Agency:News18 Bihar
Last Updated:February 11, 2025, 14:03 IST
Attacks connected Train: कहते हैं शासन कानून के इकबाल से चलता है. लेकिन, लोकतंत्र की अच्छाइयों के बीच खामियों और उसकी मजबूरियों के कारण कई बार इसका दर्द आम पब्लिक को झेलना पड़ता है. राष्ट्रीय संपत्ति का नुकसान होता है...और पढ़ें
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बिहार के मधुबनी में स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस पर पत्थरबाजी में टूटे शीशे.
हाइलाइट्स
- ट्रेनों पर पत्थरबाजी की घटनाओं में लगातार इजाफा, उपद्रवियों पर कब कसेगा शिकंजा?
- रेलवे की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले आरोपियों पर कार्रवाई को बने हैं पर्याप्त कानून.
- रेलवे अधिनियम को और दुरुस्त करने की जरूरत, शासन का इकबाल की है आवश्यकता.
पटना. कहते हैं लोकतंत्र की अधिकतर अच्छाइयों के बीच कुछ ऐसे दुर्गुण होते हैं जो लोगों की ‘जहिलियत’ को प्रश्रय देती है. अगर ऐसा ना होता तो क्या ट्रेनों पर लगातार हमले यूं ही हो रहे होते? सवाल मौजू है क्योंकि लगातार ट्रेनों पर हमले हो रहे हैं, ट्रेनों के शीशे तोड़े जा रहे हैं और पटरियां तक उखाड़ ली जा रही हैं. इसी कड़ी में एक घटना बिहार के मधुबनी की सामने आई है. 10 फरवरी को स्वतंत्रता सेनानी ट्रेन में तोड़फोड़ हुई और एसी बोगी के शीशे तोड़ दिए गए. यात्रियों में दहशत फैल गई, पुलिस पहुंची और कार्रवाई में जुट गई. एक आरोपी को पकड़ा भी गया. यह खबर मीडिया की सुर्खियां भी बन गई. पहले तोड़फोड़ की खबर, फिर कार्रवाई हुई वाली खबर…लेकिन यह खबर बड़ा सवाल छोड़ गई कि आखिर लोग अपनी ही ट्रेनों को निशाना क्यों बना रहे हैं?
बिहार के मधुबनी में स्वतंत्रता सेनानी एक्सप्रेस में तोड़फोड़ की जो घटना सामने आई इसमें शुरुआती तौर पर यह तथ्य निकाल कर आए कि यात्री महाकुंभ में स्नान करने के लिए प्रयागराज जाने के लिए तत्पर थे, लेकिन ट्रेन में भारी भीड़ थी और चढ़ने में नाकाम रहने को लेकर गुस्से में यात्रियों ने ट्रेन को निशाना बनाया. कई बोगियों के शीशे तोड़ दिये. जाहिर है रेप प्रशासन की नाकामी और पब्लिक की बेसब्री यहां “घातक’ साबित हुई. लेकिन, इसके पहले की एक और वारदात जिक्र भी जान लीजिये. यह घटना बीते अक्टूबर 2024 में यूपी के वाराणसी में वंदे भारत ट्रेन पर पत्थरबाजी से जुड़ी है. यहां जांच में जो सामने आया वह बेहद चौंकाने वाला था. यूपी एटीएस ने अपने इन्वेस्टिगेशन में पाया कि पत्थरबाजों का मकसद ट्रेन की रफ्तार को कम करना था, ताकि खिड़की के पास बैठे यात्रियों के मोबाइल आसानी से अपराधी छीन सके.
एक्शन होता भी है या नहीं, किसे मालूम?
अब आगे बढ़ते हैं, इसके पहले एक और घटना के पीछे के कारण को समझिये. वर्ष 2023 में बिहार के कटिहार में 21 दिनों के भीतर वंदे भारत ट्रेन पर चार बार पत्थरबाजी की गई थी. घटना में जो खुलासा हुआ वह भी काफी चौंकाने वाला था. बताया गया कि नाबालिग लड़कों ने यह हरकत की थी. हालांकि, यहां उपद्रवी नाबालिग होने की आड़ में साफ बच गए. अब एक और घटना जानिये, जब उत्तर प्रदेश में एक घटना हुई थी. इसमें ट्रेन पर पथराव सिर्फ इसलिए किया गया कि यात्री ट्रेनों के ठहराव की मांग कर रहे थे, क्योंकि वहां वह ट्रेन रुकती नहीं थी. जाहिर तौर पर ये चारों घटनाएं बताती हैं कि लोगों का आसान निशाना चलती ट्रेन होती है. पत्थरबाजी की और फरार हो गए. ऐसे मामलों में तफ्तीश हुई या नहीं, क्या कार्रवाई हुई यह भी बहुत कम ही सामने आ पाता है.
रेलवे की संपत्ति सबसे आसान निशाना
अब रेलवे को निशाना बनाने का और मामला जानिये, जब जाट आरक्षण आंदोलन हो रहे थे तो आंदोलन के नाम पर लोगों ने पटरियों को निशाना बना लिया था. राजस्थान से लेकर हरियाणा तक बवाल हुआ था और करोड़ों की राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया था. इसी तरह अग्निवीर योजना के विरोध में बिहार के दानापुर, आरा और लखीसराय में स्टेशनों पर आग लगा दी गयी थी. कई जगहों पर पटरियां तक उखाड़ ली गई थी. खास बात यह कि यह सब साजिश का हिस्सा थी, लेकिन शासन तब भी कुछ कर पाने में नाकाम साबित हुआ था और ऐसी घटनाओं पर लगाम लगा पाना तो खैर अब तक संभव नहीं हो पाया है. यहां शासन को सिर्फ कटघरे में खड़ा करना भर नहीं है, बल्कि पब्लिक पर भी सवाल है कि आखिर पब्लिक अपना ही नुकसान क्यों करती है. क्या कारण है जो कि पब्लिक राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाती है.
उपद्रवियों पर कार्रवाई को लेकर उठ रहे सवाल
संभव है कि कई बार अव्यवस्थाओं से आजिज आकर भी पब्लिक ऐसा कदम उठाती हो, लेकिन हर वक्त ऐसा नहीं होता. कई बार साजिशें भी होती हैं और कई बार कानून की ढिलाई के कारण ऐसे तत्वों का मन बढ़ जाना होता है. ऐसे भी कहा जाता है कि सत्ता ठसक से चलती है और कानून अपनी धमक से…लेकिन, हाल के दिनों में जैसी वारदातें ट्रेनों को लेकर हो रही हैं इससे साफ है कि उपद्रवियों को न तो सत्ता की ठसक से और न ही कानून की हनक से कोई खौफ है. पब्लिक बेसब्र है, सत्ता बेबस है और कानून बेशर्म है. वरना तो लगातार ट्रेनों पर हमले हो रहे हैं और शीशे तोड़े जा रहे हैं, राष्ट्र की संपत्ति को नुकसान पहुंचाया जा रहा है, लेकिन ऐसे उपद्रवियों पर किसी भी तरह की कार्रवाई नहीं हो रही.
रेलवे अधिनियम में पर्याप्त दंड की व्यवस्था
बता दें कि रेलवे की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के मामले में कानून बने हैं. इन कानूनों के तहत कार्रवाई की जाती है. रेलवे की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाली घटनाओं में आरोपी को पहचानना सबसे बड़ी चुनौती होती है. इस काम में स्थानीय पुलिस की मदद ली जाती है. दोषी पाए जाने पर कार्रवाई की जाती है. ट्रेन के ऊपर लकड़ी का कोई सामान या पत्थर और अन्य सामान फेंकने, पटरी को नुकसान पहुंचाने वालों को धारा 150 के तहत आजीवन कारावास की सजा हो सकती है. इसके बावजूद सख्ती नहीं हो पाती है.
ऐसे कानून का मकसद पूरा होने का इंतजार
इतना ही नहीं रेल रोको आंदोलन के नाम पर या फिर रेल परिचालन में किसी तरह की बाधा डालने वालों के खिलाफ रेलवे अधिनियम के तहत कानूनी कार्रवाई का प्रवधान है. धारा 174 के तहत रेलवे ट्रैक पर बैठकर या अवरोधक लगाकर, रेल के हौजपाइप से छेड़छाड़ करके या सिग्नल को नुकसान पहुंचाकर ट्रेन परिचालन बाधित करने वालों को दो वर्ष की जेल की सजा या दो हजार रुपये जुर्माना या फिर दोनों का प्रावधान है. रेलवे कर्मचारियों के काम में बाधा डालने, रेल या उसके किसी भाग में अवैध रूप से प्रवेश करने पर धारा 146 और 147 के तहत छह माह की सजा या एक हजार रुपये का जुर्माना या फिर दोनों सजा हो सकती है.
First Published :
February 11, 2025, 14:03 IST