डॉ हरिसिंह गौर
Sagar News: डॉ. हरीसिंह गौर, स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी योद्धा और सागर विश्वविद्यालय के संस्थापक, ने 1932 में अंग्रेज ...अधिक पढ़ें
- News18 Madhya Pradesh
- Last Updated : November 26, 2024, 21:29 IST
सागर. मां भारती के वीर सपूत महानायक स्वाधीनता संग्राम के अग्रणी योद्धा, सागर विश्वविद्यालय के संस्थापक डॉ. हरीसिंह गौर के प्रति उनकी 155 वीं जयंती पर अपार उत्साह और प्रेम दिखाई दे रहा है. इसी के फल स्वरुप है कि आज बुंदेलखंड का बच्चा-बच्चा डॉक्टर गौर को भारत रत्न दिए जाने की मांग कर रहा है. भारत रत्न कमेटी में पिछले 8 सालों से सदस्य के रूप में काम कर रहे डॉक्टर संदीप रावत की नई रिसर्च कुछ और जानकारियां लेकर सामने आई है. दिल्ली से मिले दस्तावेजों में यह पता चलता है कि डॉक्टर गौर 1932 में अंग्रेजों की केंद्रीय विधानसभा में उनके दमनकारी कानून के खिलाफ अध्यादेश लेकर आए थे.
महान विधिवेत्ता डॉ. गौर ने महामहिम गवर्नर जनरल के हस्ताक्षर से पारित भारतीय अध्यादेशों की दमनकारी नीतियों कों गिनाते हुए सदन के पटल पर बताया कि –
(1) भारत में बिट्रिश सरकार के अधिकारी/कर्मचारी अपने कर्तव्य के निर्वाहन में सभी दीवानी/फौजदारी कार्यवाहियों से मुक्त होगा. यानी कि उन पर किसी तरह का कोई मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकेगा.
(2) भारत में कोई भी बिट्रिश सरकारी अधिकारी दमनकारी नीति के चलते बिना किसी सबूत के 15 दिन से 2 माह की अवधि तक भारत के किसी भी आम नागरिक को हिरासत में ले सकता है.
(3) बिट्रिश सरकारी अधिकारियों को भारतीय घरों के अंदर तक यहाँ तक कि पूजा घर तक प्रवेश अधिकार, तलाशी का अधिकार, भारतीयों की चल/अचल सम्पत्तियों को जब्त करने के अधिकार प्राप्त थे.
- डॉ. गौर ने जैसे ही अंग्रेजों के चौथे दमनकारी प्रावधान की व्याख्या शुरू की तो उसके पहले ही सदन शोर से गूंज उठा और कुछ मनोनीत सदस्यों ने भी प्रतिक्रिया दी,
(4) उन्होंने विशेष रूप से अध्यादेश की धारा 24 का उल्लेख करते हुए बताया कि जब कोई 16 वर्ष का युवा देश प्रेम के किसी आन्दोलन में शामिल होता है. अंग्रेज अधिकारियों द्वारा उसे न्यायालय द्वारा दोषी पाया जाता है, तब उस पर दमनकारी प्रावधानों के तहत जुर्माना लगाया जाता है, और जुर्माना अदा न करने पर न्यायालय यह आदेश दे सकता है कि उसके माता/पिता भी उस अपराध के दोषी हैं इसलिए उनसे जुर्माना वसूला जाए और अगर जुर्माना न दे पाए तो करवास में डाल दिया जाए.
डॉ संदीप रावत बताते हैं कि इस अध्यादेश के खिलाफ सदन में 64 वोट आए थे जबकि इसके समर्थन में 44 वोट थे, यह प्रस्ताव तो खारिज हो गया था लेकिन 1935 में नया ब्रिटिश एक्ट लागू हुआ इसके बाद लगातार कानून में संशोधन होते रहे और इस तरह से डॉक्टर गौर यह लड़ाई जीत गए थे.
डॉ. संदीप रावत बताते हैं कि 4 जुलाई 1932 को महात्मा गांधी को गिरफ्तार किया गया, इसके बाद फ्रंटियर गांधी अब्दुल गफ्फार को भी गिरफ्तार किया गया, पंडित नेहरू को नजर बंद किया गया तब देश के राष्ट्रीय नेताओं को लेकर कमी आ गई, इसको लेकर डॉक्टर गौर को दुख हुआ चिंतित हुए तब वह अंग्रेजों की केंद्रीय विधानसभा में किया है अध्यादेश लेकर आए थे जिसमें उन्होंने प्रस्ताव को पटल पर रखते हुए अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों को बताया था.
Edited By- Anand Pandey
Tags: History of India, Local18, Madhya pradesh news, Sagar news
FIRST PUBLISHED :
November 26, 2024, 21:29 IST