Mau: आजादी की जंग में मऊ जनपद के मधुबन का अपना एक अलग इतिहास रहा है. 15 अगस्त 1942 को यहां हुए मधुबन कांड ने विक्टोरिया साम्राज्य की चूलें हिला दी थी. हजारों की भीड़ ने मधुबन थाने पर धावा बोल दिया था. ब्रिटिश सिपाहियों की गोलियों से 13 निहत्थे रणबांकुरों की शहादत हुई, दर्जनों घायल हुए मगर देश के लिए मर-मिटने का जज्बा लिए इन जांबाजों ने थाने पर तिरंगा फहरा कर ही दम लिया. कलेक्टर की मौजूदगी में 15 अगस्त 42 को हुई नरसंहार की इस घटना ने मधुबन का नाम पूरी दुनिया में रोशन कर दिया.
बीबीसी ने की निंदा
बीबीसी लंदन तक ने इस घटना की निन्दा की और शहीदों को नमन किया था. आजादी के बाद मधुबन बाजार में शहीद स्मारक की स्थापना हुई. स्मारक पर 15 अगस्त 1942 को ब्रिटिश सिपाहियों की गोलियों से 13 निहत्थे रणबांकुरों के शहीद होने का जिक्र है. लोकल 18 से बात करते हुए यहां के स्थानीय निवासी राधे श्याम ने बताया कि भीड़ ने जब थाने पर हमला किया तो अंग्रेजों के हाथ-पैर फूल गए थे. इस कांड के बारे में पीढ़ी दर पीढ़ी सभी बच्चों को बताया जाता है.
ज्यादा हो सकती है शहीदों की संख्या
मधुबन में हुए इस कांड में आज तक साफ नहीं हो सका कि उनमें से कितने अपने पैरों पर वापस घर गए और कितने किसी के कंधे पर. कई लोगों की शहादत गुमनामी के अंधेरे में खो गई. मधुबन में दो जगहों पर बने स्मारकों पर 13 शहीदों के नाम अंकित हैं मगर इतिहासकारों का मानना है कि ये संख्या अधिक भी हो सकती है. बाजार स्थित शहीद स्मारक के समीप पर्याप्त स्थान न होने के चलते नब्बे के दशक में कठघरा शंकर तिराहे के समीप शहीद पार्क स्थापित किया गया था.
किताब में भी मिलता है जिक्र
इस घटना में बाल-बाल बचे पं. रामविलास पांडेय अपनी पुस्तक ‘कहां गये वो लोग’ में 13 देशभक्तों की शहादत का जिक्र करते हैं. हालांकि वे साथ में यह भी लिखते हैं कि सच तो यह कि मधुबन थाना पर तिरंगा फहराने की जिद पर अड़े देशभक्तों में शहादत पाने वालों की संख्या इससे अधिक थी. अंग्रेजों का खौफ ऐसा था कि जो घायलावस्था में भागे और बाद में शहीद हुए, उनके परिजनों ने चुपचाप उनका दाह संस्कार कर दिया. ऐसे में यह संख्या 13 से अधिक भी हो सकती है.
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FIRST PUBLISHED :
October 9, 2024, 15:39 IST