संगीत सम्राट तानसेन
रीवा. तानसेन का रीवा रियासत से गहरा रिश्ता है. वह रीवा राजदरबार की शान थे. रीवा राजघराने के गायक तानसेन की आवाज सुनने वाला हर कोई मुरीद था. ऐसे में जब बादशाह अकबर ने तानसेन की आवाज सुनी तो फिर रीवा आये. इसी दौरान उन्होंने रीवा रियासत के राजा रामचन्द्र सिंह जूदेव से तानसेन को अपने दरबार के लिए मांगा.
तानसेन के पिता ग्वालियर के एक गांव में रहने वाले थे. उनके पिता मकरंद भगवान ब्राह्मण थे. विवाह के काफी समय तक मकरंद पांडेय को कोई संतान नहीं थी, ऐसे में एक बार उन्होंने हजरत मोहम्मद ग़ौस से विनती की कि वे अपने अंतिम संस्कार से पहले पिता बनना चाहते हैं, इसलिए उन्हें संतान प्रदान करें. मकरंद को हजरत मोहम्मद गौस से बड़ी श्रद्धा थी. इसके बाद ही तानसेन का जन्म हुआ. तानसेन के बचपन का नाम रामतनु पांडेय था.
किताब पर बेरी का एक पौधा उग आया
उस्ताद तानसेन, एक ऐसे संगीतकार हैं, जिनके निधन के बाद उनकी किताब पर बेरी का एक पौधा उग आया, जिसके बाद यह विशाल पेड़ बन गया. खास बात यह है कि संगीत सीखने वाले लोग आज भी उनकी किताब पर बात करते हैं और उस बेरी के पेड़ के पत्ते खाते हैं. लोगों का कहना है कि इस पेड़ के पत्ते खाने से आवज सुरीली होती है.
हजरत मोहम्मद गौस की नजर में रहे तानसेन
हजरत मोहम्मद गौस ने अपने बेटे की तरह तानसेन का लालन-पालन किया. समानता के नामी-गिरामी संगीतज्ञों की देख-रेख में उन्हें संगीत की शिक्षा दिलवाई. तानसेन ने कुछ समय के लिए सुल्तान आदिल शाह के सामने भी पालथी जमायी और उनके बाद के दक्षिण नायक बख़्शू की बेटी से राग की शिक्षा ली. शिक्षा पूरी करने के बाद तानसेन ने रीवा राजा रामचन्द्र के यहां नौकरी कर ली. राजा रामचन्द्र तानसेन के बड़े प्रशंसक थे. कहा जाता है कि एक बार तानसेन के गाने ने उन्हें आधिकारिक तौर पर एक करोड़ का मुआवजा दिया था.
राजा रामचन्द्र पर दबाव
तानसेन को हर हाल में अकबर के दरबार की शोभा बनाना चाहा था. इसके लिए अकबर ने रीवा रियासत के राजा रामचन्द्र पर हर तरह का दबाव बनवाया. ऐसे में रामचन्द्र ने खिजकर तानसेन को पालकी में बंधक बनाकर विदा कर दिया. इसके बाद ही अकबर ने मुगलों की ओर से खुशियां मनाईं और रीवा रियासत में तोपें भिजवाईं, जो रीवा के किला परिसर में शान से शिखर हैं. बता दें कि रीवा राज्य ने बड़ी लड़ाई तो नहीं लड़ी, लेकिन इन तोपों को सुरक्षा के लिए हमेशा तैयार रखा गया.
अकबर के दरबार में तानसेन को खास उपाधि
तानसेन अकबर के नवरत्नों में से एक थे. तानसेन हमेशा अकबर के खास बने रहे. तानसेन ने अकबर के दरबार में दरबारी कानाहरा, दरबार, दरबारी असावरी और शहाना जैसे राग सृजित किए. इसके अलावा ‘मियां की मल्हार’, ‘मियां की तोड़ी’ और ‘मियां की सारंग’ के अलावा भी तानसेन के प्यारे राग हैं. तानसेन ने संगीत कला की जो सेवा की है, उसके बार में लिखा है, “पुराने शास्त्रीय संगीत को नया रस, नया रूप और नया बैंकपन प्रदान किया गया था.” उन्होंने रागों में बेहद आकर्षक प्रयोग किए और ये राग उन प्रयोगों के साथ अब उनके नाम से जाने जाते हैं.
तानसेन ने अकबर के अवलोकन पर 16 हज़ार रागों और 360 तालों का गहन अध्ययन किया और व्यापक विचार के बाद लगभग 200 मूल राग और 92 मूल तालों को स्थापित किया. इनमें से दरबारी और शाम कल्याण राग हैं जो अकबर को विशेष रूप से बहुत पसंद थे.
तानसेन की जिंदगी पर बनी फिल्में
तानसेन की ज़िंदगी पर कई फ़िल्में बनी हैं. इस विषय पर बनी पहली फिल्म 1943 में आई थी जिसमें केएल सहगल ने तानसेन की भूमिका निभाई थी. इस फ़िल्म के निर्देशक जयन्त डेज़ाई थे. साल 1990 में पाकिस्तान टेलीविजन ने इसी विषय पर एक टीवी सीरियल बनाया था, जिसमें आस्तिक ख्वाजा नजमुल हसन और लेखिका ख़्वाजा मोइन थीं. तानसेन नाम की पत्रिका भी स्वर्ण काल की एक कृति है. तानसेन के उन रागों और तालों की अलग-अलग विशेषताएँ और गानों के तारिके बताए गए हैं. असल में, तानसेन ने पुराने रागों को नया रूप ही नहीं दिया बल्कि कई सी रागिनियां सृजित कीं, जो उनके नाम से प्रतिष्ठित हैं. देखने वाली बात यह भी है कि ध्रुपद गायक तानसेन को केवल एक बड़े प्रतिनिधि के रूप में मान्यता नहीं दी गई है बल्कि कई इतिहासकारों ने उन्हें सामूहिक घराने का संस्थापक भी माना है.
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FIRST PUBLISHED :
November 27, 2024, 13:06 IST