प्रतिकात्मक तस्वीर
रोहतास. बिहार की सांस्कृतिक धरोहर और ऐतिहासिक परंपरा का प्रतीक, दरिहट का कंबल उद्योग आज खत्म होने के कगार पर है. एक समय था जब सोनपुर और छत्तरपुर जैसे बड़े मेलों की शान और पश्चिम चंपारण के किसानों से लेकर राज्य के जेलों तक इस कंबल की भारी मांग थी. लेकिन, अब यह उद्योग केवल कुछ बुजुर्ग कारीगरों के सहारे सिमटकर रह गया है.
दरीहट कंबल बुनकर सहयोग समिति के सदस्य धर्मपाल बताते हैं कि 1990 के दशक तक यहां से तैयार कंबल सरकारी संस्थानों, सेना और पुलिस थानों के लिए बड़ी मात्रा में भेजे जाते थे. लेकिन, सरकारी मांग में कमी और बाजार में सही आपूर्ति व्यवस्था की कमी ने इस उद्योग को गहरा झटका दिया.
आधुनिक स्पिनिंग मशीनों की है जरूरत
धर्मपाल के अनुसार, पहले इस उद्योग में लगभग 1000 लोग काम करते थे. अब यह संख्या घटकर 20-25% रह गई है. सिंथेटिक कंबलों के बढ़ते प्रचलन और उनकी कम कीमतों ने परंपरागत कंबलों को बाजार से बाहर कर दिया है. उन्होंने बताया कि इस काम में इस्तेमाल होने वाला धागा स्थानीय गांवों में महिलाओं से तैयार करवाया जाता है. यह काम लगभग 100-200 महिलाओं को रोजगार देता है. लेकिन, उत्पादन बढ़ाने और गुणवत्ता सुधारने के लिए आधुनिक स्पिनिंग मशीनों की जरूरत है, जो अब तक उपलब्ध नहीं हो पाई है.
सरकर से सहयोग का है अभाव
धर्मपाल ने बताया कि सरकार से कोई ठोस पहल नहीं की गई है और ना तो उद्योग को पुनर्जीवित करने के लिए योजनाएं बनाई गई. इसके अलावा कारीगरों को आधुनिक उपकरण नहीं उपलब्ध कराए गए. उनका मानना है कि यदि सरकार आधुनिक मशीनें और बेहतर आपूर्ति व्यवस्था मुहैया कराए, तो यह उद्योग ना केवल रोजगार बढ़ा सकता है, बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था में भी योगदान दे सकता है.
बाजार और परिवहन की है समस्या
फिलहाल, दरिहट के कंबल बंगाल, नेपाल, उत्तर प्रदेश और पश्चिम चंपारण जैसे इलाकों में सप्लाई किए जाते हैं. हालांकि, परिवहन लागत अधिक होने के कारण लाभ सीमित हो जाता है. धर्मपाल का कहना है कि यदि स्थानीय स्तर पर बाजार विकसित किया जाए और परिवहन में सहायता मिले, तो यह उद्योग बेहतर तरीके से चल सकता है.
दरिहर कंबल उद्योग को खेबनहार का है तालाश
धर्मपाल ने सरकार से अपील की है कि यदि इस उद्योग में आधुनिक तकनीक और संसाधन उपलब्ध कराए जाएं, तो यह ना केवल रोजगार का बड़ा जरिया बन सकता है, बल्कि एक बार फिर बिहार की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा भी बन सकता है. दरिहट का कंबल उद्योग, जो कभी राज्य की शान हुआ करता था, आज खुद को बचाने की लड़ाई लड़ रहा है. क्या सरकार और समाज इस गुमनाम धरोहर को फिर से संवार पाएंगे? यह सवाल आज भी अनुत्तरित है.
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FIRST PUBLISHED :
December 4, 2024, 13:59 IST