दिल्ली उच्च न्यायालय ने 'डीपफेक' के खतरों की जांच के लिए गठित समिति के सदस्यों को नामित करने का निर्देश केंद्र सरकार को दिया है। केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने इसे लेकर उच्च न्यायालाय को सूचित किया था कि 'डीपफेक' से जुड़े मामलों की जांच के लिए 20 नवंबर को एक समिति गठित की गई थी। केंद्र सरकार ने इसे लेकर कहा था कि वह डीपफेक प्रौद्योगिकी से जुड़े मु्द्दों से निपटने और इनका समाधान ढूंढने के लिए सक्रिय रूप से उपाय कर रही है। इस मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने की और सरकार को समिति के सदस्यों को एक सप्ताह के भीतर ही नामित करने का निर्देश दिया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय में पहुंचा डीपफेक का मामला
दिल्ली हाईकोर्ट की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए 21 नवंबर को पारित अपने आदेश में कहा, “समिति याचिकाकर्ताओं की दलीलों की जांच करेगी और उन पर विचार करेगी। समिति यूरोपीय संघ (ईयू) सहित अन्य देशों में लागू विनियमों और कानूनी उपायों पर भी विचार करेगी।” अदालत ने समिति को अपनी रिपोर्ट पेश करने से पहले कुछ हितधारकों, मसलन-मध्यवर्ती मंचों, दूरसंचार सेवा प्रदाताओं, डीपफेक के पीड़ितों और डीपफेक तैयार करने वाली वेबसाइट के अनुभव एवं सुझाव आमंत्रित करने का निर्देश दिया।
रजत शर्मा ने दायर की जनहित याचिका
पीठ ने कहा, “समिति जल्द से जल्द, अधिमानतः तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट पेश करेगी।” इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 24 मार्च की तारीख तय की गई है। बता दें कि दिल्ली हाईकोर्ट डीपफेख के गैर नियमन और इसके संभावित दुरुपयोग के खतरे के खिलाफ दायर दो याचिकाओं की सुनवाई कर रहा है। इनमें से एक याचिका इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा द्वारा दायर की गई है। इस याचिका में देश में डीपफेक टेक्नोलॉजी के विनियमन और ऐसी सामग्री के निर्माण को सक्षम करने वाले ऐप्स और सॉफ़्टवेयर तक सार्वजनिक पहुंच को अवरुद्ध करने के निर्देश देने की मांग की गई है। दूसरी याचिका वकील चैतन्य रोहिल्ला ने डीपफेक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के अनियंत्रित उपयोग के खिलाफ दायर की है।
जनहित याचिका में क्या बोले रजत शर्मा?
रजत शर्मा ने जनहित याचिका में कहा कि डीपफेक तकनीक का प्रसार समाज के विभिन्न पहलुओं, जिसमें गलत सूचना और दुष्प्रचार अभियान शामिल हैं, के लिए एक बड़ा खतरा पैदा करता है और सार्वजनिक विमर्श और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की अखंडता को कमजोर करता है। जनहित याचिका में कहा गया है कि इस प्रौद्योगिकी के उपयोग से धोखाधड़ी, पहचान की चोरी और ब्लैकमेल, व्यक्तिगत प्रतिष्ठा, गोपनीयता और सुरक्षा को नुकसान, मीडिया और सार्वजनिक संस्थानों में विश्वास में कमी तथा बौद्धिक संपदा अधिकारों और गोपनीयता अधिकारों के उल्लंघन का खतरा है