एग्जिट पोल के ढोल में कितना बड़ा पोल, माहौल और मिजाज की नब्ज क्यों नहीं आ रही

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एक वक्त था. अखबार में मौसम के बारे में छपता था. पढ़ने वाले तिरस्कार से कह देते थे- जो लिखा है, उसका उल्टा होगा. वही मौसम विभाग दूसरे तमाम देशों में बिल्कुल सही आदांजा लगा कर किसानों की मदद करता रहा. यहां तक कि उसी दौर में दूसरे देशों के मौसम विभाग के अंदाजे को मान कर ही जहाजें सुरक्षित चला और उड़ा करती थी. लेकिन यहां कुछ गड़बड़ हो जाती थी. हाल के कुछ वर्षों से अपना मौसम विभाग भी तकरीबन ठीक ठीक भविष्यवाणी करने लगा. अगर चुनावी सर्वे और एग्जिट पोलो की बात की जाय तो वो अब पुराने वाले मौसम विभाग की हालत में पहुंच गया है. जो अंदाजा लगा कर डुगडुगी बजा रहा है नतीजे उससे उलट आ जा रहे हैं.

इस बार हरियाणा चुनावों की बात की जाय तो ट्रेंड ही उलट गया. ट्रेंड से मतलब ये है कि सभी एग्जिट पोल कांग्रेस की सरकार बनने की बात कर रहे थे, बनने जा रही है बीजेपी सरकार. हां, हरियाणा की ही बात हो रही है. एग्जिट पोल के नतीजे देख कर कुछ बीजेपी नेता भी हार के कारणों में खोज में लग गए थे. हां, टीवी पर जरुरत गला फाड रहे थे – अभी नतीजे तो आने दीजिए.

चिंता उनके गला फाड़ने या फिर इस चुनाव में ट्रेंड के उलट जाने से नहीं है. फिक्र ये है कि फिर दर्शक भरोसा किस पर करें. टीवी चैनल सर्वे एजेंसियों को एग्जिट पोल या सर्वे के लिए मोटी रकम फीस के तौर पर देते हैं. आजकल तो कांग्रेस-बीजेपी भी सर्वे करा कर ही टिकट बांट रहे हैं. पता न उन्हें कितना सही रिजल्ट मिल रहा है. हरियाणा चुनावों के नतीजों की बात की जाय तो वहां सारे आंकड़े और उनके निषर्कष धरे रह गए. हालांकि एग्जिट पोल कराने वाली कंपनियां ये नहीं मान रही हैं कि उनके पास आंकड़े गलत आए थे. कुछ एजेंसियां ये जरूर मान रही है कि प्रासेस में कोई गड़बड़ हुई है.

मनोज कुमार सिंह मेट्राइज नाम की सर्वे एजेंसी के संचालक है. वे मानते हैं कि प्रासेस में कुछ न कुछ गलत हुआ है. उनका कहना है कि वे खुद इसे समझने की कोशिश कर रहे हैं. उनका दावा है क वे जो सर्वे कराते हैं उसके बोगस होने का सवाल ही नहीं है. फील्ड में सर्वे में जाने वालों के लोकेशन को मोबाइल से कैप्चर किया जाता है. क्वालिटी पर एआई से नजर रखी जाती है.

तो क्या जानकारी देने वाले ने ही सर्वेयर को गलत जानकारी दी? इस सवाल पर मनोज कुमार का कहना है कि ऐसा नहीं कि सर्वे में मिली राय को अलहदा रख कर कोई फैसला ले लिया जाय. उसका मिलान सोशल प्लेटफार्मों पर चल रहे ट्रेंड्स से भी किया जाता है. दूसरे सर्वे एजेंसियों पर कुछ कहने की जगह मनोज बार अपनी एजेंसी के आंकड़ों की ट्रांसपरेंसी का भी दावा करते हैं. वे कहते हैं कि उन्होंने अपने लिए एआई साफ्टवेयर का भी इस्तेमाल किया. लेकिन नतीजे उलटे आए.

आम तौर पर एग्जिट पोल या फिर सर्वे के लिए एजेंसी हॉयर करते समय टीवी चैनल एग्जिट पोल के नतीजों के समर्थन में आकंड़ों और दस्तावेजों को भी तलब करते हैं. एग्जिट पोल कराने वालों को ढेर सारे कागजों के साथ बहुत सारे आंकड़े साफ्ट फॉर्मेट में क्लाइंट को देने होते हैं. ये अलग बात है कि ज्यादातर चैनलों को उस पूरे आंकड़े की जांच करने का वक्त नहीं मिलता. चैनल बहुत चिंतित हुआ तो वो थोड़े से आंकड़ों और कुछेक कागजों को देख लेता है लेकिन कहा जा सकता है कि पूरे का सत्यापन नहीं कराता. फिर जो नतीजे सर्वे एजेंसियों की ओर से मिले उन्हें ही छाप दिया जाता है या दिखा जाता है.

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ऐसे में सीटों की संख्या में थोड़ा बहुत घट-बढ़ होने पर तो उसकी अनदेखी कर दी जाती है, लेकिन जब हारती बताई जा रही पार्टी सरकार बना ले तो इसे ट्रेंड उलट जाना माना जाता है. ये स्थिति बहुत खराब होती है. हरियाणा में ऐसा ही हुआ है. इस बारे में देश के जाने माने चुनाव विश्लेषक यशवंत देशमुख से बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने कहा कि सारे नतीजे आ जाने के बाद विश्लेषण करके ही वे कुछ कह सकेंगे.

Tags: Exit poll, Haryana Election, Haryana predetermination 2024

FIRST PUBLISHED :

October 8, 2024, 16:02 IST

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