ऑप्शन ट्रेडर के लिए सेबी का नया सर्कुलर, क्या लिखा है इसमें? समझें एक-एक पॉइंट

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नई दिल्ली. भारतीय शेयर बाजार में निवेश और ट्रेडिंग करने वालों के लिए SEBI ने कुछ नए नियम लागू किए हैं, जिनका मकसद निवेशकों की सुरक्षा और मार्केट की स्थिरता बनाए रखना है. अगर आप ऑप्शन खरीदते हैं या शेयर बाजार के इंडेक्स से जुड़े डेरिवेटिव्स में निवेश करते हैं, तो आपको इन नए बदलावों के बारे में जानना बेहद जरूरी है. इन नियमों का उद्देश्य रिस्क को कम करना, खासकर उन दिनों जब ऑप्शनों की समाप्ति होती है, और निवेशकों को बड़े नुकसान से बचाना है. आइए जानते हैं SEBI के इन नए निर्देशों को आसान भाषा में, ताकि आप समझ सकें कि ये कैसे आपके ट्रेडिंग के तरीके पर असर डाल सकते हैं और आपको अधिक सुरक्षित बना सकते हैं.

1. ऑप्शन खरीदने वालों के लिए एडवांस भुगतान

क्या है: अगर आप एक ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट (Option Contract) खरीदना चाहते हैं, जो आपको भविष्य में किसी स्टॉक को एक निश्चित मूल्य पर खरीदने या बेचने का अधिकार देता है, तो अब आपको पूरा प्रीमियम भुगतान पहले ही करना होगा.

उदाहरण: मान लीजिए, आप ₹10,000 (रुपये दस हज़ार) का एक ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट खरीदना चाहते हैं. पहले आपको इस राशि का एक हिस्सा तुरंत और बाकी बाद में भुगतान करने की अनुमति होती थी. लेकिन अब SEBI कहता है कि आपको पूरा ₹10,000 पहले ही चुकाना होगा. यह इसलिए है ताकि व्यापारी उतना ही रिस्क लें जितना वे संभाल सकते हैं और भविष्य में किसी भी तेज़ी से होने वाले नुकसान से बच सकें.

2. एक्सपायरी डे के लिए कोई विशेष लाभ नहीं

क्या है: जिस दिन आपका कॉन्ट्रैक्ट समाप्त होता है (Expiry Day), उस दिन आपको कोई विशेष मार्जिन लाभ (Margin Benefit) नहीं मिलेगा, जैसे पहले होता था कि कम मार्जिन में स्थिति बनाए रखी जा सकती थी. एक्सपायरी डे पर यह लाभ हटा दिया जाएगा.

उदाहरण: मान लीजिए आपके पास दो कॉन्ट्रैक्ट हैं, एक 3 दिन बाद समाप्त हो रहा है और दूसरा 30 दिन बाद. पहले आप इन दोनों को एक साथ रखकर कम मार्जिन में काम कर सकते थे, क्योंकि वे एक दूसरे के रिस्क को संतुलित कर सकते थे. लेकिन पहले कॉन्ट्रैक्ट के एक्सपायरी डे पर, SEBI यह लाभ हटा देगा क्योंकि उस दिन बाजार में बहुत उतार-चढ़ाव हो सकता है, जिससे रिस्क बढ़ जाता है. इसलिए आपको हर कॉन्ट्रैक्ट के लिए पूरा मार्जिन जमा करना होगा.

3. दिन के दौरान पोजीशन लिमिट की निगरानी

क्या है: अभी तक स्टॉक एक्सचेंज दिन के अंत में ही यह देखते थे कि आपने कितनी बाय-सेल की और कहीं आपने तय सीमा से ज्यादा तो नहीं किया. SEBI अब इस सीमा की जांच पूरे दिन में कई बार करेगा.

उदाहरण: मान लीजिए, एक नियम है कि आप 100 कॉन्ट्रैक्ट ही रख सकते हैं. पहले, अगर गलती से आपने दिन में 150 कॉन्ट्रैक्ट ले लिए, तो दिन के अंत तक यह पकड़ा नहीं जाता था. अब SEBI दिन में चार बार अचानक से स्थिति जांचेगा कि कहीं आपने सीमा पार तो नहीं की. यह सुनिश्चित करेगा कि कोई भी व्यापारी दिन के दौरान अधिक रिस्क न ले.

4. कॉन्ट्रैक्ट के आकार में वृद्धि

क्या है: अब इंडेक्स डेरिवेटिव्स कॉन्ट्रैक्ट का न्यूनतम मूल्य ₹15 लाख (रुपये पंद्रह लाख) निर्धारित किया गया है, जबकि पहले यह ₹5-10 लाख (रुपये पाँच से दस लाख) था. इसका मतलब है कि अब इन कॉन्ट्रैक्टों में निवेश करने के लिए बड़े पैमाने पर निवेश की जरूरत होगी.

उदाहरण: पहले अगर आप ₹8 लाख (रुपये आठ लाख) का कॉन्ट्रैक्ट खरीदना चाहते थे, तो वह काफी होता था. अब कॉन्ट्रैक्ट का न्यूनतम मूल्य ₹15 लाख (रुपये पंद्रह लाख) होगा, जिसका मतलब है कि आपको इस व्यापार में प्रवेश करने के लिए और अधिक पैसा लगाना पड़ेगा. SEBI यह सुनिश्चित करना चाहता है कि केवल वही लोग इस रिस्क भरे उत्पाद में निवेश करें, जो इस बड़े रिस्क को संभाल सकते हैं.

5. साप्ताहिक डेरिवेटिव्स की संख्या में कमी

क्या है: अभी कुछ एक्सचेंज आपको हर हफ्ते समाप्त होने वाले डेरिवेटिव्स में व्यापार करने की अनुमति देते हैं. SEBI अब इसे घटाकर प्रति एक्सचेंज केवल एक साप्ताहिक समाप्ति वाला डेरिवेटिव करने जा रहा है ताकि अत्यधिक सट्टेबाजी (Speculation) कम हो सके.

उदाहरण: मान लीजिए कि एक स्टॉक एक्सचेंज सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार को समाप्त होने वाले डेरिवेटिव्स की पेशकश करता है. SEBI का कहना है कि इससे एक्सपायरी डे पर अत्यधिक सट्टेबाजी होती है. नवंबर 2024 से, प्रत्येक एक्सचेंज को केवल एक दिन के साप्ताहिक डेरिवेटिव्स की पेशकश की अनुमति होगी, जैसे केवल गुरुवार को. यह उन दिनों में होने वाले अनियमित ट्रेडिंग और उतार-चढ़ाव को कम करने में मदद करेगा.

6. एक्सपायरी डे पर रिस्क कवरेज में वृद्धि

क्या है: एक्सपायरी डे पर SEBI ट्रेडर्स से अधिक पैसा (अतिरिक्त मार्जिन) जमा करने की मांग करेगा ताकि संभावित नुकसान को कवर किया जा सके, क्योंकि एक्सपायरी डे काफी रिस्क भरा होता है.

उदाहरण: मान लीजिए, आपने कुछ ऑप्शन बेचे हैं, और वे अब समाप्त होने वाले हैं. ऑप्शन बेचना रिस्क भरा हो सकता है क्योंकि यदि खरीदार अपने अधिकार का उपयोग करता है, तो आपको सौदा पूरा करना होगा. सामान्यतः आपको कॉन्ट्रैक्ट मूल्य का 10% मार्जिन के रूप में रखना होता है. लेकिन एक्सपायरी डे पर, चीजें अनियमित हो सकती हैं और कीमतें तेजी से बदल सकती हैं. SEBI इस दिन आपको अतिरिक्त 2% मार्जिन रखने के लिए कहेगा ताकि रिस्क कवर हो सके. तो अब 10% की जगह आपको उस दिन 12% मार्जिन रखना होगा.

Tags: Business news, Share market

FIRST PUBLISHED :

October 1, 2024, 21:10 IST

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