देहरादून. उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ऐतिहासिक खाराखेत गांव आजादी के बाद से ही उपेक्षा का शिकार होता आ रहा है, लेकिन यह गांव देश के स्वतंत्रता संग्राम में अपनी खास पहचान रखता है. खाराखेत का नाम इतिहास के उन पन्नों में दर्ज है, जो महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi Birth Anniversary) के नेतृत्व में चलाए गए नमक सत्याग्रह आंदोलन के तहत देश के लिए प्रेरणा स्रोत बन गया था.
साल 1930 में महात्मा गांधी के नमक कानून तोड़ने के आह्वान पर देशभर में आंदोलन शुरू हो गया था. 20 अप्रैल 1930 को देहरादून के खाराखेत में भी 20 स्वतंत्रता सेनानी इस सत्याग्रह में शामिल हुए. उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत की नाक के नीचे नून नदी में नमक बनाकर अंग्रेजों को कड़ी चुनौती दी. आंदोलनकारियों ने 7 मई 1930 तक नून नदी में नमक बनाकर ब्रिटिश राज के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका था.
इन स्वतंत्रता सेनानियों ने किया था विरोध
इस आंदोलन में शामिल स्वतंत्रता सेनानियों में हुकुम सिंह, अमर सिंह, रीठा सिंह, धनपति, रणवीर सिंह, कृष्ण दत्त वैद्य, नारायण दत्त, महावीर त्यागी, नरदेव शास्त्री, दाना सिंह, श्रीकृष्ण, नाथूराम, ध्रुव सिंह, किशन लाल, गौतम चंद चौधरी, बिहारी स्वामी, विचार आनंद, हुलास वर्मा, रामस्वरूप, नैन सिंह, और किरण चंद जैसे नाम प्रमुख थे.
ऐतिहासिक स्थल आज उपेक्षा का शिकार
खाराखेत के जिस स्थान पर यह ऐतिहासिक आंदोलन हुआ, वहां महात्मा गांधी और इन सभी सेनानियों के नाम अंकित किए गए हैं. हालांकि खाराखेत का यह ऐतिहासिक स्थल आज उपेक्षा का शिकार हो गया है. जहां कभी स्वतंत्रता सेनानियों ने नमक कानून तोड़ा था, वहां अब झाड़ियां उग आई हैं. ग्रामीणों के अनुसार, इस ऐतिहासिक स्थल की कोई देखरेख नहीं की जा रही है. रास्ते खराब हो गए हैं और अनदेखी ने इस धरोहर को लगभग भुला दिया है. उनकी मांग है कि इस ऐतिहासिक स्थल की सुध ली जाए ताकि लोग इसके महत्व को जान पाएं.
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FIRST PUBLISHED :
October 2, 2024, 11:59 IST