इस गांव में कोई भी पशुपालक अपनी गाय या भैंस का नहीं बेचता दूध, जानें वजह

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सिरोही.

सिरोही. बग गांव में घर मे जमाने के लिए रखा दूध

सिरोही/दर्शन शर्मा: आपने उन पशुपालकों के बारे में तो सुना होगा जो गाय-भैसों के दूध से लाखों रुपए कमा रहे हैं, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं जहां के सभी पशुपालक किसी को भी दूध नहीं बेचते हैं. राजस्थान के सिरोही जिले में एक गांव ऐसा भी है जहां पीढ़ियों से पशुपालक अपनी गाय-भैसों का सैकड़ों लीटर दूध डेयरी या किसी व्यक्ति को नहीं बेचते हैं. पशुपालक दूध को घर में ही रखकर उससे घी बनाते हैं और इसी घी की वजह से इस गांव की एक अलग पहचान बन गई है. हम बात कर रहे हैं आमलारी पंचायत के बग गांव की.

महंत मुनिजी शमशेरगिरी महाराज का वचन
आज से करीब 100 वर्ष पहले इस गांव में आए महंत मुनिजी शमशेरगिरी महाराज को ग्रामीणों द्वारा दिए गए वचन की पालना की जा रही है. जब संत इस गांव आए थे और यहां तपस्या की थी, तब संत ने ग्रामीणों से कहा था कि गांव में गाय और भैंसों का दूध अन्य गांव में नहीं बेचें, घर में ही रखें. दूध बेचने का मतलब पुत्र बेचने जैसा है. संत की इस बात को मानते हुए ग्रामवासियों ने भी दूध नहीं बेचने का निर्णय किया. जिसकी पालना आज भी चौथी पीढ़ी कर रही है. गांव में कोई भी पशुपालक परिवार किसी को दूध नहीं बेचता है. गाय-भैंसों से मिलने वाले दूध का दही जमाकर उसका घी बनाते हैं. इस घी की वजह से गांव का नाम घी वाला बग गांव पड़ गया है. इस गांव में तैयार होने वाले देशी घी को खरीदने के लिए जिले के अलावा जालोर और गुजरात से भी लोग आते हैं.

दूध का उत्पादन और वितरण
800-1000 लीटर दूध का होता है उत्पादन. 200 से अधिक परिवार निवासरत हैं. इनमें अधिकांश परिवार पशुपालन से जुड़े हुए हैं. पशुपालकों के पास गाय और भैंसों से रोजाना 800-1000 लीटर दूध निकलता है. इस दूध को किसी डेयरी पर नहीं बेचा जाता है. कुछ वर्ष पूर्व एक डेयरी द्वारा यहां मिल्क सेंटर शुरू किया जाना था, लेकिन ग्रामीणों ने शमशेर गिरी को दिए वचन के चलते डेयरी खोलने से मना कर दिया.

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सामाजिक और धार्मिक आयोजन
गांव में किसी के घर कोई शादी या सामाजिक या धार्मिक कार्यक्रम हो तो वहां गांव से पशुपालक निशुल्क दूध पहुंचाते हैं. गांव में गाय-भैंसों को बीमारी से बचाने के लिए आषाढ़ माह की दशमी को मेला भरता है. जिसमें हर गाय-भैंस के अनुसार गांव से ही घी इकट्ठा कर चूरमा बनाया जाता है. ऋषि को भोग लगाकर ही प्रसाद ग्रामीणों में वितरण करते हैं.

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FIRST PUBLISHED :

October 1, 2024, 16:47 IST

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