टोलियां, सेवा बस्ती और घर-घर दस्तक... संघ का 'दिल्ली विक्ट्री प्लान' आएगा काम?

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Last Updated:February 04, 2025, 21:35 IST

दिल्ली चुनाव में RSS ने भी बीजेपी के प्रचार अभियान में ताकत झोंक दी है. संघ ने अपनी छोटी-छोटी टोलियों को तैनात कर दिया है, जो घर-घर जाकर लोगों को केंद्र सरकार की योजनाओं और AAP के घोटालों के बारे में बता रहे है...और पढ़ें

टोलियां, सेवा बस्ती और घर-घर दस्तक... संघ का 'दिल्ली विक्ट्री प्लान' आएगा काम?

हाइलाइट्स

  • दिल्ली चुनाव में RSS ने बीजेपी को जिताने के लिए ताकत लगा दी है.
  • संघ ने यहां अपनी छोटी-छोटी टोलियों को तैनात किया.
  • ये तोलियां घर-घर जाकर बीजेपी के समर्थन में प्रचार कर रही है.

मधुपर्णा दास
दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) भी बीजेपी के लिए जमीनी स्तर पर प्रचार के काम जुटी हुई है. संघ ने राजधानी में अपनी टीम या टोलियों को भी बीजेपी के घर-घर अभियान में जोड़ दिया है. एक तरफ RSS से जुड़ा ‘लोकमत परिष्कार’ मतदाता जागरूकता अभियान चला रहा है, तो संघ के कार्यकर्ता घर-घर जाकर अवैध बांग्लादेशी घुसपैठियों के बुरे असर, केंद्र सरकार की योजनाओं और आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार के कथित घोटालों के बारे में बता रही है. विधानसभा चुनाव के लिए RSS ने राजधानी भर में जमीनी कार्यकर्ताओं के नेटवर्क को तैनात किया है. संघ ने छोटे समूह बैठकों के अलावा दिल्ली को 30 संगठनों जिलों में रणनीतिक रूप से विभाजित किया. वहीं 1123 स्थानों पर एक मजबूत मौजूगदी स्थापित की, जिन्हें वे ‘सेवा बस्तियां’ कहते हैं.

ये ‘सेवा बस्तियां’ संघ के सामाजिक कार्य के केंद्र हैं, जहां इसकी कई सहयोगी संस्थाएं गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के बीच काम करती हैं. इनमें सेवा भारतीय कई दूसरी संस्थाएं भी शामिल है. इन्हीं क्षेत्रों में संघ ने मजबूत पैठ बनाई है और स्थानीय निवासियों के साथ सक्रिय रूप से जुड़ रहा है.

हर टोली में 3-4 संघ कार्यकर्ता
यहां मतदाताओं को रिझाने के लिए, आरएसएस ने तीन से चार सदस्यों वाली टोलियों (छोटे समूहों) को तैनात किया है. इन टोलियों का मुख्य फोकस राष्ट्रवादी विचारों को फैलाना और सांस्कृतिक गौरव की भावना को बढ़ावा देना है. साथ ही, वे बांग्लादेशी अवैध प्रवास के शहर के सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव जैसे मुद्दों पर चर्चा कर रही हैं. इसके अलावा, ये टोलियां केंद्र सरकार की योजनाओं और आम आदमी पार्टी (आप) सरकार द्वारा मतदाताओं से ‘चुराई गई’ सुविधाओं पर भी चर्चा कर रही हैं.

इसी तरह की छोटी बैठकें, शहरी, अर्ध-शहरी झुग्गी क्षेत्रों, बस्तियों और ग्रामीण इलाकों में प्रासंगिक जमीनी मुद्दों पर चर्चा ने हरियाणा में पिछले साल BJP को सत्ता में वापस लाने में बड़ा रोल निभाया था.

सेवा बस्तियां: RSS की रणनीति का केंद्र
दिल्ली में संघ की रणनीति मतदाताओं के साथ सूक्ष्म स्तर पर जुड़ाव के पारंपरिक मॉडल पर आधारित है. इसके तहत बूथ समितियों को मजबूत करने और जमीनी स्तर पर विचारधारात्मक पैठ सुनिश्चित करने पर जोर दिया जा रहा है. एक वरिष्ठ आरएसएस पदाधिकारी के अनुसार, राजधानी को 30 संघ जिलों (संघ जिलों) में विभाजित करके एक संगठित ढांचा तैयार किया गया है, जो पूरी तरह से प्रभावी आउटरीच सुनिश्चित करता है.

ये जिले कमांड और जुटान केंद्र के रूप में कार्य करते हैं, जो अपने-अपने क्षेत्रों में गतिविधियों की निगरानी करते हैं, स्वयंसेवकों के बीच सहज समन्वय सुनिश्चित करते हैं और स्थानीय सामाजिक-राजनीतिक चिंताओं पर गतिशील प्रतिक्रिया देते हैं.

इस रणनीति का एक प्रमुख घटक दिल्ली की झुग्गी बस्तियों में सेवा बस्तियों का व्यापक काम है. 1,123 ऐसी बस्तियों की पहचान की गई है, जहां आरएसएस के स्वयंसेवक कई सामाजिक कल्याण पहल, शैक्षिक प्रयासों और सामुदायिक निर्माण गतिविधियों में लगे हुए हैं. इसके माध्यम से वे धीरे-धीरे स्थानीय लोगों के साथ विचारधारात्मक जुड़ाव बना रहे हैं.

टोलियों का महत्वपूर्ण योगदान
आरएसएस की चुनाव संबंधी गतिविधियों की रीढ़ टोलियों का नेटवर्क है. ये टीमें पड़ोस के स्तर पर काम करती हैं, सीधे मतदाताओं से जुड़ती हैं, दरवाजे-दरवाजे अभियान चलाती हैं और उन मुद्दों पर अनौपचारिक चर्चाएं आयोजित करती हैं, जिन्हें आरएसएस महत्वपूर्ण मानता है.

इस संदेश को आरएसएस की विचारधारा के अनुरूप तैयार किया गया है, जो समाज के विभिन्न वर्गों की आवाज को सामने लाता है. इसमें मध्यम वर्ग की कानून और व्यवस्था से जुड़ी चिंताओं से लेकर मजदूर वर्ग की आर्थिक स्थिरता और संसाधन वितरण की चिंताएं शामिल हैं.

स्वयंसेवक एक ऐसी सरकार की आवश्यकता पर जोर देते हैं, जो राष्ट्रीय हितों को बनाए रखे, सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा दे और नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करे. संरचित और लक्षित दृष्टिकोण के साथ, दिल्ली चुनाव से पहले आरएसएस का जमीनी काम जमीनी स्तर पर जुटाव के माध्यम से विचारधारात्मक एकीकरण की दीर्घकालिक रणनीति का प्रतिबिंब है.

संघ जिलों, सेवा बस्तियों और स्वयंसेवक टोलियों के अपने व्यापक नेटवर्क का उपयोग करके, संगठन मतदाता भावनाओं को आकार देने का लक्ष्य रखता है, ताकि उसके संदेश दिल्ली के मतदाताओं के बीच गहराई तक जा सके.

दिल्ली में कल 5 फरवरी को विधानसभा चुनाव के लिए वोट डाले जाएंगे, जिसके नतीजे शनिवार 8 फरवरी को सामने आ जाएंगे. इसके साथ ही यह साफ हो जाएगा कि आरएसएस यह रणनीति और मेहनत क्या बीजेपी को सत्ता दिला पाएगी या अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ही जीत का हैट्रिक लगाने में कामयाब रहती है.

Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

February 04, 2025, 21:35 IST

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