहस होती रही.इसके बाद परशुराम भगवान शिव से मिलने के लिए उनके निवास स्थान पर अंदर जाने लगे इतने में गणेश जी ने शिव जी द्वारा दिए गए त्रिशूल को परशुराम के सामने कर उन्हें युद्ध के लिए सावधान किया. उधर परशुराम जी ने भी अपना परशु तान कर चुनौती स्वीकार की फिर दोनों के बीच भयंकर युद्ध शुरू हो गया. इस युद्ध में परशुराम जी के फरसे द्वारा गणेश जी का एक दांत कट गया जिसके चलते उनका नाम एकदंत भी पड़ा.
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FIRST PUBLISHED :
September 24, 2024, 15:46 IST