नैनीताल. दुनिया को अहिंसा की ताकत का अहसास कराने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती 2 अक्टूबर को मनाई जाती है. देशभर में बापू से जुड़ी कई विरासतें आज भी मौजूद हैं, जो उस दौर के स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष की दास्तां को बयां करती हैं. ऐसी ही एक विरासत उत्तराखंड के नैनीताल के ताकुला गांव में स्थित है, जिसे गांधी मंदिर के नाम से जाना जाता है. गांधी मंदिर को यह नाम इसलिए मिला क्योंकि महात्मा गांधी ने खुद इस भवन का शिलान्यास किया था. साल 1929 और फिर साल 1932 में वह यहां रहने भी आए लेकिन गांधी जी से जुड़ा यह भवन अब तक राष्ट्रीय धरोहर या स्मारक का दर्जा हासिल नहीं कर सका है.
नैनीताल निवासी प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर अजय रावत लोकल 18 को बताते हैं कि नैनीताल से 6 किमी की दूरी पर स्थित ताकुला में गांधी मंदिर स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक है. गांधी जी को कुमाऊं में बुलाने का श्रेय कुमाऊं परिषद को जाता है. उनके आह्वान पर ही वह नैनीताल आए थे और ताकुला में उन्होंने गांधी मंदिर के लिए जगह देखी थी. इस मंदिर को बनाने के लिए स्थानीय निवासी और गांधी जी के मित्र गोविंद लाल शाह ने उन्हें भूमि भेंट की थी. पहली बार आगमन पर गांधी जी ताकुला में ही रहे थे. इसके अलावा उन्होंने भवाली, कौसानी, ताड़ीखेत आदि जगहों का भ्रमण किया था. इस दौरान उन्होंने 22 जगह सभाएं की थीं और उन्हें सम्मानित किया गया था.
महात्मा गांधी ने किया था अनावरण
प्रोफेसर रावत बताते हैं कि जब महात्मा गांधी दोबारा 18 मई 1931 को नैनीताल आए थे, तो वह अपने मित्र गोविंद लाल शाह के घर पर ही रुके और उन्होंने ताकुला में गांधी मंदिर का अनावरण किया. गांधी जी दो बार नैनीताल आए थे. उनके आने से स्वतंत्रता संग्राम को दिशा मिली थी.
गुमनामी में है गांधी मंदिर
नैनीताल के पास समृद्ध इतिहास समेटे गांधी मंदिर दुनिया की नजरों से ओझल गुमनामी में हैं. गांधी मंदिर को आज तक राष्ट्रीय स्मारक या धरोहर का दर्जा हासिल नहीं हो पाया है. वहीं गांधी जी की जयंती और बलिदान दिवस पर भी किसी को इस ऐतिहासिक विरासत की सुध नहीं आती. हालांकि ताकुला गांव के लोग जरूर बापू की यादों को सहेजे हुए हैं और अपने स्तर पर यहां कार्यक्रमों का आयोजन करते रहते हैं.
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FIRST PUBLISHED :
October 2, 2024, 11:44 IST