Agency:Local18
Last Updated:February 04, 2025, 21:38 IST
Free Education to Dropout Girls: सूरत के सरकारी स्कूल शिक्षक नरेश मेहता ने 10 सालों में 1800 से अधिक ड्रॉपआउट छात्राओं को मुफ्त शिक्षा दी, जिससे कई सरकारी पदों पर नियुक्त हुईं. उनके प्रयासों से कई छात्राएं 10वी...और पढ़ें
हाइलाइट्स
- नरेश मेहता ने 1800 से अधिक ड्रॉपआउट छात्राओं को मुफ्त शिक्षा दी.
- कई छात्राओं ने 10वीं और 12वीं की परीक्षा पास की.
- छात्राओं को मुफ्त किताबें और ऑनलाइन शिक्षा प्रदान की जाती है.
सूरत: भारतीय संस्कृति में गुरु को सर्वोच्च स्थान दिया गया है. गुरु केवल शिक्षक नहीं होते, बल्कि वे मार्गदर्शक और प्रेरणास्त्रोत (Mentors and Inspirations) भी होते हैं. गुरु का स्थान भारतीय संस्कृति में वैदिक काल से ही महत्वपूर्ण रहा है, जो अज्ञानता के अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं. सूरत में भी एक सरकारी स्कूल के आचार्य ने सच्चे अर्थों में गुरु बनकर पिछले दस सालों से आर्थिक कारणों से पढ़ाई छोड़ने वाली छात्राओं को मुफ्त शिक्षा दी है. इसके अलावा, उन्होंने स्कूल से ड्रॉपआउट करने वाली हजारों छात्राओं को शिक्षा देकर नई दिशा दिखाई है. बोर्ड की परीक्षा घोषित हो चुकी है और इस साल कई ड्रॉपआउट छात्राएं 10वीं और 12वीं की परीक्षा देंगी.
ड्रॉपआउट बेटियों के लिए शिक्षा की नई आशा
बता दें कि नरेश मेहता सूरत की सरकारी स्कूल नंबर 114, संत डोंगरेजी महाराज स्कूल के आचार्य हैं. वर्ष 2015 में, जब वे शिक्षक के रूप में कार्यरत थे, तब कई गरीब परिवारों की बेटियां स्कूल नहीं आती थीं. गहन शोध के बाद उन्होंने जाना कि इन बेटियों के स्कूल छोड़ने का मुख्य कारण आर्थिक तंगी है. परिवार में एकमात्र कमाने वाले होने के कारण बेटियों ने पढ़ाई छोड़कर घर का काम या सिलाई, कढ़ाई और साड़ियों में लेस लगाने का काम शुरू कर दिया.
आचार्य नरेश मेहता ने इन बेटियों को पढ़ाने का निश्चय किया और पहले स्थानीय क्षेत्र में यह प्रयोग किया. धीरे-धीरे गुजरात के कई जिलों से बेटियां जुड़ती गईं. आज वे सूरत के अलावा तापी, व्यारा, वलसाड, वांसदा, अंकलेश्वर, भुज, अंजार, वडोदरा, पाटन, सुरेंद्रनगर, गांधीनगर, अहमदाबाद, जामनगर, भावनगर, सेलवास, राजकोट जैसे कई क्षेत्रों से छात्राओं को शिक्षा दे रहे हैं.
वे कैसे पढ़ाते हैं?
कोरोना काल से पहले वे प्रत्यक्ष शिक्षा (Direct Education) देते थे, लेकिन अब ऑनलाइन माध्यम से पढ़ाते हैं. इसके लिए वे छात्रों को मुफ्त किताबें भेजते हैं. अगर कोई छात्रा किसी विषय में कमजोर होती है तो वह जुलाई में फिर से परीक्षा दे सकती है. आचार्य नरेश मेहता के अनुसार, अब तक 1827 छात्राओं ने 10वीं और 12वीं की परीक्षा सफलतापूर्वक पास की है. अगर छात्राएं मार्च में किसी विषय में फेल हो जाती हैं तो तैयारी कराकर फिर से जुलाई में परीक्षा दिलाई जाती है. जो छात्राएं पहले पढ़कर कॉलेज पास कर नौकरी कर रही हैं, उनमें से कुछ बैंक, स्कूल, ज्वेलरी सेक्टर में काम कर रही हैं, 2 छात्राएं तलाटी बन गई हैं, जबकि 2 छात्राएं पुलिस विभाग में नौकरी कर रही हैं. क्लास शुरू होने से पहले और खत्म होने के बाद हम निश्चित रूप से श्रीमद भगवद गीता के श्लोक का पाठ करते हैं. यह हमारी परंपरा बन गई है.
अपना अनुभव बताते हुए छात्रा ममता बलदाणिया ने कहा, “मेरी उम्र 22 साल है. आठ साल पहले मैंने पढ़ाई छोड़ दी थी और सिलाई का काम शुरू किया था. घर की स्थिति के कारण उस समय सिलाई का काम करती थी और अब भी करती हूं. मुझे पढ़ाई में रुचि थी और पढ़ना भी चाहती थी. नरेश सर से संपर्क होने पर मेरी हिम्मत बढ़ी और मैंने फिर से पढ़ाई शुरू की. मैं सिलाई का काम करते हुए पढ़ाई करती हूं. सर पढ़ाते हैं, वह बहुत अच्छा लगता है. मेरे माता-पिता गांव में रहते हैं और खेती करते हैं. मैं यहां अपने भाई-भाभी के साथ रहती हूं.”
एक छात्रा के भाभी दया बलदाणिया ने कहा, “मेरी ननद ममता ने पारिवारिक कारणों से पढ़ाई छोड़ दी थी. हालांकि अब वह फिर से पढ़ रही है. नरेश सर जैसी व्यक्ति के कारण हमारे जैसे कई परिवारों को हिम्मत मिलती है. वे केवल मुफ्त में पढ़ाते ही नहीं बल्कि किताबें भी मुफ्त में देते हैं.”
अन्य छात्रा पायल गोस्वामी ने कहा, “मेरी उम्र 24 साल है. मैंने पढ़ाई छोड़ दी थी क्योंकि घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी. मेरे माता-पिता अपंग हैं. इसलिए हम घर में साड़ियों में स्टोन लगाने का काम करते हैं. सर के बारे में जानकारी मिली और उनसे मिलने के बाद उन्होंने कहा कि पढ़ाई शुरू करो. वे रोज एक घंटे पढ़ाते हैं और परीक्षा भी लेते हैं. वे किताबें भी मुफ्त में देते हैं.”
First Published :
February 04, 2025, 21:38 IST