महीने में सिर्फ चार दिन मिलती है यह खास चमड़े की जूती
मोहित शर्मा / करौली: राजस्थान के करौली की पहचान सिर्फ ऐतिहासिक धरोहरों से ही नहीं, बल्कि वहां बनने वाली खास चमड़े की जूती से भी है. यह जूती सदियों पुरानी शाही परंपरा और करौली की हस्तशिल्प कला का जीता-जागता उदाहरण है. राजा-महाराजाओं के समय से ही करौली में इस जूती का विशेष महत्व रहा है. आज भी इसकी मांग इतनी अधिक है कि इसे खरीदने लोग दूर-दराज से आते हैं.
सिर्फ हाट बाजार में उपलब्ध होती है यह जूती
यह जूती करौली के हाट बाजार में ही मिलती है, जो केवल सोमवार के दिन, महीने में चार बार लगता है. स्थानीय कारीगर इसे हाथ से बनाते हैं और इसके लिए उच्च गुणवत्ता वाले शुद्ध चमड़े का उपयोग किया जाता है. करौली के हाट बाजार में इसकी कीमत ₹200 से ₹1000 तक होती है.
स्थानीय कारीगर गोविंद कुमार बताते हैं कि इस जूती को तैयार करने में काफी मेहनत लगती है. इसे पक्के चमड़े से बनाया जाता है और खासियत यह है कि इसे रोजाना पहनने के बाद भी पैरों में बदबू नहीं आती. इसकी उम्र करीब दो साल होती है.
राजा-महाराजाओं के समय से है लोकप्रियता
स्थानीय निवासी सैयद अनवर आलम ने बताया कि इस जूती का प्रभाव शाही दौर से रहा है. हालांकि, आधुनिक समय में युवा इसे कम पहनते हैं, लेकिन बुजुर्ग और किसान अब भी इसे पसंद करते हैं. यह जूती पैरों को आरामदायक बनाए रखती है और नुकीली चीजों से भी सुरक्षा प्रदान करती है.
पैरों के लिए बेहद आरामदायक
हाट बाजार में जूती खरीदने आए बुजुर्ग शहजाद खान ने बताया, मैं बचपन से यह जूती पहनता आ रहा हूं. यह बहुत आरामदायक है और इससे पैर मुड़ते नहीं हैं. यहां तक कि नुकीली चीजों पर पैर रखने से भी कोई नुकसान नहीं होता. उन्होंने कहा कि यह जूती पीढ़ियों से लोकप्रिय है और आज भी इसकी प्रशंसा की जाती है.
हस्तशिल्प की धरोहर: मेहनत और शिल्पकला का मेल
कारीगर गोविंद कुमार ने बताया कि इस जूती को बनाने के लिए सबसे पहले अच्छी क्वालिटी का पक्का चमड़ा लाया जाता है. फिर हाथों से इसे आकार देकर तैयार किया जाता है. यह जूती इतनी मजबूत होती है कि लगातार उपयोग के बावजूद लंबे समय तक खराब नहीं होती.
करौली की शाही पहचान
चमड़े की यह जूती न केवल करौली की शाही विरासत और हस्तशिल्प कला का प्रतीक है, बल्कि यह उन कारीगरों की मेहनत और परंपरा को भी जीवित रखती है, जिन्होंने इसे पीढ़ियों से तैयार किया है. आज भी यह जूती करौली की शान बनी हुई है और इसे खरीदने दूर-दूर से लोग आते हैं. इस जूती का हर सोमवार के हाट बाजार में दीदार करना, शाही इतिहास को करीब से महसूस करने जैसा है.
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FIRST PUBLISHED :
November 22, 2024, 20:38 IST