रांची : ओडिशा के राज्यपाल और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की विरासत को आगे बढ़ाने का जिम्मा उनकी बहू पूर्णिमा दास साहू के कंधों पर आ गया है. 19 अक्टूबर को जारी BJP उम्मीदवारों की पहली लिस्ट में 39वें नंबर पर जमशेदपुर पूर्व सीट से उनकी उम्मीदवारी का ऐलान किया गया. तो झारखंड के सियासी हलकों में अचानक खलबली मच गई. विधानसभा चुनाव की घोषणा से ऐन पहले राज्यपाल रघुवर दास अचानक भुवनेश्वर छोड़कर दिल्ली दरबार के चक्कर लगा रहे थे. वो कुछ दिन तक जमशेदपुर में भी जमे रहे थे. जनता से लगातार मिलते-जुलते रहे. पुराने समर्थकों की नब्ज टटोली. इस सक्रियता को देखकर उनके चुनाव लड़ने की चर्चा तेज हो गई थी. पर जब BJP उम्मीदवारों की लिस्ट सामने आई, तो तस्वीर साफ हो गई.
कौन हैं पूर्णिमा दास?
जमशेदपुर पूर्वी जैसी हाईप्रोफाइल सीट से जैसे ही BJP उम्मीदवार के रूप में पूर्णिमा दास साहू का नाम सामने आया, हर तरफ उनकी ही चर्चा होने लगी. रघुवर दास के बेटे ललित दास और पूर्णिमा साहू की शादी 8 मार्च 2019 में हुई थी. छत्तीसगढ़ के रायपुर की रहने वाली पूर्णिमा के पिता भागीरथ साहू बिजनेसमैन और मां कौशल्या साहू शिक्षिका हैं. उन्होंने रायपुर में ही प्रारंभिक शिक्षा हासिल की थी. ग्रेजुएशन भी वहीं से की. रघुवर दास के बेटे ललित दास से शादी से पहले वो पत्रकार रह चुकी हैं.
दास ने खुद के लिए मांगा था टिकट
कहा जा रहा है कि रघुवर दास ने BJP आलाकमान के सामने इस बार जमशेदपुर पूर्वी सीट से खुद चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी. इसके अलावा अपनी बहू पूर्णिमा दास के नाम का भी प्रस्ताव रखा था. पर पार्टी ने उनकी बहू के नाम पर फाइनल मुहर लगा दी और अब उनकी किस्मत का फैसला जमशेदपुर की जनता तय करेगी.
ऐसे हारे थे रघुवर दास!
जमशेदपुर में मजदूरों की सियासत करने वाले रघुवर दास 1995 में पहली बार जमशेदपुर पूर्वी सीट से BJP विधायक चुने गए थे. तब से रिकॉर्ड लगातार 5 बार वो इस सीट से चुनाव जीतते रहे. इसी सीट से जीतकर 2014 में वो झारखंड के पहले गैर आदिवासी मुख्यमंत्री बने. 5 साल बाद 2019 में विधानसभा चुनाव की घड़ी आई. तो उनकी कैबिनेट में मंत्री रहे सरयू राय से उनके रिश्ते बिगड़ गए. कहा जा रहा है कि रघुवर दास के कहने पर ही तब जमशेदपुर पश्चिमी सीट से BJP प्रत्याशी के रुप में सरयू राय का पत्ता कट गया था. उस समय जमशेदपुर पश्चिमी सीट से BJP ने देवेंद्रनाथ सिंह को उम्मीदवार बनाया था. पर कांग्रेस प्रत्याशी बन्ना गुप्ता ने उन्हें 22,574 वोट से हराकर ये सीट BJP से छीन ली.
टिकट कटना और सरयू राय की बगावत
BJP से टिकट कटने से नाराज सरयू राय बगावत पर उतर आए और जमशेदपुर पश्चिमी जैसी अपनी परंपरागत सीट छोड़कर रघुवर दास को चुनौती देने के लिए जमशेदपुर पूर्वी से निर्दलीय उम्मीदवार बन गए. जनता ने फैसला सुनाया, तो जमशेदपुर पूर्वी से लगातार 5 बार जीतते रहे रघुवर दास को सरयू राय के हाथों 15,815 वोट के अंतर से मात खानी पड़ी थी. पर इस बार JDU के साथ हुए चुनावी समझौते के तहत सरयू राय जमशेदपुर पूर्वी सीट छोड़कर अपनी परंपरागत सीट जमशेदपुर पश्चिमी लौट गए. ऐसे में जमशेदपुर पूर्वी सीट से पूर्णिमा दास साहू की राहें आसान मानी जा रही हैं.
रघुवर दास का सियासी सफर
रघुवर दास का जन्म 3 मई 1955 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में हुआ था. वहां से उनका परिवार जमशेदपुर में आकर बस गया. उनके पिता स्वर्गीय चमन राम टाटा स्टील के कर्मचारी थे. रघुवर दास ने भी टाटा स्टील में नौकरी की. 1977 में वो जनता पार्टी के सदस्य बने. जेपी आंदोलन में भी शरीक हुए. 1980 में BJP में शामिल हुए. वो अगले 15 साल तक जमशेदपुर की राजनीति में बेहद सक्रिय रहे. 1995 में पहली बार वो जमशेदपुर पूर्वी से BJP के टिकट पर चुनाव लड़े और 1101 वोट से चुने गए. तब से लगातार 5 बार वो इसी सीट से चुनाव जीतते रहे. झारखंड बनने के बाद BJP की सरकार में वो श्रम मंत्री बने. भवन निर्माण मंत्री भी बनाए गए. इसके बाद वित्त, वाणिज्य कर और नगर विकास मंत्री के साथ-साथ उपमुख्यमंत्री की कुर्सी भी संभाली. 2014 में उन्हें झारखंड का पहला गैर आदिवासी मुख्यमंत्री बनाया गया. वो झारखंड के ऐसे पहले मुख्यमंत्री रहे, जिन्होंने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया. पर 2019 के चुनाव में उन्हें अपने ही पूर्व मंत्री सरयू राय के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा. इसके साथ ही BJP झारखंड की सत्ता से बेदखल हो गई. इसके बाद रघुवर दास को ओडिशा का राज्यपाल बनाया गया. अब उनकी बहू पूर्णिमा दास साहू उनकी सियासी विरासत को आगे बढ़ाने जा रही हैं.
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FIRST PUBLISHED :
October 21, 2024, 12:57 IST