अप्रैल 2001. टाटा ग्रुप के तमाम टॉप एग्जिक्यूटिव उस सुबह दफ्तर पहुंचे तो उन्हें अपने टेबल पर एक चिट्ठी रखी मिली. चिट्ठी भेजने वाला कौन था, यह किसी को नहीं पता. सेम लिफाफा टाटा ग्रुप के चेयरमैन रतन टाटा से लेकर सेबी के चेयरमैन और तमाम बिजनेस न्यूजपेपर के संपादकों की टेबल पर पहुंचा. चिट्ठी का मजमून सामने आया तो हड़कंप मच गया. सवाल टाटा की इज्जत का था. उस चिट्ठी में टाटा ग्रुप की कंपनी टाटा फाइनेंस और इसके मैनेजिंग डायरेक्टर दिलीप पेंडसे पर गंभीर आरोप थे.
उस चिट्ठी में ऐसा क्या था?
आरोप था कि दिलीप पेंडसे (Dilip Pendse) ने लोगों की खून-पसीने की कमाई पर डाका डाला. इन्वेटर्स के साथ धोखाधड़ी की. उस दौर में Tata Finance, टाटा की फ्लैगशिप कंपनी हुआ करती थी और तेजी से आगे बढ़ रही थी. कार से लेकर मकान तक फाइनेंस कर रही थी. एफडी कर रही थी और अच्छा रिटर्न दे रही थी. लाखों लोगों ने टाटा फाइनेंस में अपनी जमा-पूंजी लगा रखी थी. जब अखबारों में चिट्ठी और उसके दावे की खबर छपी तो जैसे भूचाल आ गया.
आर गोपालकृष्णन और हरीश भट्ट पेंगुइन से प्रकाशित अपनी किताब ”जमशेतजी टाटा: पावरफुल लर्निंग फॉर कॉरपोरेट सक्सेज’ में लिखते हैं कि यह खबर टाटा ग्रुप के लिए बहुत शॉकिंग थी. ग्रुप की साख ही उसके लिए सबकुछ थी, जिसे दशकों में बनाया-संवारा गया था. टाटा ग्रुप ने फौरन इन आरोपों की जांच शुरू करवा दी. ऑडिट में पता चला कि वाकई गड़बड़ी हुई है और कंपनी लगभग दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गई है. टाटा फाइनेंस के मैनेजमेंट ने कई संदिग्ध निवेश कर रखे थे, जिस कारण कंपनी लगभग दिवालिया हो गई थी. कंपनी पर लगभग 2,700 करोड़ रुपये का बड़ा कर्ज था. जिसमें से 875 करोड़ रुपये 4 लाख छोटे जमाकर्ताओं के पैसे थे. इनमें से कई लोगों के लिए ये जीवनभर की बचत थी, जो उन्होंने रिटायरमेंट, बच्चों की शादी और अपने बुढ़ापे के लिए रखा था.
कैसे हुई थी धोखाधड़ी?
अब टाटा फाइनेंस इन निवेशकों को पैसा लौटाने की स्थिति में नहीं था. इसी दौरान संकट की एक और वजह पता चली. दिलीप पेंडसे के नेतृत्व में टाटा ने अपनी कुछ सहायक कंपनियों को लगभग 525 करोड़ रुपये उधार दिए थे, जिसमें निश्कल्प नाम की एक कंपनी भी शामिल थी. इस पैसे का एक बड़ा हिस्सा शेयर बाजार में निवेश किया गया था. गोपालकृष्णन और हरीश भट्ट लिखते हैं कि टाटा फाइनेंस के मैनेजिंग डायरेक्टर दिलीप पेंडसे को एक भरोसेमंद व्यक्ति माना जाता था, इसलिए यह धोखाधड़ी एक बड़ा झटका था. टाटा फाइनेंस की ऑडिट से पता चला कि कंपनी ने खराब और सट्टा जैसे शेयरों में निवेश कर रखा है. वास्तव में, इनमें से कुछ लेनदेन व्यक्तिगत लाभ कमाने के लिए किए गए थे.
जब इन शेयरों का मूल्य गिर गया, तो मूल निवेश गायब हो गया और कंपनी घाटे में आ गई. यह टाटा ग्रुप के लिए बहुत नाजुक मोड़ था, क्योंकि इस ग्रुप को देश में ईमानदारी का प्रतीक माना जाता था. अब सवाल यह था कि टाटा ग्रुप इतनी बड़ी धोखाधड़ी से कैसे निपटेगा?
तब रतन टाटा आए सामने
उस वक्त रतन टाटा, Tata Sons के चेयरमैन हुआ करते थे. उन्होंने खुद आगे बढ़कर इस मामले से निपटने का फैसला किया. फौरन टाटा संस की बोर्ड बैठक बुलाई गई, जो टाटा ग्रुप की मूल कंपनी है. रतन टाटा ने टाटा संस के बोर्ड को सुझाव दिया कि वे टाटा फाइनेंस के पीछे मजबूती से खड़े रहें और कंपनी की फाइनेंशियल जरूरतों को पूरा करने के लिए तुरंत पैरेंट कंपनी से पैसा उपलब्ध कराया जाए. बोर्ड ने रतन टाटा के सुझाव का समर्थन किया. उस वक्त 500 करोड़ रुपये से अधिक की राशि बहुत बड़ी थी. धोखाधड़ी के बाद टाटा फाइनेंस पर जो कर्ज था उसका भुगतान अगर अगर अकेले टाटा संस करता तो कानूनी पचड़ा भी फंसता, क्योंकि टाटा फाइनेंस के कई अन्य शेयरधारक भी थे. टाटा संस प्रमोटर शेयर होल्डर था, लेकिन उसकी देनदारी सीमित थी.
हालांकि रतन टाटा (Ratan Tata News) ने दो टूक कहा कि ये वक्त कानून से ज्यादा नैतिक जिम्मेदारियों को निभाने का है. उन्होंने घोषणा की कि टाटा संस फौरन दो काम करेगी. पहला- हर निवेशक के हितों की पूरी तरह से रक्षा की जाएगी ताकि कोई भी व्यक्ति जिसने टाटा नाम पर भरोसा किया था, उसे नुकसान न उठाना पड़ा. इसके लिए, टाटा संस खुद धनराशि उपलब्ध कराएगा. दूसरा, इस पूरे फ्रॉड की गहन जांच की जाएगी ताकि दोषी लोगों को कानूनी रूप से दंडित किया जा सके, चाहे वे कितने भी वरिष्ठ या प्रभावशाली क्यों न हों.
हेलीकॉप्टर रखा था स्टैंडबाई पर
25 जुलाई 2001 को, टाटा ग्रुप ने पहली बार इस पूरे मामले पर एक सार्वजनिक बयान जारी किया, जिसमें स्वीकार किया कि टाटा फाइनेंस धोखाधड़ी के कारण संकट में है. इस बयान में यह भी कहा गया कि टाटा समूह यह सुनिश्चित करेगा कि कंपनी के किसी भी जमाकर्ता का पैसा न डूबे. इसके लिए टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी टाटा सन्स और उसकी सहयोगी कंपनी टाटा इंडस्ट्रीज ने तुरंत टाटा फाइनेंस को 615 करोड़ रुपये की नकद राशि और कॉर्पोरेट गारंटी प्रदान की, ताकि हर निवेशक को समय पर भुगतान किया जा सके. इसके अलावा, यह भी योजना बनाई गई कि जो भी निवेशक अपना पैसा वापस चाहते हैं, उसे टाटा की हर शाखा से तुरंत भुगतान किया जाएगा.
2001 में ऑनलाइन बैंकिंग जैसा सिस्टम इतना विकसित नहीं था और ज्यादातर कैश का लेनदेन होता था. गोपालकृष्णन और हरीश भट्ट लिखते हैं टाटा फाइनेंस ने एक हेलीकॉप्टर को स्टैंडबाय पर रखा था ताकि जरूरत पड़ने पर किसी भी ब्रांच में तुरंत हवाई मार्ग से फंड पहुंचाया जा सके. क्योंकि रतन टाटा की जुबान का सवाल था. हालांकि इस हेलीकॉप्टर का उपयोग नहीं करना पड़ा. 4 लाख छोटे जमाकर्ताओं में से केवल कुछ ही ने अपना पैसा निकाला. इसी बीच कंपनी ने बाहरी ऑडिटर भी हायर किये और पूरे मामले की जांच करवाई. अगस्त के पहले सप्ताह में टाटा फाइनेंस और टाटा इंडस्ट्रीज ने मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा में पेंडसे और कुछ अन्य पूर्व टाटा फाइनेंस कर्मचारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवा दी क्योंकि रतन टाटा ने साफ कहा था कि वो दोषियों को सजा दिलाकर दम लेंगे.
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FIRST PUBLISHED :
October 11, 2024, 16:47 IST