अमित कुमार/समस्तीपुरः बेल की फसल कई बीमारियों के प्रति संवेदनशील होती है, जिनका समय पर प्रबंधन करना जरूरी होता है. एक महत्वपूर्ण समस्या पाउडरी मिल्ड्यू है, जो एक फंगल संक्रमण है जो पेड़ की पत्तियों पर सफ़ेद पाउडर के रूप में प्रकट होता है. इस बीमारी को प्रबंधित करने के लिए, प्रभावित शाखाओं को छांटना और सल्फर फफूंदनाशक का छिड़काव करना महत्वपूर्ण है. इसके अतिरिक्त, नमी के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करने के लिए ऊपर से पानी देने से बचें.
वहीं डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा के वैज्ञानिक डॉ. संजय कुमार सिंह पौधे के संक्रमित हिस्सों को छांटने और हटाने की सलाह देते हैं. उन्होंने Local18 को बताया कि निष्क्रिय मौसम के दौरान तांबे आधारित फफूंदनाशकों का उपयोग करने और बेहतर वायु परिसंचरण के लिए पेड़ों के बीच पर्याप्त दूरी सुनिश्चित करें.
पत्तियों पर पड़ रहे काले धब्बे
बेल के पत्तों के दोनों तरफ आमतौर पर 2 से 3 मिमी के काले धब्बे दिखाई देते हैं. ये धब्बे आइसरे ऑप्सिस नामक काले कवक से ढके होते हैं. इस समस्या को कम करने के लिए, 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम या कार्बेन्डाजिम और मैन्कोजेब के मिश्रण को एक लीटर पानी में घोलकर बनाया गया घोल छिड़कना ज़रूरी है. इस उपचार से बीमारी की गंभीरता काफ़ी हद तक कम हो जाएगी.
बैक्टीरियल ब्लाइट के लक्षण
वैज्ञानिक ने कहा कि बैक्टीरियल ब्लाइट के कारण बेल की पत्तियों पर काले, पानी से लथपथ घाव बन जाते हैं, जिससे पत्तियां गिरने लगती हैं. ऐसी समस्या से निपटारा हेतु संक्रमित शाखाओं को काटकर हटा दें और उन्हें जला दें. तांबा आधारित जीवाणुनाशक, जैसे कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की 2.5 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें. इन उपायों को अपनाकर आप अपने बेल के पेड़ को इस रोग से बचा सकते हैं.
आंतरिक विगलन के लक्षण
बेल के बड़े फल अप्रैल-मई में बहुत गिरते हैं. गिरे हुए फलों में आंतरिक विगलन के लक्षण दिखते हैं, साथ ही बाहरी त्वचा में भी फटन होती है. इस समस्या से निपटने के लिए, प्रति पेड़ 250 से 500 ग्राम घुलनशील बोरेक्स का प्रयोग करें, जो कि पेड़ की उम्र और कैनोपी के अनुसार तय किया जाए. जब फल छोटे हों, तो 4 ग्राम घुलनशील बोरेक्स को प्रति लीटर पानी में मिलाकर 15 दिनों के अंतराल पर दो बार छिड़काव करें. फलों को तोड़ते समय अगर गिर जाएं, तो उनकी बाहरी त्वचा में हल्की फटन हो जाती है, जिससे वे जल्दी सड़ जाते हैं. ऐसे फलों में एस्परजिलस फफूंद लग जाती है और उनका गूदा मुलायम और तीखा हो जाता है. इसे रोकने के लिए, फलों को सावधानी से तोड़ें ताकि वे जमीन पर न गिरें और उनकी त्वचा पर फटन न हो. साथ ही, फलों को मिट्टी के संपर्क में नहीं आने देना चाहिए.
बेल का मरण रोग क्या है ?
डॉक्टर संजय कुमार सिंह ने बताया कि, यह रोग लेसिडिप्लोडिया नामक फफूंद से होता है. इस रोग में पौधों की टहनियां ऊपर से नीचे की ओर सूखने लगती हैं. टहनियों और पत्तियों पर भूरे धब्बे नजर आते हैं और पत्तियां गिर जाती हैं. इस रोग को रोकने के लिए, रोगग्रस्त टहनियों की अच्छी तरह से कटाई करें. फिर 3 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को प्रति लीटर पानी में घोलकर (0.3 प्रतिशत) 10 से 15 दिनों के अंतराल पर दो बार छिड़काव करें. इससे रोग की गंभीरता कम होती है.
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FIRST PUBLISHED :
September 29, 2024, 08:37 IST