कम हो रहे रेगिस्तानी जहाज, सरकार ने बचाने के लिए बनाया कानून, जानिए आखिर कैसे घटी संख्या
ऊंट
ऊंटों की घटती संख्या चिंता का विषय है. राज्य सरकार इस पर चिंता भी जता चुकी है. राजस्थान ऊंट वध का निषेध और अस्थाई प्रवा ...अधिक पढ़ें
- News18 Rajasthan
- Last Updated : October 21, 2024, 12:05 IST
नागौर. जानवरों में ऊंट किसी अजूबे से कम नहीं है. राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्र में यह जहाज है. यह एक बार में सौ से डेढ़ सौ लीटर पानी पी सकता है. रेतीले या मैदान हर यात्रा को आसानी से पार कर लेता है. इसकी चमड़ी मोटी होती है जो उसे सूर्य की तेज रोशनी से बचाती है. इसके पैर गद्देदार होते हैं. इसी कारण रेत में आसानी से वह चल सकता है. ऊंटनी का दूध कई बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल किया जाता है.
धीरे-धीरे किसानों के इस वाहन की संख्या कम हो रही है. राज्य सरकार इस पर चिंता भी जता चुकी है. राजस्थानी ऊंट वध का निषेध और अस्थाई प्रवासन या बाहर भेजने के खिलाफ रेगुलेशन कानून बनाया गया है. इससे ऊंट को बचाया जा सकता है.
नागौर में रायका-रेबारी समुदाय के लोगों सदियों से ऊंट पाल रहे है. सही मायने में इन लोगों का घर ही ऊंट प्रजनन का मुख्य केंद्र है. यह समुदाय ऊंट को ही अपनी आर्थिक समृद्धि का आधार मानते हैं. रायका-रेवाड़ी बड़े झुंड में ऊंट का पालन करते हैं.
एक नहीं, घटने के हैं कई कारण
चराई क्षेत्र का कम होना: पुराने दौर में चारागाह भूमि, वन भूमि ज्यादा रहने से ऊंटों के झुंड के लिए आसानी से चारागाह मिल जाता था. अब चराई क्षेत्र लगातार घट रहा है.
आर्थिक लाभ की कमी: ऊंट के झुंड के भरण पोषण के लिए बड़ी मात्रा में पैसे की जरुरत होती है. ऊंट पालकों के लिए उन्हें पालन मुश्किल हो रहा है. मौजूदा समय में ऊंट पालक आर्थिक परेशानी से जूझ रहे हैं.
दूध की कम मांग: बाजार में ऊंटनी के दूध की मांग बहुत कम होने से दूध की खपत नहीं होती है. वहीं इसके दूध को सुरक्षित इकट्ठा करने की मॉडर्न नहीं होने के कारण डेयरी मार्केटिंग सिस्टम में भी कमी है. ऐसे में ऊंट पलकों के लिए परेशानी आती है.
बढ़ता शहरीकरण: लगातार जंगल व चारागाह भूमि कम होने से ऊंट पालकों के लिए परेशानी बनी हुई है. शहरीकरण होने से गांव के लोग शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं. ऐसे में ऊंटों के झुंड को पालना बहुत मुश्किल होता जा रहा है.
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FIRST PUBLISHED :
October 21, 2024, 12:05 IST