हमें कहीं भी कॉल करनी होती है तो तुरंत टच स्क्रीन से व्यक्ति का नाम देखकर नंबर डायल कर देते हैं. यही नहीं टेक्नोलॉजी इतनी एडवांस हो चुकी है कि अब फोन को बोलकर नाम बता दो तो मोबाइल पर अपने आप ही नंबर डायल हो जाता है. टेक्नोलॉजी ने भले ही भारी-भरकम फोन और कीपैड स्क्रीन को पीछे छोड़ दिया हो लेकिन आज भी लोग लैंडलाइन फोन को भूले नहीं है. उसके बटन दबाकर अक्सर लोग एक-दूसरे से घंटों बातें किया करते थे और अगर लाइन कट जाती थी तो हफ्तों में ठीक होती थी जो उन्हें परेशान कर देती थी. पुराने जमाने में घर में 10 सदस्य रहते थे लेकिन एक ही लैंडलाइन फोन होता था और जब घंटी बजती थी तो पूरे मोहल्ले में उसकी आवाज गूंज उठती थी. कई बार पड़ोसी के रिश्तेदार भी कॉल कर दिया करते थे. ब्लैंक कॉल्स भी खूब सताती थीं. इसके बाद बटन वाले कीपैड के मोबाइल आने शुरू हुए। इन्हें अब डंप फोन कहा जाता है क्योंकि लोगों ने इसका इस्तेमाल बंद कर दिया था. लेकिन दुनियाभर के कई देशों में अब इनकी डिमांड बढ़ने लगी है. आज 18 नवंबर है और यह दिन Push Button Phone Day के रूप में मनाया जाता है.
148 साल पहले बना था टेलिफोन
टेलीफोन का आविष्कार आज से 148 साल पहले स्कॉटिश वैज्ञानिक अलेक्जेंडर ग्राहम बेल ने किया. 10 मार्च 1876 में उन्होंने पहली बार टेलीफोन से कॉल की थी. भारत में लैंडलाइन टेलीफोन 1882 में आया. लेकिन बटनों को दबाकर फोन मिलाने की तकनीक 1940 में आई. इसकी शुरुआत अमेरिका के पेंसिल्वेनिया राज्य से हुई थी. हालांकि 1887 में पुश बटन के कॉन्सेप्ट पर काम शुरू हो चुका था. इससे पहले लैंडलाइन पर गोलाकार में नंबर लिखे होते थे, जिन्हें गोल-गोल घुमाना होता था.
डंप फोन का लौट रहा है जमाना
बटन वाले मोबाइल फोन को डंप फोन नाम दिया गया है क्योंकि स्मार्टफोन के सामने इन्हें कोई नहीं चलाता. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटेन समेत कई पश्चिमी देशों में अब पैरेंट्स ने इन फोन को दोबारा खरीद रहे हैं. वहां एक कैंपेन चलाई जा रही है जहां सरकारों से मांग की जा रही है कि स्मार्टफोन चलाने के लिए न्यूनतम उम्र तय की जाए. दरअसल भारत समेत पूरे विश्व में अब बच्चे स्मार्टफोन के आदी हो चुके हैं. वह घंटों फोन पर बिता रहे हैं. ऐसे में उनका समय बचाने और ध्यान काम की चीजों पर लगाने के लिए पैरेंट्स खुद भी डंप फोन चला रहे हैं और उन्हें भी इन पुश बटन के मोबाइल दे रहे हैं. इन मोबाइल पर मेसेज, कॉल, मैप्स समेत सीमित टूल ही होते हैं जिससे बच्चों का ध्यान सोशल मीडिया पर नहीं जाता. जिन पैरेंट्स ने ऐसा किया है, उन्होंने अपना अनुभव साझा किया और कहा कि उनका बच्चा अब हकीकत की दुनिया में जी रहा है और परिवार के साथ ज्यादा समय बिता रहा है.
पहला स्मार्टफोन 1992 में आईबीएम ने बनाया (Image-Canva)
वर्चुअल चैट से दूरी रहती है
डंप फोन या बटन वाले फोन एडवांस टेक्नोलॉजी से लैस नहीं होते इसलिए इन पर कोई भी सोशल मीडिया ऐप डाउनलोड नहीं किया जा सकता. इससे लोग वर्चुअल लोगों से चैटिंग से दूर रहते हैं और वह सोशल होने लगते हैं. नए लोगों से संपर्क में आते हैं. लोगों से कनेक्शन जहां उन्हें इमोशनली स्ट्रॉन्ग बनाता है, वहीं उन्हें जिंदगी में अच्छे दोस्त मिलते हैं. मनोचिकित्सक प्रियंका श्रीवास्तव कहती हैं कि जब व्यक्ति आपस में बात करते हैं तो उनके दिमाग में नए-नए आइडिया आते हैं. उनकी चर्चा प्रोडक्टिव बन जाती है. ऐसे लोग अपनी एनर्जी को नई चीजों में लगाते हैं जिससे उनकी प्रोडक्टिविटी बढ़ती है.
क्रिएटिव होता है दिमाग
स्मार्टफोन जहां दिमाग को कंट्रोल कर रहे हैं, वहीं बटन वाले फोन व्यक्ति को क्रिएटिव बना रहे हैं. हालांकि क्रिएटिविटी का इन फोनों से सीधा कनेक्शन नहीं है. बटन वाले फोन लोगों का मनोरंजन नहीं करते और ना ही उन्हें हमेशा एंगेज करके रखते हैं, ऐसे में व्यक्ति अपने शौक को पूरा करने के लिए खुद को उन चीजों में शामिल कर लेता है. डांस क्लास, गार्डनिंग, पेंटिंग, सिंगिंग, ट्रैवलिंग. इससे उनका दिमाग क्रिएटिव बनता है और दिमाग की सेहत के लिए यह बहुत जरूरी है. इससे इंसान स्ट्रेस में नहीं रहता और उनकी मेंटल हेल्थ अच्छी रहती है.
भारत में 2004 में नोकिया ने सबसे पहले टच स्क्रीन वाला स्मार्टफोन लॉन्च किया था (Image-Canva)
अच्छी नींद आती है
आजकल हर व्यक्ति रात को सोने से पहले अपने स्मार्टफोन में रील्स को स्क्रोल करके देखता रहता है जिससे आधी रात बीत जाती है. वहीं कुछ लोग ओटीटी पर फिल्में देखकर रात बीता देते हैं. जबकि रात की नींद बहुत जरूरी है. रात को हमारे शरीर से मेलाटोनिन नाम का हार्मोन निकलता है जिससे नींद आती है. ऐसे में अगर मोबाइल चलाया जाए तो इसकी ब्लू लाइट नींद को डिस्टर्ब करती है. वैरीवेल माइंड के अनुसार हर दिन केवल 30 मिनट सोशल मीडिया पर बिताने से डिप्रेशन और अकेलेपन की समस्या दूर हो सकती है. ऐसे में डंप फोन अच्छी नींद के लिए मददगार साबित हो सकते हैं. इन डंप फोन से व्यक्ति रियल वर्ल्ड में रहकर हेल्दी रूटीन में रहता है.
याददाश्त बढ़ती है
स्मार्टफोन का इस्तेमाल जहां याददाश्त का दुश्मन है, वहीं डंप फोन, लैंडलाइन यानी बटन वाले फोन याददाश्त को प्रभावित नहीं करते. इनसे दिमाग को टास्क मिलता है. यह ठीक उसी तरह है जैसे लिखकर याद करने से चीजें जल्दी याद होती हैं. अगर हाथों से नंबर दबाकर डायल किया जाए तो नंबर दिमाग में याद हो जाता है. जबकि स्मार्टफोन में फोन नंबर ऐसे डायल नहीं होते.
Tags: Mental diseases, Mental Health Awareness, Mobile apps, Mobile Phone, Smart phones, Smartphone
FIRST PUBLISHED :
November 18, 2024, 19:12 IST