खंडवा के पास एक छोटे से गांव सोनूद में छोटी छोटी बच्चीयां इस पर्व को मना रही हे
खंडवा: खंडवा में आधुनिकता की चकाचौंध ने लोक संस्कृति के कई अद्वितीय पहलुओं को धूमिल कर दिया है, और ऐसा ही एक पारंपरिक खेल है सांझा पुली. यह खेल निमाड़ के ग्रामीण अंचलों में श्राद्ध पक्ष के 16 दिनों तक खेला जाता था, जिसमें गांव की युवतियां और बालिकाएं उत्साह से भाग लेती थीं. हालांकि आज भी कुछ क्षेत्रों में यह खेल जीवित है, लेकिन इसकी लोकप्रियता धीरे-धीरे कम हो रही है.
सांझा पर्व का अनूठा स्वरूप:
सांझा खेल का मुख्य आकर्षण दीवारों पर गोबर से बनाई जाने वाली आकृतियां थीं. पहले कच्चे मकानों की दीवारों को गोबर से लीपकर उन पर रोज़ नए चित्र बनाए जाते थे. ये चित्र केवल कला नहीं थे, बल्कि लोक संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा थे, जिन्हें “कोट” कहा जाता था. गांव की लड़कियां रोज़ाना अलग-अलग आकृतियां बनाकर अपनी रचनात्मकता और धार्मिकता का प्रदर्शन करती थीं. हर आकृति में प्राकृतिक सामग्री जैसे फूल, पत्तियां आदि का इस्तेमाल होता था, जो संसाधनों की कमी के बावजूद इस त्योहार को विशेष बनाते थे.
श्राद्ध पक्ष और सांझा गीत:
श्राद्ध पक्ष के दौरान संझा खेल के साथ संझा गीत भी गाए जाते थे, जिन्हें बाल कविताएं माना जाता था. इन गीतों के ध्वनि प्रधान शब्द और बालिकाओं की मस्ती भरी गाने की शैली ग्रामीण जीवन में विशेष आकर्षण लाते थे. यह त्यौहार केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि ग्रामीण बालिकाओं का महा उत्सव था, जिसमें वे सामूहिक रूप से भाग लेकर अपनी लोक संस्कृति को सहेजती थीं.
परंपराओं का लोप:
समय के साथ, पक्के मकानों और आधुनिक जीवनशैली के आगमन से यह प्रथा धीरे-धीरे कम हो गई. गोबर से दीवारों पर आकृतियां बनाने की परंपरा अब विलुप्त होती जा रही है, क्योंकि पक्की दीवारों पर गोबर लगाने से उनका नुकसान होता है. इस खेल और पर्व का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक भी था.
ग्रामीण किंवदंतियों के अनुसार, इस व्रत को सर्वप्रथम पार्वती ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया था. यह पर्व ग्रामीण समाज में आज भी कहीं-कहीं मनाया जाता है, लेकिन इसे बचाए रखने की आवश्यकता है ताकि लोक संस्कृति की यह अमूल्य धरोहर भविष्य की पीढ़ियों तक पहुंच सके.
Tags: Khandwa news, Local18, Madhyapradesh news
FIRST PUBLISHED :
September 22, 2024, 15:52 IST