छिलुक चीड़ के पेड़ की लकड़ी है.
पहाड़ों में छिलुक के बिना चूल्हे की लकड़ियों को जलाना मुश्किल होता है क्योंकि अन्य लकड़ियों की तुलना में यह लकड़ी जल्द ...अधिक पढ़ें
- News18 Uttarakhand
- Last Updated : September 22, 2024, 13:53 IST
बागेश्वर. उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में तरह-तरह के प्राकृतिक संसाधन पाए जाते हैं, जो यहां के लोगों की जीवनशैली का हिस्सा बन चुके हैं. इन्हीं संसाधनों में से एक छिलुक भी है, जो चीड़ के पेड़ की जड़ों से मिलने वाली वाली एक खास तरह की लकड़ी है. इसकी खासियत यह है कि यह लकड़ी काफी जल्दी आग पकड़ लेती है. पहाड़ों में इसके बिना चूल्हा जलाना मुश्किल हो जाता है. इसका उपयोग अन्य लकड़ियों में आग सुलगाने के लिए किया जाता है, जिससे चूल्हा जलाने में आसानी होती है.
मिली जानकारी के अनुसार, पहाड़ों में प्राचीन काल से ही इस लकड़ी का उपयोग किया जा रहा है. खासकर सर्दियों के मौसम में गांव के लोग लकड़ियों के साथ-साथ छिलुक भी इकट्ठा करते हैं. इसे पूरी सर्दियों में आग जलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. बिना छिलुक के चूल्हे की लकड़ियों को जलाना मुश्किल होता है क्योंकि अन्य लकड़ियों की तुलना में यह लकड़ी जल्द आग पकड़ने में सक्षम है.
चीड़ के पेड़ों से मिलती है छिलुक
छिलुक को चीड़ के पेड़ों से प्राप्त किया जाता है. जब पेड़ से लीसा निकाला जाता है, यह लीसा कुछ मात्रा में पेड़ की जड़ों में भी जम जाता है और जब पेड़ सूख जाता है या काटा जाता है, तो उसकी जड़ों से छिलुक निकाली जाती है. इस लकड़ी का उपयोग चूल्हे में आग जलाने के साथ-साथ पहाड़ों में मशाल बनाने के लिए भी किया जाता है. छिलुक का आज भी पहाड़ के गांवों में इस्तेमाल किया जाता है और यह लकड़ी हमेशा से पहाड़ के चूल्हों का अभिन्न हिस्सा रही है.
पहाड़ों में आज भी जलता है चूल्हा
बागेश्वर के छाती गांव के रहने वाले मनोज चौबे ने लोकल 18 से कहा कि सर्दियों का मौसम शुरू होते ही वह जंगल जाकर छिलुक की लकड़ी को इकट्ठा करने लग जाते हैं. इकट्ठा किया हुआ छिलुक का एक गट्ठर कम से कम 15 दिन के लिए उपयोग में आ जाता है. गांव के पुरुष और महिलाएं दोनों जंगल से इसे इकट्ठा करके लाते हैं. उन्होंने कहा कि जहां सर्दियों में अन्य लकड़ियां सील जाती हैं, वहीं छिलुक में सीलन नहीं होती और इसे सुलगाने से अन्य लकड़ियां भी जल्दी आग पकड़ लेती हैं. पहाड़ों में ज्यादातर घरों में आज भी चूल्हा ही जलता है, जिसके लिए छिलुक का उपयोग किया जाता है.
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FIRST PUBLISHED :
September 22, 2024, 13:53 IST