पुरुष क्यों पसंद नहीं करते मेकअप वाली ‘मैडम’?

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महिलाओं का मेकअप से 5 हजार साल पुराना नाता है लेकिन फिर भी कई लोगों को महिलाओं का मेकअप करना अच्छा नहीं लगता. पिछले दिनों पटना हाईकोर्ट ने एक सुनवाई के दौरान कहा कि विधवा को मेकअप की जरूरत नहीं है जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने आपत्ति जताई और सोशल मीडिया पर बवाल खड़ा हो गया. महिला कुंवारी हो, शादीशुदा हो या विधवा या फिर बुजुर्ग, उनका मेकअप क्यों समाज को चुभता है? मेकअप महिलाओं के लिए खूबसूरत दिखने का तरीका नहीं, बल्कि स्ट्रेस बस्टर है. जरूरत पड़ने पर उन्होंने इसे विरोध का जरिया भी बनाया. 

 उम्र से मेकअप का कोई कनेक्शन नहीं
अगर कोई कुंवारी लड़की लिपस्टिक लगाती है तो घरवाले तुरंत उसे हटाने को कहते हैं. जबकि ऑस्ट्रेलिया में आदिवासी समूह में लड़कियों के जवान होने पर होंठों पर लाल गेरू लगाया जाता है. अगर महिला बुजुर्ग हो और मेकअप करे तो बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम कहकर लोग पुकारने लगते हैं. अगर कोई विधवा मेकअप करे तो हाय तौबा मच जाती है क्योंकि उसका पति अब इस दुनिया में नहीं है. क्या महिला को उम्र और अपना मैरिटल स्टेटस देखकर मेकअप करना चाहिए, इस पर 52 साल में मॉडल बनीं ऐज नॉट केज की फाउंडर गीता जे कहती हैं कि महिलाओं को कभी उम्र में नहीं बांधना चाहिए. वह हर उम्र में कुछ भी करने को स्वतंत्र हैं. मेकअप खुद को अभिव्यक्त करने का तरीका है. यह उम्र और हालातों का मोहताज नहीं है.

पुरुषों को नहीं भातीं मेकअप वाली महिलाएं?
सिविक साइंस ने अमेरिका में एक सर्वे किया जिसमें 18 से 24 साल की 39% लड़कियों ने माना कि वह रोज मेकअप करती हैं. वहीं, ब्रिटेन में सेंट ईव्स नाम की एक कंपनी ने सर्वे में पाया कि 50 फीसदी महिलाएं सालभर में 1500 बार मेकअप करती हैं. इसी सर्वे में 75 प्रतिशत पुरुषों ने कहा कि उन्हें महिलाएं बिना मेकअप के पसंद आती हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर ने जब लिपस्टिक पर सर्वे किया तो पाया कि जो महिलाएं लाल लिपस्टिक लगाती हैं, पुरुष उन्हें 7.3 सेकंड तक घूरकर देखते हैं. दूसरे लिप शेड्स पर यह समय घटकर 2.2 सेकंड रह जाता है. लेकिन जो पुरुष महिलाओं के होंठों को घूरकर देख रहे थे उन्होंने यह भी माना कि उन्हें महिलाओं के नेचुरल होंठ पसंद हैं क्योंकि इससे उनके लिए किस करना सहज हो जाता है.  

1920 में हॉलीवुड में कॉस्मेटिक्स का इस्तेमाल होने लगा (Image-Canva)

प्राचीन मिस्र में लड़के भी करते थे मेकअप
5 हजार साल पहले प्राचीन मिस्र में महिला और पुरुष दोनों मेकअप करते थे. मेकअप अमीर होने का प्रतीक था. मिस्र के लोगों की मान्यता थी कि मेकअप करने से भगवान उनकी तरफ आकर्षित होते हैं. यहां महिला और पुरुष नीले, लाल और काले रंग का आईलाइनर लगाते थे. ब्रोमाइड और आयोडीन को फेस पाउडर की तरह इस्तेमाल किया जाता था. मछली की हड्डियों और कीड़ों से होंठों को रंगा जाता. बी वैक्स और किशमिश से लोशन तैयार होता था. प्राचीन मिस्र की रानी क्लियोपैट्रा खुद कैरमाइन बीटल नाम के कीड़े से निकलने वाले लाल रंग को होंठों पर लिपस्टिक की तरह लगाती थीं. 

मेकअप आजादी का प्रतीक
मेकअप का सदियों पहले से विरोध होने लगा था. 1837 में ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया ने मेकअप को वल्गर यानी भद्दा कहा जिससे कॉस्मेटिक्स का इस्तेमाल आउट ऑफ फैशन हो गया. लेकिन मेकअप में लिपस्टिक ने बहुत महत्वपूर्ण रोल निभाया. इस 3 इंच की ट्यूब ने सड़कों पर हल्ला मचा दिया था. 1920 तक पश्चिम देशों में कहा जाता था कि अच्छी लड़कियां मेकअप नहीं करतीं और ना लिपस्टिक लगाती हैं. दरअसल इस कॉस्मेटिक को सेक्स वर्कर्स से जोड़ा जाता था. 20वीं सदी में अमेरिका में महिलाएं लाल लिपस्टिक लगाकर सड़क पर उतरीं और वोट डालने के हक की मांग की. 1912 में एलिजाबेथ अर्डन नाम की बिजनेसवुमन से न्यूयॉर्क में ‘रेड डोर रेड’ नाम से कैंपेन चलाकर घर-घर जाकर महिलाओं को 15 हजार लिपस्टिक बांटीं. 1939 से 1945 तक यानी दूसरे विश्व युद्ध के दौरान महिलाओं का मेकअप और लाल लिपस्टिक उनकी देशभक्ति का प्रतीक बनीं. दरअसल जर्मन तानाशाह हिटलर को मेकअप से नफरत थी, खासकर लाल लिपस्टिक से. महिलाएं उसके विरोध में इसे लगाने लगीं। 

यूरोप में 1920 में लिपस्टिक केवल दिन में पब्लिक प्लेसेज पर जाने पर लगाई जा सकती थी (Image-Canva)

मेकअप सेल्फ लव का तरीका
कहा जाता है कि खूबसूरती सूरत में नहीं सीरत में होनी चाहिए. लेकिन हमारे समाज में चेहरे की खूबसूरती को हमेशा अहमियत दी गई है. लड़की मेकअप करती है तो अक्सर सोचा जाता है कि ऐसा उन्होंने लड़कों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए किया है. लेकिन ऐसा नहीं है. मनोचिकित्सक प्रियंका श्रीवास्तव के अनुसार मेकअप लड़कियों के लिए फील गुड फैक्टर है. मेकअप उनके लिए सेल्फ लव है. हर लड़की को खूबसूरत दिखने का हक है और मेकअप उन्हें यह मौका देता है. 

रंग बिरंगे कॉस्मेटिक्स तनाव को रखते दूर
मेकअप खुद को खुश रखने का जरिया है. मनोचिकित्सक प्रियंका श्रीवास्तव कहती हैं कि मेकअप हर महिला के लिए ‘मी टाइम’ है. खुद को शीशे के सामने घंटों निहारना उनके तनाव को दूर करता है. रंग बिरंगे आईशैडो, लिपस्टिक, नेल पॉलिश और आईलाइनर उनका अकेलापन दूर कर उन्हें डिप्रेशन, स्ट्रेस, एंग्जाइटी समेत कई मेंटल डिसऑर्डर से दूर रखते हैं. महिलाओं में कुछ मिनटों का फेशियल, हेयर कट, पेडिक्योर या मेनिक्योर ही मूड बूस्टर का काम कर देता है. 

आत्मविश्वास बढ़ता है
मेकअप महिलाओं के लिए एक थेरेपी है क्योंकि इससे कॉर्टिसोल नाम का स्ट्रेस हॉर्मोन दूर रहता है और डोपामाइन जैसा हैप्पी हॉर्मोन रिलीज होने लगता है. इसके अलावा मेकअप के ब्रश और कॉस्मैटिक्स जब स्किन को टच करते हैं तो ऑक्सिटॉक्सिन नाम का कडल हॉर्मोन रिलीज  होता है जो उन्हें खुद से प्यार करने की फीलिंग से भर देता है. इटली की यूनिवर्सिटी ऑफ चिएती में हुई स्टडी में यह बात साबित हो चुकी है. स्टडी में सामने आया कि जो महिलाएं मेकअप करती हैं, उनका आत्मविश्वास बाकी महिलाओं के मुकाबले ज्यादा झलकता है. 

Tags: India Women, Patna precocious court, Women rights

FIRST PUBLISHED :

October 3, 2024, 18:31 IST

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