अगर आप भी खाते हैं केला तो जान लीजिए यह बात
जमुई. त्योहारों का मौसम शुरू हो गया है, नवरात्रि में लोग मां भगवती की उपासना करते हैं और व्रत रखते हैं. व्रत में सामान्य रूप से भारतीय परिवारों में फलाहार के तौर पर केले का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे तो केला स्वास्थ्य के लिए काफी लाभदायक माना जाता है. केले में मैग्नीशियम, पोटेशियम, विटामिन बी-6, फास्फोरस जैसे विटामिन और मिनरल्स होते हैं, जो शरीर को फायदा पहुंचाते हैं. लेकिन केले को जल्दी पकाने के लिए और उसे खूबसूरत बनाने के लिए बाजारों में मौजूद केले में कई प्रकार के रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है. जो सीधे तौर पर मनुष्य के शरीर को नुकसान पहुंचाता है और इससे कैंसर जैसी घातक बीमारियां भी हो सकती हैं.
आमतौर पर बाजारों में मौजूद केले को पकाने के लिए कार्बाइड का इस्तेमाल किया जाता है, जो एक रसायन है और इसका पूरा नाम ‘कैल्शियम कार्बाइड’ है. इसमें आमतौर पर आर्सेनिक और फास्फोरस पाया जाता है. जिससे मनुष्य के शरीर को कई नुकसान पहुंच सकता है. इसके साथ ही केले को पकाने के लिए एथिलीन की आवश्यकता होती है, लेकिन जो केले के पौधों में स्वतः ही उत्पन्न होता है और बराबर मात्रा में बनने पर वह शुगर में कन्वर्ट हो जाता है. लेकिन बाजार में बिकने वाले केले में एथिलीन का इंजेक्शन लगा दिया जाता है ताकि वह केला जल्दी पक सके. वह खाने में मीठा हो और वह दिखने में बिल्कुल पीला हो. लेकिन इसका घातक असर इंसानी शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है.
ये केला पहुंच सकता है गंभीर नुकसान
चिकित्सा पदाधिकारी डॉ रास बिहारी तिवारी ने लोकल 18 को बताया कि अगर ठीक ढंग से इसका इस्तेमाल किया जाए तो एथिलीन हानिकारक नहीं है. लेकिन अगर इसका इस्तेमाल अत्यधिक मात्रा में कर दिया जाए तो यह कई प्रकार की गंभीर बीमारियां पैदा कर सकता है. जिसमें पेट, हृदय और हड्डियों से जुड़ी समस्याएं शामिल है. इसके साथ ही अगर केले को पकाने के लिए अत्यधिक मात्रा में कैल्शियम कार्बाइड का इस्तेमाल किया जाए तो यह कैंसर जैसी गंभीर बीमारी को भी उत्पन्न कर सकता है. इतना ही नहीं पेट दर्द, दस्त, जलन जैसी समस्याएं भी शुरू हो सकती है और गंभीर मामलों में न्यूरोलॉजिकल समस्याएं उत्पन्न हो सकती है.
ऐसे करें कार्बाइड से पके केले की पहचान
ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि बाजार में मिल रहे केले की पहचान कैसे की जा सकती है. आपको बता दें कि जो केले प्राकृतिक तौर पर पकाए जाते हैं, वह एक समान रूप से पीले होते हैं और पूरा केला एक समान रूप से पकता है. जबकि कैल्शियम कार्बाइड या इंजेक्शन से पकाए गए केले जल्दबाजी में पकते हैं और उसके कई हिस्से हरे रह जाते हैं. प्राकृतिक रूप से पका केला छूने पर मुलायम होता है और वह अपना आकार बनाए रखता है. जबकि इंजेक्शन से पकाया हुआ केला छूने में काफी सख्त होता है. केले की अपनी प्राकृतिक खुशबू भी होती है, जो केवल प्राकृतिक रूप से पके केलों में महसूस की जा सकती है.
Tags: Bihar News, Health tips, Jamui news, Local18
FIRST PUBLISHED :
October 3, 2024, 16:43 IST
Disclaimer: इस खबर में दी गई दवा/औषधि और स्वास्थ्य से जुड़ी सलाह, एक्सपर्ट्स से की गई बातचीत के आधार पर है. यह सामान्य जानकारी है, व्यक्तिगत सलाह नहीं. इसलिए डॉक्टर्स से परामर्श के बाद ही कोई चीज उपयोग करें. Local-18 किसी भी उपयोग से होने वाले नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं होगा.