नई दिल्ली. भारतीय शेयर बाजार में पिछला कुछ समय निवेशकों के लिए मुनासिब नहीं रहा. यही वहज है कि अब न केवल लॉन्ग टर्म के निवेशक, बल्कि इंट्राडे ट्रेडर तक फूंक-फूंक कर छाछ पीना चाह रहे हैं. इस नवंबर में कैश (Cash) और फ्यूचर एंड ऑप्शन (F&O) में काम करने वाले लोगों ने अपनी मुट्ठी भींचकर रखी है. कैश का टर्नओवर 12 महीने के निम्नतम स्तर पर हैं, जबकि F&O का टर्नओवर भी पिछले 7 महीनों में सबसे कम रहा है. इसकी एक वजह SEBI द्वारा लागू किए गए सख्त मार्जिन नियम भी हैं, जिसने F&O में काम करने की लागत को बढ़ा दिया है.
यह गिरावट न केवल बाजार की मौजूदा कमजोरी को दर्शाती है, बल्कि वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं और बढ़ती बाजार अस्थिरता के कारण निवेशकों के बीच बढ़ती सतर्कता का भी संकेत है.
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नवंबर के महीने में बीएसई (BSE) और एनएसई (NSE) के नकद बाजार का औसत दैनिक कारोबार 1.06 लाख करोड़ रुपये रहा, जो बीते 12 महीनों का सबसे निचला स्तर है. पिछले महीने की तुलना में इसमें 7.3% की गिरावट दर्ज की गई है. यह लगातार पांचवां महीना है जब कारोबार में गिरावट देखी गई है. बीएसई का औसत दैनिक कारोबार 6,192 करोड़ का रहा, जो पिछले महीने की तुलना में 15.6% कम है. वहीं, एनएसई का औसत दैनिक कारोबार 99,734 करोड़ रुपये रहा, जिसमें 6.8% की गिरावट हुई है.
फ्यूचर्स और ऑप्शंस (F&O) सेगमेंट में भी गिरावट दर्ज की गई. दोनों एक्सचेंजों का औसत दैनिक कारोबार 334.69 लाख रुपये करोड़ रहा है, जो पिछले महीने की तुलना में 16% कम है. इंडेक्स फ्यूचर्स में जुलाई के बाद से सबसे तेज गिरावट देखी गई. वहीं, स्टॉक फ्यूचर्स और ऑप्शंस में भी पिछले एक साल की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज हुई. इंडेक्स ऑप्शंस में जुलाई के बाद सबसे तेज गिरावट हुई है.
क्या हैं इसके पीछे की वजह?
मनीकंट्रोल की एक खबर के मुताबिक, विशेषज्ञों का मानना है कि इस गिरावट के पीछे वैश्विक और घरेलू दोनों प्रकार के कारक हैं. भू-राजनीतिक तनाव, हाई इन्फ्लेशन, और केंद्रीय बैंकों द्वारा सख्त मौद्रिक नीतियों की संभावना ने निवेशकों को सतर्क कर दिया है. घरेलू बाजार में ऊंचे मूल्यांकन और इस साल की मजबूत रैली के बाद बाजार में स्वाभाविक ठहराव की स्थिति भी कारोबार घटने का एक कारण है. इसके अलावा, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा लागू किए गए सख्त मार्जिन नियमों ने फ्यूचर्स और ऑप्शंस सेगमेंट की ट्रेडिंग लागत बढ़ा दी है, जिससे निवेशकों की भागीदारी घटी है.
डेरिवेटिव ट्रेडिंग में किए गए हालिया बदलावों ने भी बाजार गतिविधियों को प्रभावित किया है. वीकली एक्सपायरी के नियमों में बदलाव और कुछ इंस्ट्रूमेंट्स को बंद करने से बड़े निवेशकों और ट्रेडर्स की भागीदारी में कमी आई है. साथ ही, सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स (STT) के बढ़ने से ट्रेडिंग की लागत बढ़ी है. लॉट साइज में बदलाव के कारण खुदरा निवेशकों के लिए जरूरी मार्जिन में बढ़ोतरी हुई है, जिससे वे ट्रेडिंग से पीछे हट रहे हैं.
आने वाले समय में और गिरेगी वॉल्यूम
शेयर बाजार के एक्सपर्ट्स के अनुसार, SEBI के 6 पॉइन्ट्स वाले नियामकीय ढांचे के लागू होने से आने वाले समय में ट्रेडिंग वॉल्यूम में 20-30 फीसदी तक की गिरावट हो सकती है. कमजोर तिमाही नतीजे, विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) की बिकवाली और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा ब्याज दरों में कटौती की संभावना न होने के कारण भी निवेशकों का उत्साह कम हुआ है.
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FIRST PUBLISHED :
November 27, 2024, 11:14 IST